नया कंपनी कानून ‘कंपनी अधिनियम 2013’ के रूप में अवतार ले चुका है। ढेर सारे प्रावधान बनाने का अधिकार विभिन्न धाराओं के अंतर्गत केंद्र सरकार को दिया गया है और केंद्र सरकार उन्हें बनाने, प्रकाशित करने व जनता के सुझाव का इंतजार कर रही है। फिलहाल कुछ धाराओं (98) जिनके अंतर्गत केंद्र सरकार को कोई प्रावधान नहीं बनाने हैं उन्हें 12 सितंबर 2013 से अमल में लाया गया है। इसके चलते कंपनी अधिनियम 1956 एवं कंपनी अधिनियम 2013 कुछ काल के लिए लंगड़ी खेलते हुये साथ साथ चलेंगे। ऐसे में कंपनियों को व उनके सलाहकारों को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा वह अभी व्यक्त नहीं की जा सकती हैं। आगे आगे देखिये क्या होता है?
सबसे पहला झटका इस नए कानून ने यह दिया है कि निजी और सार्वजनिक (पब्लिक) कंपनियों में भेद को काफी कम कर दिया है। अब सिर्फ इतना ही भेद बचा है:
· सार्वजनिक कंपनी के लिए जहां न्यूनतम प्रदत्त पूंजी की सीमा 5 लाख तथा निजी कंपनी के लिए 1 लाख रखी गयी है।
· सार्वजनिक कंपनी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 तथा निजी कंपनी के लिए 2 होनी चाहिए।
· जहां सार्वजनिक कंपनी में अधिकतम सदस्यों के लिए कोई सीमा नहीं रखी गयी है वहीं निजी कंपनी के लिये यह 200 है।
· निदेशकों की संख्या सार्वजनिक कंपनी के लिए न्यूनतम 3 तथा अधिकतम 15 जबकि निजी कंपनी के लिए न्यूनतम 2 और अधिकतम 15 रखी गयी है।
· सार्वजनिक कंपनियों में जहां शेयर हस्तांतरण पर कोई प्रतिबंध नहीं है वहीं निजी कंपनियों के लिए यह अंतर्नियमों में निर्दिष्ट किया गया है।
· सार्वजनिक कंपनियाँ अपनी प्रतिभूतियाँ जनता को आवंटित कर सकती हैं जबकि निजी कंपनियां नहीं कर सकती हैं।
· सार्वजनिक कंपनियों के निदेशकों का वेतन धारा 197 के अनुसार निर्धारित होगा लेकिन निजी कंपनियों के वेतन की कोई सीमा निश्चित नहीं है।
सबसे बड़ा धक्का छोटी प्राइवेट कंपनियों के लिए यह है कि अब उसके निदेशकों को यदि अपना वेतन भी लेना हो तो उन्हें 2 असम्बद्ध निदेशकों की नियुक्ति करनी पड़ेगी। यह छोटी प्राइवेट कंपनियों के लिए एक कठिन काम होगा।
प्राइवेट कंपनियों की निम्नलिखित सुविधाएं नए कानून द्वारा समाप्त की गई हैं:
· पुराने कंपनी कानून में प्राइवेट कंपनी को विभेदात्मक अधिकार अथवा गैर-आनुपातिक मताधिकार वाले शेयर जारी करने की अबाधित छूट थी जो नए कानून द्वारा समाप्त कर दी गई है। अब सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों पर ही विभेदात्मक अधिकार वाले शेयर (shares with differential voting rights) जारी किए जा सकेंगे। अब तक जो विभेदात्मक अधिकार अथवा गैर-आनुपातिक मताधिकार वाले शेयर [shares with differential/ disproportionate voting rights] जारी किए जा चुके है उनके बारे में अभी कोई खुलासा नहीं है।
· अब निदेशकों को या उनसे संबन्धित लोगों को ऋण देना वर्जित है। प्रबंध निदेशक या पूर्णकालिक निदेशक के लिए इसमें थोड़ी रियायत है।
· यदि प्राइवेट कंपनी नए शेयर जारी करती है तो उसे ये शेयर मौजूदा शेयर धारकों को आबंटित करना होगा। यदि ऐसा न करना हो तो आम सभा में विशेष प्रस्ताव पारित करना आवश्यक होगा।
· आम सभाओं के आयोजन से संबन्धित सारी छूटों को समाप्त कर दिया गया है। अब प्राइवेट कंपनी को भी 21 दिन की नोटिस जारी करनी होगी। यही नहीं बल्कि विशेष कारोबार और विशेष प्रस्तावों के लिए व्याख्यात्मक विवरण (explanatory statement) नोटिस के साथ संलग्न करना होगा।
