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सुख-दुख...

झूठे केसों से परेशान जादूगोड़ा का पत्रकार

मैं झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के छोटे से गाँव जादूगोड़ा, जो यूरेनियम खनिज के लिए विश्वविख्यात है, में रहता हूँ। पत्रकारिता जगत में मुझे मात्र दो साल हुए हैं, लेकिन इन दो सालों का मेरा अनुभव बहुत कड़वा रहा है। सच्चाई लिखने की वजह से मुझे और मेरे भाई को एक महीने तक जेल में रहना पड़ा। पुलिस की पिटाई से आयीं चोटों की वजह से चार दिन टीएमएच अस्पताल में भी रहे। लेकिन हमनें सच लिखना नहीं छोड़ा, जिसकी वजह से असामाजिक लोगो ने झूठा केस करना जारी रखा और कहते फिरते हैं कि साला जब तक सच्चाई का भूत नहीं उतार देंगे तब तक केस करवाते रहेंगे।

मैं झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के छोटे से गाँव जादूगोड़ा, जो यूरेनियम खनिज के लिए विश्वविख्यात है, में रहता हूँ। पत्रकारिता जगत में मुझे मात्र दो साल हुए हैं, लेकिन इन दो सालों का मेरा अनुभव बहुत कड़वा रहा है। सच्चाई लिखने की वजह से मुझे और मेरे भाई को एक महीने तक जेल में रहना पड़ा। पुलिस की पिटाई से आयीं चोटों की वजह से चार दिन टीएमएच अस्पताल में भी रहे। लेकिन हमनें सच लिखना नहीं छोड़ा, जिसकी वजह से असामाजिक लोगो ने झूठा केस करना जारी रखा और कहते फिरते हैं कि साला जब तक सच्चाई का भूत नहीं उतार देंगे तब तक केस करवाते रहेंगे।

 
मैंने
देखा की सच्चाई को सामने लाना और सच लिखना कितना घातक होता है। मैंने सबसे पहले 27 जनवरी 2012 को एक भू-माफिया के कारनामों को अखबार मे प्रकाशित किया तो मेरे ऊपर पहला कोर्ट केस किया गया। इसमें जादूगोड़ा के तत्कालीन थाना प्रभारी नयन सुख दाड़ेल मिले हुए थे। यह केस उच्च अधिकारियों ने जांच कर झूठा साबित कर दिया। इसके बाद मैंने सितंबर 2012 को अखबार एवं भड़ास4मीडिया में लिखा था की जादूगोड़ा मे बेखौफ होकर चल रहा है अवैध जुआ और हब्बा-डब्बा। इससे बौखला कर थाना प्रभारी ने हमें जेल भेजने की धमकी दी थी, यह भी भड़ास4मीडिया में प्रकाशित हुआ था। इस घटना के बाद थाना प्रभारी ने हम दोनों भाइयों पर झूठा मामला अपने परिचित मुखिया से दर्ज़ करवा दिया। लेकिन उच्च अधिकारियों की जांच मे यह केस झूठा निकला, हालांकि थाना प्रभारी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, हमे जेल भेजवाने का पूरा इंतेजाम कर रखा था।  

इसके बाद, 14 जनवरी को अवैध जुआ संचालको ने जादूगोड़ा थाना के ईमानदार इंस्पेक्टर अवधेश कुमार सिंह पर अवैध जुआ रोकवाने के कारण में जानलेवा हमला कर दिया, बचाव में उनके जवानों ने पाँच राउंड हवाई फाइरिंग किया तब जाकर इंस्पेक्टर की जान बची इस मामले को हमने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जादूगोड़ा मे एक 14 वर्षीय छात्र पीरू मांझी की हत्या 14 मार्च 2012 को कर दी गयी थी। इस मामले में हत्यारो को स्थानीय नेता टिकी मुखी ने बचा रखा था और एक साल हो जाने के बाद भी पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की थी। इस मामले में हमने पीड़ित परिवार का इंटरव्यू लिया और अखबार में प्रकाशित किया कि "भटक रही है पीरू की रूह मांग रही है इंसाफ।" यह खबर हमने पीरू की पहली बरसी 14/03/2013 पर छापी थी, जिसमे यह भी लिखा हुआ था की स्थानीय नेता दबा रहा है मामले को और थाना प्रभारी की भूमिका संदेहास्पद है ।

