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मोदी के अधूरे इंटरव्यू की कहानी सुनिए साक्षात्कारकर्ताओं करण थापर और विजय त्रिवेदी की जुबानी

बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर इसके युवा व तेजतर्रार संवाददाता तुषार बनर्जी की एक रिपोर्ट छपी है. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को लेकर. शीर्षक है- ''सवालों से क्यों मुंह चुरा रहे हैं राहुल-मोदी?''. इसमें उन दो पत्रकारों से बातचीत की गई है जिनके इंटरव्यू के दौरान नरेंद्र मोदी बीच में ही असहज हो गए और इंटरव्यू छोड़कर चले गए या इंटरव्यू रुकवा दिया. करण थापर और विजय त्रिवेदी ने अपनी जुबानी नरेंद्र मोदी के उस अधूरे इंटरव्यू की कहानी बयान की है. साथ ही शाहिद सिद्दीकी ने भी बताया है कि किस तरह उन्हें नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने का मौका मिला और वे जब पहुंचे इंटरव्यू करने तो क्या हुआ.

बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर इसके युवा व तेजतर्रार संवाददाता तुषार बनर्जी की एक रिपोर्ट छपी है. राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को लेकर. शीर्षक है- ''सवालों से क्यों मुंह चुरा रहे हैं राहुल-मोदी?''. इसमें उन दो पत्रकारों से बातचीत की गई है जिनके इंटरव्यू के दौरान नरेंद्र मोदी बीच में ही असहज हो गए और इंटरव्यू छोड़कर चले गए या इंटरव्यू रुकवा दिया. करण थापर और विजय त्रिवेदी ने अपनी जुबानी नरेंद्र मोदी के उस अधूरे इंटरव्यू की कहानी बयान की है. साथ ही शाहिद सिद्दीकी ने भी बताया है कि किस तरह उन्हें नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने का मौका मिला और वे जब पहुंचे इंटरव्यू करने तो क्या हुआ.

सबसे पहले करण थापर के इंटरव्यू की बात. वरिष्ठ पत्रकार करण थापर ने सीएनएन-आईबीएन के कार्यक्रम 'डेविल्स एडवोकेट' के लिए साल 2007 में नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार किया था. हालांकि इंटरव्यू शुरू होने के महज़ साढ़े तीन मिनट बाद ही मोदी इंटरव्यू छोड़कर चले गए थे. करण थापर इस बारे में बताते हैं:  ''गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साल 2007 में हुआ मेरा इंटरव्यू महज़ तीन-साढ़े तीन मिनट तक चल पाया था. गुजरात दंगों पर देश से माफ़ी मांगने के मेरे सवाल पर नरेंद्र मोदी इंटरव्यू छोड़कर चले गए थे. साढ़े तीन मिनट की रिकॉर्डिंग के बाद अगले क़रीब एक घंटे तक मैं उन्हें ये समझाने की कोशिश करता रहा कि इंटरव्यू पूरा करना ज़रूरी है, क्योंकि एक मुख्यमंत्री का किसी इंटरव्यू के बीच से उठकर चला जाना अपने आप में एक ख़बर है और इसे एक ख़बर की तरह ही टीवी न्यूज़ बुलेटिन्स में दिखाया जाएगा. दूसरा रास्ता यह था कि वो रुक जाते और इंटरव्यू पूरा करते, तो ये ख़बर शायद एक-दो बार ही चलती जिसके बाद पूरा इंटरव्यू चला दिया जाता. लेकिन वो मेरी बात नहीं समझे. नरेंद्र मोदी ने मुझसे कहा कि उनका मूड ख़राब हो गया है और अब वो किसी और दिन ही इंटरव्यू कर पाएंगे. अगले पूरे दिन वही साढ़े तीन मिनट का इंटरव्यू सीएनएन-आईबीएन चैनल पर प्रत्येक बुलेटिन पर चलाया गया, पूरे दिन क़रीब में क़रीब 40 बार. उसी शाम नरेंद्र मोदी ने मुझे फ़ोन पर कहा कि ‘तुम बंदूक को मेरे कंधे रखकर गोली मार रहे हो’. मैने उन्हें बताया कि बिल्कुल वहीं हुआ है जिसकी कल मैंने कल्पना की थी और आपको बताया भी था. उन्होंने हंसकर कहा, 'चलो कोई बात नहीं. भाई, मैं आपसे बेहद प्यार करता हूं. हम दिल्ली आएंगे तो साथ मिलकर भोजन करेंगे.' हालांकि, यह मेरी बदकिस्मती रही कि उनके साथ कभी भोजन नहीं कर पाया. जहां तक मुझे याद पड़ता है उसके बाद कभी मेरी उनसे बात नहीं हुई. मैने उन्हें कई चिठ्ठियां लिखी लेकिन कभी किसी का जवाब नहीं मिला.''

