Sheetal P Singh : JNU और DU छात्रसंघ के चुनावों के नतीजे चर्चा में हैं । BJP वाले छाती ठोंक रहे हैं कि ऐन विधानसभा चुनावों के पहले और मोदी को PM in waiting के ऐलान के साथ साथ DUSU पर उन्होंने ३-१ से जीत हासिल की । शीला दीक्षित सचमुच इस बार दबाव में हैं पर उन्हे BJP की लोकल यूनिट की उठापटक पर भरोसा है । फ़िलहाल DUSU में सिर्फ एक सीट आने से वे भी परेशान हैं । DUSU के नतीजों की सबसे ख़ास बात है AISA के पैनल को लगभग ८००० वोट सभी सीटों पर मिलना । लगभग ऐसा ही मत प्रतिशत विधानसभा में केजरीवाल की पार्टी को मिलने के क़यास कई surveys में सामने आये हैं । ये वाक़ई एक महत्वपूर्ण परिघटना है ।
JNU में नतीजे expected lines पर ही रहे । Afghanistan पर सोवियत रूस के हमले के बाद वाले चुनाव से SFI ने बुरी तरह हारने का जो सिलसिला शुरू किया था अब उस पर पक्की मुहर लग गई दिखती है । AISA ने इस vacuum को भर दिया लगता है । मुस्लिम छात्रों की क़रीब ८००-८५० की निर्णायक संख्या और Faculty और कर्मचारियों की वामपंथी झुकाव की यूनियनों के ambience वाली अपने क़िस्म की इकलौती University में वामपंथ को परास्त करना BJP/congress के छात्र संगठनों के लिये असंभव है । ऐसा तभी होगा जब मुस्लिम छात्रों में कोई इस्लामी क़वायद का संगठन आ खड़ा हो और कोई राष्ट्रीय/ अंतर्राष्ट्रीय घटना वामपंथी संगठनों से Islamic fundamentalism पर ठीक चुनाव के वक़्त decisive stand की मांग कर ले । जैसे कि शाहबानो प्रकरण पर SFI/AISF वाले आ फँसे थे ।
JNU में शुरू से ही (क़रीब चार दशक से ज़्यादा) वामपंथ ने जड़ें जमाईं । तमाम तरह के संगठन यहाँ बनते बिगड़ते रहे, लेकिन JNU gate के ठीक बाहर की ज़मीनी सच्चाइयों के सामने उनका दम निकल जाता है । साथ लगे मुनीरका में वे पार्षद के चुनाव तक में ज़मानत भी शायद ही बचा पायें हालाँकि CPM समेत तमाम दलों में JNU वाले शीर्ष पर हैं ।
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह के फेसबुक वॉल से.