· प्राइवेट कंपनी द्वारा कंपनी पंजीयक के पास दाखिल किया गया लाभ हानि पत्रक अब आम जनता को निरीक्षण के लिए उपलब्ध होगा और उसकी सत्यापित प्रति कोई भी व्यक्ति कंपनी पंजीयक से प्राप्त कर सकेगा जो कि प्राइवेट कंपनी के हित में नहीं होगा।
· संबन्धित पक्षों (related parties) के साथ खरीद बिक्री इत्यादि के अनुबंधों की मंजूरी के लिए असम्बद्ध निदेशक मण्डल की आवश्यकता होगी। निर्धारित राशि से अधिक प्रदत्त पूंजी वाली कंपनी या निर्धारित राशि से अधिक की खरीद बिक्री के व्यवहार के लिए आम सभा से विशेष संकल्प द्वारा मंजूरी लेनी होगी और उस आम सभा में संबन्धित सदस्य को अपना मताधिकार प्रयोग करना निषिद्ध होगा।
· दूसरी कंपनी इत्यादि में निवेश करने या ऋण देने के बारे में में प्राइवेट कंपनी को खुली छूट थी। अब इस पर सार्वजनिक (पब्लिक) कंपनी जैसा प्रतिबंध आ गया है।
· निदेशक मण्डल कंपनी के कारोबार के लिए चाहे जितना ऋण बिना आम सभा की मंजूरी के ले सकते थे और कंपनी की तमाम चल अचल संपत्ति भी बेच सकते थे। अब इस प्रकार के मामलों में आम सभा द्वारा विशेष संकल्प द्वारा मंजूरी आवश्यक होगी।
राजनीतिक दलों को लाभ का अधिकतम 5% हिस्सा दान किया जा सकता था जो कि अब बढ़ा कर 7.5% कर दिया गया है।
कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के बारे में इतना हल्ला गुल्ला मीडिया वालों ने मचाया हुआ था जबकि यह सब कंपनियों के लिए अनिवार्य है ही नहीं और जिनके लिए निर्धारित किया गया है वे भी अपने निदेशक मण्डल की रिपोर्ट में कारण बता कर छूट सकती हैं।
गलती होने पर दंड के प्रावधानों में काफी बढ़ोतरी की गई है। देखने की बात है कि दंड के मामलों में लघु कंपनी, प्राइवेट कंपनी और बड़ी कंपनी में कोई फर्क नहीं रखा गया है।
लघु कंपनी (small company): ऐसी कंपनी जिसकी प्रदत्त पूंजी 50 लाख से अधिक नहीं है या जिसका वार्षिक कारोबार 2 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त पूंजी की सीमा 5 करोड़ तक और कारोबार की सीमा 20 करोड़ तक बढ़ाई जा सकती है।
इन कंपनियों को निम्नलिखित रियायत उपलब्ध होगी:
· वार्षिक विवरणी (Annual Return) पर कंपनी सचिव के हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं होगी।
· जहाँ हर कंपनी को एक वर्ष में निदेशक मण्डल की चार बैठकें (मीटिंग) लेना अनिवार्य है वहाँ लघु कंपनी यदि हर अर्ध वर्ष (each half of a calendar year) में एक बैठक करती है और उन दो बैठकों में यदि 90 दिन से कम का अंतर न हो तो यह कानूनी रूप से पर्याप्त माना जाएगा।
· लघु कंपनी को नगदी प्रवाह विवरण (कैश फ्लो) बनाने की आवश्यकता नहीं है।
निष्क्रिय कंपनी (dormant company): ऐसी कंपनी जिसका पंजीयन भविष्य में व्यापार करने के उद्देश्य से किया गया है और जिसमें चल अचल या बौद्धिक संपत्ति है लेकिन वह कोई कारोबार नहीं कर रही है। कंपनी पंजीयक को आवेदन कर निष्क्रिय कंपनी का दर्जा हासिल किया जा सकता है। निष्क्रिय कंपनी को कानून पालन और विवरणी दाखिल करने में विशेष छूट दी जाएगी।
उपरोक्त विषय सिर्फ नए कंपनी कानून कि एक छोटी सी झलक मात्र है। इसे देख कर समझा जा सकता है कि छोटी कंपनी बनाना और चलाना कठिन ही नहीं असंभव हो जाएगा। पहले से विभिन्न करों को चुकाते और उनके प्रावधानों के अनुसार हिसाब किताब रखते और लेखा-परीक्षण करवाते हुये थका हुआ छोटा व्यापारी अब कंपनी बनाने और चलाने से तौबा ही करेगा।