टेलीविज़न चैनल एनडीटीवी के लिए वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया था. अपना अनुभव विजय त्रिवेदी यूं बयान करते हैं: ''अप्रैल 2009 की बात है जब मैंने नरेंद्र मोदी के साथ एक इंटरव्यू किया था. योजना थी की हम अहमदाबाद से नरेंद्र मोदी के साथ हेलिकॉप्टर पर दो रैलियों में जाएंगे, उन्हें इंटरव्यू करेंगे. बाद में नरेंद्र मोदी को दूसरे एक विमान से मुंबई जाना था और हमें चॉपर से वापस अहमदाबाद आना था. जब हम अहमदाबाद में हेलिकॉप्टर में बैठे तो हमें बताया गया था कि यात्रा का समय 45 मिनट है. हमें क़रीब 30 मिनट का इंटरव्यू करना था तो हम तुरंत शुरू हो गए. सवाल शुरू करने के लगभग 5-7 मिनट बाद ही नरेंद्र मोदी थोड़े असहज हो गए थे इसके बावजूद जब हम अपने सवाल दोहराते रहे, 10-12 मिनट में वो पूरी तरह से असहज हो गए और इंटरव्यू रोकने का इशारा करने लगे. इंटरव्यू बंद हो गया और उसके बाद 10-15 मिनट तक हम दोनों अगल-बगल बिना एक दूसरे की तरफ देखे बैठे रहे. हेलिकॉप्टर के उतरते ही नरेंद्र मोदी ने मुझसे कहा कि ‘विजय भाई यह हमारी आख़िरी मुलाक़ात है. आपके लिए एक गाड़ी की व्यवस्था की जा रही है, आप उससे लौट जाएं.’ हमने उनसे कहा कि वो चिंता न करे, अपने लिए गाड़ी की व्यवस्था हम खुद ही कर लेंगे. तब से अब तक नरेंद्र मोदी से हमारी कोई बात नहीं हुई. हमने स्पष्ट तौर पर कहा था कि हम नरेंद्र मोदी को जनता का नुमाइंदा मानते हैं और उनसे उन्ही सवालों को पूछा जिनका जवाब जनता सुनना चाहती है. मौका मिलेगा तो उन सवालों को हम फिर पूछेंगे.''

ऊर्दू नई दुनिया पत्रिका के संपादक और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीक़ी ने जुलाई 2012 में नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया था. सुनिए उनका अनुभव: ''जहां तक नरेंद्र मोदी के साथ मेरे साक्षात्कार की बात है तो वो अचानक हुआ. मेरा कोई इरादा नहीं था उन्हें इंटरव्यू करने का. मैं नई दुनिया ऊर्दू का संपादक और समाजवादी पार्टी से जुड़ा हुआ था. मैने कई मौकों पर उनकी मुख़ालफ़त भी की थी. मुंबई मे एक दिन मैं सलमान ख़ान के पिता सलीम ख़ान और फ़िल्म निर्माता महेश भट्ट के साथ बैठा हुआ था, तभी सलीम ख़ान ने मुझसे पूछा कि मैं नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार क्यों नहीं करता. मैने जवाब में उनसे कहा कि मोदी बात नहीं करते और साक्षात्कार के नाम पर कतराते हैं. ये बात ज़ेहन में कहीं फंसी रह गई. कुछ दिनों बाद नरेंद्र मोदी के दफ़्तर में कोई मिला जिनके ज़रिए मैने नई दुनिया ऊर्दू के संपादक की हैसियत से साक्षात्कार का प्रस्ताव भेजा और मुझे नरेंद्र मोदी की स्वीकृति मिल गई. उन्होंने सवाल मांगे, लेकिन हमने उन्हें सवाल देने से मना कर दिया और बताया कि हम सीधे साक्षात्कार में ही सवाल पूछते हैं. मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम बातों को तोड़ते-मरोड़ते नहीं है और जो बाते वो कहेंगे उसे बिना छेड़े अख़बार में छापेंगे. हमारी शर्त ये थी कि वो इंटरव्यू पूरा करेंगे और आधे में छोड़कर भागेंगे नहीं. हम इंटरव्यू करने पहुंचे तो देखा कि कई लोग वीडियो कैमरों के साथ भी तैनात थे ताकि जो कुछ भी मोदी कहें उसका रिकॉर्ड रखा जाए. मैने शालीनता से उनसे तमाम ऐसे सवाल पूछे जो उस समय तक पूछे नहीं गए थे, या किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की थी. उन्होंने सबके जवाब भी दिए. ये एक ऐसा इंटरव्यू था जिसे काफ़ी समय तक लोग नरेंद्र मोदी का दिमाग पढ़ने के लिए सुनना-पढ़ना पसंद करेंगे.''


करण थापर और विजय त्रिवेदी वाले मोदी के अधूरे इंटरव्यू देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें…

जब जब होवे दंगे की बात… तब तब पानी मांगत जात! (देखें दो वीडियो)

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