अपने आप को नम्बर वन बताने वाला अखबार दैनिक जागरण संवेदनहीनता में भी नम्बर वन होता जा रहा है. अपने कर्मचारियों के खून को पीकर मीडिया संस्थान से कारपोरेट संस्थान बनते जा रहे जागरण ग्रुप के बेरहमी का आलम यह है कि इस अखबार के यूनिटों में बंपर छंटनी की जा रही है. मेरठ, बनारस यूनिट से कई लोगों को इस्तीफा देने का फरमान सुना चुका अखबार प्रबंधन अब बरेली, मुरादाबाद एवं हल्द्वानी यूनिट में कर्मचारियों पर गाज गिराने जा रहा है.
इन तीनों यूनिटों से कम से कम दस लोगों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया है. इनमें से ज्यादातर ऐसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता का सबसे ज्यादा समय जागरण को दिया तथा अब रिटायरमेंट की कगार पर पहुंच चुके हैं. जागरण के अलावा किसी अन्य संस्थान के बारे में ना सोचने वाले लोगों के साथ प्रबंधन इस तरह का व्यवहार कर रहा है. दैनिक जागरण, बरेली से जिन लोगों को इस्तीफा देने या बाहर जाने को कहा गया है, उनमें जो नाम सामने आ रहे हैं उसमें निर्भय सक्सेना, अरुण द्विवेदी, रमेश चंद्र राय, सुधांशु श्रीवास्तव एवं नवीन द्विवेदी शामिल हैं.
इसी तरह मुरादाबाद यूनिट से प्रमोद झा एवं अखिलेश कुमार के नाम छंटनी की लिस्ट में शामिल किए गए हैं. हल्द्वानी में भी तीन लोगों का नाम बाहर किए जाने वालों की लिस्ट में शामिल किया गया है, हालांकि इन लोगों के नाम का खुलासा अभी नहीं हो पाया है. इस कवायद के कारण जागरण में काम करने वाला प्रत्येक कर्मचारी दहशत में है. किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उनकी गलती क्या है जो अचानक उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है. इन लोगों के निकाले जाने का कारण या अपनी गलती पूछने पर भी प्रबंधन कोई जवाब नहीं दे रहा है. बस ऊपर के आर्डर का हवाला देकर मामले से पल्ला झाड़ लिया जा रहा है.
दैनिक जागरण, बरेली के बारे में कहा जा रहा है कि छंटनी की पूरी लिस्ट संपादकीय प्रभारी अवधेश गुप्ता ने खुद तैयार की है. अपने चहेतों को बचाने तथा कंपनी पॉलिसी की आड़ लेकर वे उन लोगों को निपटाना चाह रहे हैं, जो उनके खुद के पैमाने पर फिट नहीं बैठते हैं. जागरण इसके साथ ही अपने कर्मचारियों में एक अविश्वसनीय ब्रांड भी बनता जा रहा है. क्योंकि जिन कर्मचारियों ने खून-पसीने से सींचकर इसे बड़ा किया, वही अखबार उनके रिटायरमेंट के समय उनसे पल्ला झाड़ रहा है. संभावना जताई जा रही है कि अगर ये क्रम जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं कि इस समूह को खोजे से भी ईमानदार व कर्मठ पत्रकार नहीं मिलेंगे.
बताया जा रहा है कि जागरण के बनिया मालिक नफा-नुकसान को देखते हुए हुए नई उम्र के लोगों को कम पैसे में रखने में यकीन कर रहे हैं और लंबे समय से कार्यरत लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला कर चुके हैं. छंटनी का दौर लंबा चलने वाला है. बताया जा रहा है कि बरेली में तो पत्रकारों ने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए प्रबंधन को निकालने की चुनौती दे दी है. प्रबंधन ने इन लोगों के साथ जोर जबर्दस्ती की तो मामला कोर्ट-कचहरी तक भी खींच सकता है. जब इस छंटनी और इस्तीफा मांगे जाने के संदर्भ में दैनिक जागरण, बरेली के संपादकीय प्रभारी अवधेश गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने ऐसी की भी बात से इनकार करते हुए कहा कि बरेली में किसी से इस्तीफा नहीं मांगा गया है.
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