केजरीवाल सरकार इसलिए कमजोर नहीं कि बागी बिन्नी के बाद उसके पास 27 विधायक हैं। बल्कि सरकार की आंतरिक कमजोरियां ये है कि इस सरकार के पास भ्रष्टाचार की चाशनी से निकले खनकते सिक्कों का भंडार नही है। जिसमें से खैरात के रूप कुछ पैसा मीडिया के एक खास समूह को दिया जा सके, जो दो प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस के बचाव पक्ष में उतरता रहा है। आप की सरकार के संपर्क में इमानदारी से पक्ष रखने के लिए इंडियन एक्सप्रेस समूह के बिक्रम राव जैसे पत्रकार नहीं है। इस सरकार के पास तो चंदन मित्रा और प्रभु चावला जैसे पत्रकार भी नहीं हैं। एनडीटीवी की बरखा, एचटी के विनोद जैसे पत्रकारों को तो इस केजरीवाल सरकार से घिन आ रही है। अपने देश में अनेक विवधाओं और संस्कृतियों के टीवी दर्शक है, जो है कि अन्ना की सहयोगी किरण बेदी को भाषा के भावार्थ को समझ रहे है।
किरन को ताल ठोक कर बात करने से पहले देश की राज्य सरकारों के इतिहास में जाना चाहिए। किरण बहन, जब आप पुलिस विभाग में बड़े पद पर नौकरी में थी, तब आदर्शवाद और सुचिता, नैतिकता की बात करने वाले अधिकारी को काले पानी समझे जाने वाले विभागों में भेजा जाता था। आज जिस तर्ज पर दिल्ली पुलिस व प्रदेश के मंत्री की भूमिका को लेकर आत आप बोल रहीं हैं, यदि आपने इसी आर्दशवाद और मोराल का पालन पुलिस की नौकरी करते समय किया होता तो, गांधी परिवार के वफादार सिपाही आपका हाल हरियाणा के अधिकरी अशोक खैमका से भी बुरा कर चुके होते। मैडम बेदी जी, राजकुमार गौतमबुद्ध की तरह राजमहल छोड़ कर, खुले आसमान तले पीपल के पैड़ के नीचे बैठना और रेल भवन की सड़क पर बैठनां आसान काम नहीं है।
आसान तो शानदार, कोमल कालीन युक्त टीवी और ऐयरकंडिशनरों के कार्यालयों मे बिना खांसी के से भाषा का कौशल दिखाना है। केजरीवाल राजकुमार गौतमबुद्ध तो नहीं हो सकते है, परन्तु केजरीवाल की तरह ऊंचे और रसूकदार ओहदों को त्यागने की क्षमता रखने वाले लोग, अपने देश की नौकरशाही में कितनें हैं। यह प्रश्न, कम से कम दिल्ली राज्य में, यक्ष की तरह जवाब की तलाश में है।
लेखक 'मेलिनियम पोस्ट' के संयोजक हैं, उनसे संपर्क ईमेल [email protected] या मो. 09999460074 पर किया जा सकता है।