आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा उत्तर प्रदेश के विभिन्न अन्वेषण एजेंसियों- सतर्कता अधिष्ठान, सीबी-सीआईडी, आर्थिक अपराध अनुसन्धान संगठन (ईओडब्ल्यू), एसआईबी को-ऑपरेटिव तथा भ्रष्टाचार निवारण संगठन (एसीओ) की जांच प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश सरकार के नियंत्रण को समाप्त किये जाने के सम्बन्ध में आज इलाहाबाद हाई कोर्ट, लखनऊ बेंच में पीआईएल दायर की है.
याचिका में कहा गया है कि अपराधों का अन्वेषण और इनकी जांच दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अनुसार की जाती है. सीआरपीसी में आपराधिक विवेचना का पूरा दायित्व और पूरे अधिकार अन्वेषण अधिकारी और उसके वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को हैं. जांचकर्ता अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह विवेचना करके उसके परिणाम से सीधे न्यायालय को अवगत कराएगा. इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में सतर्कता अधिष्ठान शासन के सतर्कता विभाग और सीबी-सीआईडी, ईओडब्ल्यू, एसआईबी तथा एसीओ गृह विभाग को अपनी जांच आख्या सौंपते हैं और वे ही इन पर अंतिम निर्णय करते हैं.
अमिताभ और नूतन के अनुसार यह व्यवस्था दाण्डिक विधि के विरुद्ध है और इससे जांच और विवेचना में बाहरी अवांछनीय दवाब की बहुत अधिक संभावना बढ़ जाती है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विनीत नारायण बनाम भारत सरकार और कोलगेट घोटाले में सीबीआई के सम्बन्ध में विस्तार से की गयी टिप्पणियों के आधार पर यह प्रार्थना की गयी है कि इस सभी जांच एजेंसियों- सतर्कता अधिष्ठान, सीबी-सीआईडी, ईओडब्ल्यू, एसआईबी तथा एसीओ को निर्देशित किया जाए कि वे अपनी जांच आख्या अंतिम निर्णय के लिए शासन को नहीं भेज कर इन पर स्वयं अंतिम निर्णय लें ताकि जांच और अन्वेषण पर कथित रूप से पड़ने वाले बाह्य दवाबों से मुक्ति मिल सके.