नई दिल्ली : देश के प्रमुख अखबारों की रीडरशिप के गलत व भ्रामक आंकड़े पेश कर विवादों में घिरे इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) 2013 के नतीजों पर आखिरकार रोक लगा दी गई है। रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (आरएससीआई) की प्रबंध समिति और मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी) की बुधवार को मुंबई में हुई बैठक में नतीजों पर 31 मार्च तक रोक लगाने का फैसला लिया गया। इस सर्वे के गलत आंकड़े पेश करने की वजह से देश भर के प्रमुख अखबार काफी नाराज थे और उन्होंने इसका विरोध करते हुए नतीजों को मानने से इनकार कर दिया था।
एमआरयूसी द्वारा जारी बयान के मुताबिक सर्वे के नतीजों के फिर से प्रमाणीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इसके 24 फरवरी तक पूरा होने की उम्मीद है। हालांकि 31 मार्च तक इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इसके बाद सिफारिशों को अप्रैल, 2014 तक आरएससीआई के समक्ष पेश किया जाएगा। मंजूर की गई सिफारिशों को भविष्य के लिए आईआरएस के ढांचे में शामिल कर लिया जाएगा। इस बैठक में तय किया गया कि जब तक फिर से प्रमाणीकरण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी स्तर पर आईआरएस 2013 के नतीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इस संबंध में आरएससीआई, एमआरयूसी और ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) अपने सभी उपभोक्ताओं से संपर्क कायम रखेगी।
आईआरएस 2013 सर्वे के नतीजों पर इंडिया न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने भी अपनी सख्त आपत्ति दर्ज की थी। इस सर्वे के नतीजे सच्चाई से काफी परे थे। इसमें उन अखबारों की रीडरशिप बहुत कम दिखाई गई थी, जो ज्यादा बिकते हैं। मसलन द हिंदू की पाठक संख्या चेन्नई के मुकाबले मणिपुर में तीन गुना बताई गई थी। सर्वे में एबीसी के आंकड़ों को भी पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया।
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