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लखनऊ

नेताजी की दीवानगी में महमूद ने बर्बाद किया घर-बार

क्या किसी नेता का कोई ऐसा समर्थक हो सकता है जो नेता के लिए अपना घर-बार अपनी दुनिया को कुर्बान कर दे। हरदोई के महमूद भारतीय मुलायम सिंह यादव के ऐसे ही समर्थक है जिन्होने नेताजी के लिए अपने घर के चार-चार लोगो को खो दिया। महमूद भारतीय कभी समाजवादी युवजन सभा के महासचिव हुआ करते थे और मुलायम सिंह यादव के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे। मुलायम सिंह कही फंसे ना इसलिए वो पहले से ही पूरे जोर-शोर से आंदोलन की कमान सम्हाल लेते थे ताकी नेता जी की मुहीम में कोई बाधा ना पड़े। लेकिन नेता जी के लिए ये जूनून इस तरह महमूद को अर्श से फर्श पर ला देगा इसका अंदाज़ा खुद उन्हे भी ना था।
क्या किसी नेता का कोई ऐसा समर्थक हो सकता है जो नेता के लिए अपना घर-बार अपनी दुनिया को कुर्बान कर दे। हरदोई के महमूद भारतीय मुलायम सिंह यादव के ऐसे ही समर्थक है जिन्होने नेताजी के लिए अपने घर के चार-चार लोगो को खो दिया। महमूद भारतीय कभी समाजवादी युवजन सभा के महासचिव हुआ करते थे और मुलायम सिंह यादव के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे। मुलायम सिंह कही फंसे ना इसलिए वो पहले से ही पूरे जोर-शोर से आंदोलन की कमान सम्हाल लेते थे ताकी नेता जी की मुहीम में कोई बाधा ना पड़े। लेकिन नेता जी के लिए ये जूनून इस तरह महमूद को अर्श से फर्श पर ला देगा इसका अंदाज़ा खुद उन्हे भी ना था।
 
महमूद भारतीय नेता जी के किसी काम को पूरा ना कर पाये जिससे वो सदमे में रहने लगे। उनकी जुबां पे हर समय सिर्फ नेता जी का ही नाम रहता था। भाई की इस हालत से परेशान हो कर बहन नेता जी से मिलने लखनऊ गई। पता चला कि नेता जी किसी काम लेकर दिल्ली गए हुए हैं तो बहन नेता जी से मिलने दिल्ली चल पड़ी। लेकिन भगवन को कुछ और ही मंजूर था। एक सड़क दुर्घटना में महमूद की बहन की मौत हो गयी। लेकिन बदकिस्मती ने एक जान लेने के बाद भी इस शख्स का पीछा नहीं छोड़ा। अब बारी थी पिता की जो बार-बार समझाते रहे कि सब करो पर आँखे बंद करके नहीं। लेकिन महमूद नेताजी के पीछे इतने बावले थे कि लाख समझने के बाद भी नहीं माने, पिता बीमार रहने लगे घर का अच्छा खासा बिजनस बर्बाद हो गया। घर में पैसों का अभाव रहने लगा। दवा के आभाव में पिता की भी मौत हो गयी।
 
बहन के बाद पिता की असामयिक मौत ने गहरा धक्का दिया लेकिन नेता जी के पास जाने की ख्वाहिस अभी कम नहीं हई। नेताजी से मिलने का नाकाम प्रयास जारी रहा। घर में बचे थे सिर्फ भाई, माता, बीवी और तीन बच्चे। घर-परिवार के भरण-पोषण पर संकट के बादल मंडराने लगे। महमूद की माता भी उनका का साथ छोड़ चलीं। अब सारी जिम्मेदारी महमूद के भाई पर आ गई। भाई प्रेशर झेल नहीं सका और उसकी भी मौत हो गयी। अखिर में महमूद कि पत्नी ने दोनो छोटे बच्चो को साथ लेकर ये कहकर घर छोड़ दिया कि तुम जब अपनी जिंदगी नहीं संभल सकते तो क्या हमारी संभलोगे। इस सदमें से महमूद पूरी तरह टूट गया। सब ने साथ छोड़ दिया लेकिन इस घडी में महमूद का साथ दिया उनकी बड़ी बेटी ने। पिता और बेटी फिर निकल पड़े नेताजी से मिलने की मुहीम लेकर।
 
लगातार 27 साल मुलायम के साथ राजनीति में अच्छे भविष्य के लिए संघर्षरत रहे महमूद भारतीय का ये समय भले ही बहुत बुरा जा रहा हो लेकिन आगाज़ काफी अच्छा रहा है। महमूद ने मुलायम सिंह यादव के साथ कई आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पिछली सरकार में अपनी मांगो को लेकर कई बार जेल गए और लाठिया भी खाईं। उन पर सात मुक़दमे भी दर्ज़ हुए।
 
महमूद बताते हैं कि वो कई बार नेताजी से मिलने समाजवादी पार्टी कार्यालय गए लेकिन हर बार 'फिर आना' कहकर लौटा दिए जाते। महमूद लौट आते इस वादे के साथ कि फिर आयेंगे जब आने-जाने का किराया हो जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि कहां है वो समाजवाद, कहां है वो लोहिया की यादें, कहां है वो सारे वादे जिसको लेकर समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटी है। 
 
30 सितंबर को जब मुलायम सिंह क्रांतिरथ पर सवार होकर कस्बा बिलग्राम पहुंचे थे तो महमूद को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। वो तस्वीर भी पोस्टरों में छप कर रह गई।
 
 
घनश्याम चौरसिया 
संवाददाता, 
एडीएस न्यूज़ एजेंसी, लखनऊ। 
9956442396
9415359562
 
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