थाना गोमतीनगर, जनपद लखनऊ में बच्ची के दुराचार और हत्या मामले में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने पीड़ित पक्ष से बातचीत के बाद देवराज नागर, डीजीपी, यूपी को पत्र लिख कर इस मुकदमे में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 6 बढाए जाने की मांग की है. अभी मुकदमे में यह महत्वपूर्ण आपराधिक धारा नहीं लगाई गयी है जो गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला से सम्बंधित है और जिसमें न्यूनतम दस वर्ष के कठोर कारावास की सजा है.
इस अधिनियम की धारा 19(2) के अनुसार स्थानीय पुलिस थाने की यह विधिक जिम्मेदारी है कि वह तत्काल ऐसे प्रकरणों में अपराध पंजीकृत करे. इस धारा के अनुसार ना सिर्फ अपराध के वास्तव में घटने बल्कि अपराध होने की संभावना भी सम्मिलित है. यदि कोई भी पुलिस कर्मी तत्काल मुक़दमा दर्ज नहीं करता है तो वह भी धारा 21 में अपराधी माना जाएगा, जिस पर छः माह के कारावास और जुर्माना की सजा है. ठाकुर ने इस घटना में धारा 19(2) के प्रावधानों के तहत जिम्मेदार थाना गोमतीनगर के प्रत्येक उस पुलिस कर्मी के विरुद्ध धारा 21 में मुक़दमा दर्ज कर कार्यवाही की मांग की है जिन्होंने तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं किया.
सेवा में,
पुलिस महानिदेशक,
उत्तर प्रदेश,
लखनऊ
विषय- थाना गोमतीनगर में एक बच्ची से हुए जघन्य और हिंसक दुराचार और निर्मम हत्या विषयक
महोदय,
कृपया थाना गोमतीनगर, जनपद लखनऊ में एक गरीब बच्ची के साथ हुए जघन्य और हिंसक दुराचार और निर्मम तथा पाशविक हत्या का सन्दर्भ ग्रहण करने की कृपा करें. इस प्रकरण में अब पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट के बाद हत्या और दुराचार का मुक़दमा पंजीकृत किया जा चुका है और इस मामले में समाचार पत्रों के अनुसार थानाध्यक्ष और अन्य पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच भी संभवतः क्षेत्राधिकारी, गोमतीनगर द्वारा कराई गयी है.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का यह भी दावा है कि शीघ्र इस प्रकरण का अनावरण कर लिया जाएगा, जिस पर अभी टिप्पणी करना शायद जल्दीबाजी होगी. मैं आज इस घटना के मौके पर गयी थी और मिठाईवाला चौराहा के पास स्थित बच्ची के माँ के घर भी. इसके अलावा मैं बच्ची की माँ के चिनहट थाने के पीछे स्थित आवास भी गयी. मैंने इन सभी जगहों पर पीड़ित पक्ष के कई लोगों से भी वार्ता की. मैंने विभिन्न चैनलों पर प्रसारित समाचारों को देखा और अपने पत्रकार साथियों की मदद से बच्ची ले शव मिलने के दिन उस बच्ची की माँ द्वारा कही जा रही बातों की विडियो क्लिपिंग भी मैंने प्राप्त की. इन सब तथ्यों के आधार पर मैं निम्न निश्चित मंतव्य पर पहुंची हूँ-
1. यह दुराचार और हत्या की घटना दिनांक 07/08 2013 की रात्रि की है
2. उसी रात्रि बच्ची की माँ ने आसपास तलाश किया लेकिन बच्ची नहीं मिली तो वे रात में ही थाने गयी. वहाँ उसे भगा दिया गया लेकिन पुनः जाने पर दो पुलिसवाले साथ गए, कुछ देर घूम कर फिर वापस लौट गए
3. दिनांक 08/07/2013 सुबह 04.30 बजे लाश मिली जो एक टहलने वाले ने लोगों को सूचित किया. बच्ची की माँ को भी सूचना मिली और वह मौके पर गयी.
4. पुलिस भी मौके पर गयी जहाँ पंचनामा आनन-फानन में किया गया और शव अंतिम संस्कार कराने हेतु सौंप दिया गया. लोगों के विरोध करने पर पोस्ट मॉर्टम कराया गया
5. जहाँ बच्ची की माँ कह रही थी कि दुराचार हुआ है और सिगरेट के दागने का निशान भी बता रही थी, वहीँ थानाध्यक्ष गोमतीनगर और अन्य पुलिस के लोग कह रहे थे कि कुत्ते के नोचने से मौत हुई है
6. थाने ने बच्ची की माँ की बात दरकिनार करते हुए जबरदस्ती एक तहरीर लिखवाई और दिनांक 08/07/2013 को कोई मुक़दमा नहीं पंजीकृत किया गया
7. पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट के बाद ही दिनांक 09/07/2013 को मुक़दमा दर्ज हुआ
मैं यहाँ अन्य सभी बातों के अलावा मुख्य रूप से लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2005 (Protection of Child from Sexual Protection Act 2005) का उल्लेख करना चाहूंगी. इस अधिनियम की धारा 6 जो गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला (Aggravated penetrative sexual assault) से सम्बंधित है, में न्यूनतम दस वर्ष के कठोर कारावास की सजा बतायी गयी है. इस गरीब और असहाय बच्ची के मामले में भी यह धारा छः का अपराध अत्यंत दानवीय और पाशविक ढंग से कारित किया गया है. अतः मैं आपसे पहला निवेदन यह करुँगी कि इस अभियोग में नियमानुसार तत्काल धारा छः सम्मिलित किये जाने के निर्देश जारी करें.
इसके अतिरिक्त इस अधिनियम की धारा 19(2) के अनुसार स्थानीय पुलिस थाने की यह विधिक जिम्मेदारी है कि वह तत्काल ऐसे प्रकरणों में अपराध पंजीकृत करे. इस धारा के अनुसार ना सिर्फ अपराध के वास्तव में घटने बल्कि अपराध होने की संभावना भी सम्मिलित है. अतः पुलिस इस बात का सहारा नहीं ले सकती कि मात्र आशंका के आधार पर मुक़दमा पंजीकृत नहीं किया जा सकता. इसी अधिनियम की धारा 21 के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति धारा 19(2) में दी गयी जिम्मेदारी के विपरीत मुक़दमा दर्ज नहीं करता है तो वह भी इस अधिनियम में अपराधी माना जाएगा और उसे छः माह के कारावास और जुर्माना की सजा है.
अतः मैं लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधियम 2005 की धारा 19(2) तथा 21 में दिये प्रावधानों के अनुसार यह मांग करती हूँ कि इस प्रकरण में दुराचार और हत्या के दोषी पाए गए लोगों के अलावा थाना गोमतीनगर के प्रत्येक उस पुलिस कर्मी के भी उक्त अधिनियम के अंतर्गत अपराध का निर्धारण करने के आदेश निर्गत करने की कृपा करें.
भवदीय
नूतन ठाकुर
गोमती नगर, लखनऊ