इस खबर से बौखलाकर 18/03/2013 को हम दोनों भाइयों पर झूठा मामला दर्ज करा दिया गया और इस मामले का अनुसंधानकरता खुद थाना प्रभारी नयन सुख दाड़ेल बन गया। इस मामले की जांच चल ही रही थी की बिना किसी वारंट के 12/04/2013 को हम दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया गया। हमें हमारे घर से जादूगोड़ा थाना तक पैदल बिना चप्पल पहनाकर धकेलते हुए ले जाया गया, जहां हमें कोर्ट के बजाए अन्य थाने भेजकर मारपीट की गयी। मारपीट की वजह से हमें चार दिन टीएमएच मे रहना पड़ा, मेरे बाएं हाथ की कलाई की एक नस काट दी गयी और अस्पताल से जबर्दस्ती छुट्टी दिलाकर जेल भेज दिया गया, जहां हमें एक माह रहना पड़ा। इस मामले मे डीआईजी ने जांच की और थाना प्रभारी नयन सुख दाड़ेल को दोषी पाया और उस पर कार्यवाही की गई।

जिस दिन 12/04/2013 को हमें गिरफ्तार किया गया उसी दिन थाना प्रभारी ने एक और फर्जी केस हम पर करा दिया ताकि हम जल्दी जेल से बाहर न आ सकें। थाना प्रभारी सब से कहते फिर रहे थे की एक साल तक सालों को जेल से बाहर आने नहीं दूंगा लेकिन मामले में बड़े अधिकारियों के आ जाने से उनकी दाल नहीं गली और हमे बिना केस डायरी देखे ही जज साहब ने बेल दे दी। इसके बाद 23/09/2013 को जादूगोड़ा से अवैध चिटफंड संचालक कमल सिंह लोगो का अरबों लेकर फरार हो गया इस घोटाले में कमल के कई एजेंट भी शामिल थे और एजेंटो को संरक्षण देने का काम कर रहा था जादूगोड़ा थाने का दलाल टिकी मुखी। हमने 12/11/2013 को अखबार में कमल के कई एजेंटो का नाम छापा जिसमें बाल्मीकी प्रसाद मेहता और हरीश भकत का नाम भी शामिल था। इस समाचार से टिकी की सेटिंग गड़बड़ाने लगी क्योंकि उसने एजेंटो को संरक्षण दिया हुआ था।

समाचार से बौखला कर टिकी मुखी ने बाल्मीकी मेहता की पत्नी से हमपर कोर्ट मे 30/11/2013 को झूठी शिकायत दर्ज़ करवा दी। इसके बाद इंस्पेक्टर पर हमला के आरोपी जुआ संचालओ को उच्च न्यायालय  से बेल पर रिहा किया गया। रिहा होने के कुछ दिनो बाद से ही टिकी मुखी उन्हे भड़काने लगा की उसके कारण ही तुम लोगों को जेल हुई थी और हब्बा-डब्बा जुआ क्षेत्र मे बंद हुआ है। यह जानकारी मिलने पर एक जुआ संचालक को हमने कहा की देखो टिकी मुखी तुम लोगों को भड़का रहा है जुआ खेलाना, नहीं खेलाना प्रशासन का काम है इसमे हमलोग क्या कर सकते है। इसके दूसरे दिन 12/01/2014 को जुआ संचालक भूषण प्रसाद और जगन्नाथ पात्रो सुबह हमारे दुकान पर आए और हमे धमकी देने लगे की तुम्हारे कारण जुआ नहीं हो रहा है तुम्हें देख लेंगे। हमने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया इस घटना के बाद उसी दिन शाम चार बजे भूषण प्रसाद ने जगन्नाथ पात्रो के फोन से मेरे बड़े भाई को धमकाया और दुकान घर मे तोड़फोड़ की भी धमकी दी।

हमनें पूरे मामले की जानकारी अविलंब थाना प्रभारी नन्द किशोर दास को दी, उन्होनें हमे सनहा दर्ज़ कराने की सलाह दी जिसके बाद शाम करीब 5 बजे मैंने सनहा दर्ज़ कराया। उसी समय थाना प्रभारी ने उनदोनों को भी थाने बुला लिया और पूछताछ के बाद दोनों पर धारा 107 का केस दर्ज किया। थाना प्रभारी के सामने ही भूषण प्रसाद ने हमें बलात्कार के मामले में फँसाने की धमकी दी, मैंने सनहा की प्रतिलिपि ली और अपने घर आ गया। इसके बाद टिकी मुखी ने भूषण प्रसाद से हम पर झूठा केस घाटशिला कोर्ट से 21/01/2014 को दर्ज़ करवा दिया।

……अब आप ही बताइये की हमने क्या गलत किया? पत्रकार सच नहीं लिखेगा तो क्या लिखेगा? क्या पत्रकार असामाजिक तत्वो के डर से सच्चाई लिखना छोड़ दे? मुझे ऐसा लगने लगा है कि सच्चाई को दबाने का माध्यम बन गया है झूठा केस और यह एक नयी संस्कृति को जन्म दे रहा है।

संतोष अग्रवाल
जादूगोड़ा(झारखंड)

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भड़ास4मीडिया को भेजा गया पत्र।

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