पिछले दिनों लखनऊ दूरदर्शन ने अपनी समाचार सेवा के विभिन्न पदों हेतु आवेदन आमंत्रित किए थे। ये स्थायी पद नहीं थे, संविदा के थे और पहले भी इस प्रकार की भरती हुई हैं, लेकिन पत्रकारिता में जिस प्रकार की अनिश्चय की स्थिति है, बहुत सारे संस्थान के युवा पत्रकार साथियों ने इस पद हेतु आवेदन किया था। संस्थान सरकारी है तो वेतन भी बुरा नहीं था, इसका भी आकर्षण था लेकिन ऐसे साथियों के पैरों तले जमीन तब खिसक गई जब उन्हें पता चला कि लिखित परीक्षा हो गई है और अब साक्षात्कार होने हैं। वास्तव में बड़ी संख्या में आवेदकों को यह जानकारी ही नहीं मिल सकी कि लिखित परीक्षा कब होनी है। ऐसे में नाराज इन साथियों को किसी षड़यंत्र की बू आ रही है।
इस सम्बन्ध में जब कुछ आवेदकों ने लखनऊ दूरदर्शन के निदेशक(समाचार) आरपी सरोज से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि परीक्षा की सूचना लखनऊ दूरदर्शन की वेबसाइट पर उपलब्ध थी। दूरदर्शन के समाचार में भी इस बारे में जानकारी दी गई थी। उन्होंने स्वीकार किया है कि मेल या फोन से इस सम्बन्ध में सूचना नहीं दी जा सकी थी। खुद सरोज बताते हैं कि आवेदन भरने वालों की संख्या एक हजार से अधिक थी, जबकि परीक्षा में करीब 250 शरीक हो सके अर्थात् एक चौथाई। नाराज आवेदकों का कहना है कि अगर सूचना वेबसाइट पर दी जानी थी तो इसकी पूर्व सूचना होनी चाहिए थी या आवेदन पत्र में इसका उल्लेख होना चाहिए था। उनकी शिकायत जायज लगती है।
(पत्रकार आलोक पराड़कर की फेसबुक वॉल से)