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नेता जी, आपके बेटा जी को नसीहतों की नहीं, रहनुमाई की जरूरत है

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव की सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। इससे पहले भी कई बार वह सरकार को नसीहतें दे चुके हैं। यह कहना मुश्किल है कि क्या वास्तव में मुलायम सिंह यादव सरकार से नाराज हैं या लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने की पूर्व संध्या पर वह नसीहत देकर उस गुस्से को कम करना चाहते हैं, जो लोगों में सपा सरकार के प्रति बढ़ता जा रहा है। यह सवाल इसलिए भी वाजिब है क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर सरकार पर छींटाकशी की है। ऐसा नहीं है कि मुलायम सिंह यादव अखिलेश से मुलाकात नहीं करते होंगे। जो नसीहतें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दी हैं, वे घर पर भी दी जा सकती थीं। बहरहाल, हकीकत क्या है, यह मुलायम सिंह जानते होंगे, या अखिलेश, लेकिन सच यह है कि सपा सरकार से जो उम्मीदें प्रदेश की जनता ने लगाई थीं, वे मिट्टी में मिलती नजर आ रही हैं।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव की सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। इससे पहले भी कई बार वह सरकार को नसीहतें दे चुके हैं। यह कहना मुश्किल है कि क्या वास्तव में मुलायम सिंह यादव सरकार से नाराज हैं या लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने की पूर्व संध्या पर वह नसीहत देकर उस गुस्से को कम करना चाहते हैं, जो लोगों में सपा सरकार के प्रति बढ़ता जा रहा है। यह सवाल इसलिए भी वाजिब है क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर सरकार पर छींटाकशी की है। ऐसा नहीं है कि मुलायम सिंह यादव अखिलेश से मुलाकात नहीं करते होंगे। जो नसीहतें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दी हैं, वे घर पर भी दी जा सकती थीं। बहरहाल, हकीकत क्या है, यह मुलायम सिंह जानते होंगे, या अखिलेश, लेकिन सच यह है कि सपा सरकार से जो उम्मीदें प्रदेश की जनता ने लगाई थीं, वे मिट्टी में मिलती नजर आ रही हैं।

सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है। यदि मुलायम सिंह यह कहते हैं कि दो साल में जैसा काम होना होना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ, तो वह इसमें भी गड़बड़ करते लगते हैं। काम हुआ ही कहां है? जो हुआ भी होगा, खराब कानून व्यवस्था और मुजफ्फरनगर दंगों के नीचे दबकर रह गया। भले ही आज अखिलेश यादव अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते रहें, लेकिन ऐसे काम नहीं हुए, जो जनता को दिखाई देते। मुलायम सिंह जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में जो भी वोट मिलेगा, वह प्रदेश सरकार के कामकाज के आधार पर ही मिलेगा, लेकिन कहीं कुछ काम हुआ हो तो वोट भी मिलेगा। सपा सरकार की सबसे ज्यादा फजीहत मुजफ्फरनगर दंगों में हुई। दंगा होने पर जब तक सरकार ने यह सोचा कि क्या करना चाहिए, तब सपा सरकार के दामन पर ऐसा दाग लग चुका था, जिसे वह हर कोशिश से साफ करने में नाकाम रही है। दंगा पीड़ित राहत शिविरों पर उनके मंत्रियों की बयानबाजी ने रही सही कसर पूरी कर दी। अब हालत यह है कि सपा से उसका समर्थक मुसलिम तो छिटक ही रहा है, अन्य जातियां भी किनारा करने लगी हैं।

तल्ख हकीकत यही है कि सपा सरकार के शपथ ग्रहण करने के दिन से ही उसके बदमिजाज कार्यकर्ताओं ने जो हरकतें शुरू की थीं, वे आज तक जारी हैं। यह कहा जा सकता है कि मीडिया का एक वर्ग सपा के छुटभैये नेता की छोटी हरकत को भी बड़ी बताकर प्रकाशित करता है, लेकिन सपा सरकार के कुछ बड़े नेताओं की हरकतें भी बड़ी हैं। हालिया उदाहरण कानुपर के विधायक इरफान सोलंकी का है। डॉक्टरों से उनका उलझना और उन्हें पुलिस से पिटवाना बड़ी गलत हरकत है। उस पर भी तुर्रा यह कि सपा विधायक के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। नतीजा यह होता है कि डॉक्टरों का विरोध उत्तर प्रदेश की सीमा पार करके पूरे देश में फैलने लगता है। डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से जिन मरीजों की जानें गर्इं, उनका जिम्मेदार कौन है? सपा सरकार या हड़ताली डॉक्टर? अगर लोग आज यह सवाल कर रहे हैं कि आजम खान की भैंसे चोरी होने पर प्रदेश की पुलिस इतनी सक्रिय हो सकती है, तो आम जनता के मामलों में क्यों नहीं हो सकती, सही कर रहे हैं।

अपनी सरकार को नसीहत देने वाले मुलायम सिंह यादव को किसने रोका है इरफान सोलंकी के खिलाफ कार्रवाई करने को? सच तो यह है कि सपा सरकार के मंत्री, विधायक और हाल ही में बनाए गए दर्जा प्राप्त मंत्रियों की पूरी फौज बेलगाम हो गई है। यह इंतहा थी कि एक दर्जा प्राप्त मंत्री मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों के राहत शिविरों में पहुंच कर अपना स्वागत करा आए। जैसे इतना ही काफी नहीं था, स्वागत की तस्वीरों को अपनी फेसबुक वॉल पर भी अपलोड कर दिया। दंगा पीड़ितों से अपना स्वागत कोई बेदिल इंसान ही करा सकता है। किसी भी मंत्री या विधायक के कार्यालय या निवास पर चले जाएं, वहां का नजारा देखने पर नहीं लगता कि यह समाजवादी विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले मंत्री या विधायक हैं।

दरअसल, सपा के मंत्रियों और विधायकों को लगता है कि वे न जाने के लिए आए हैं, इसलिए वे वह सब कुछ कर रहे हैं, जिससे सपा की साख को बट्टा लग रहा है। सच वही है, जो मुलायम सिंह यादव ने अपनी नसीहत में कहा है कि सरकार चापलूसों से घिर गई है। सरकार के चारों ओर चापलूसों का घेरा इतना कड़ा है कि आम कार्यकर्ता सरकार से कटकर रह गया है। चापलूसी के इस घेरे को तोड़ना ही होगा, जिसे मुलायम सिंह यादव तोड़ सकते हैं या खुद अखिलेश यादव, जिन्होंने युवा होते हुए ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे यह लगे कि युवा बदलाव लाने में सक्षम हैं। एक तरह से देखें, तो हम बसपा सरकार का ‘एक्शन रिप्ले’ देख रहे हैं। बसपा सरकार से त्रस्त होकर ही उत्तर प्रदेश की जनता ने सपा को पूर्ण बहुमत से सत्ता सौंपी थी। दो साल आते-आते बसपा अपनी हार का बदला लोकसभा चुनाव में लेती नजर आ रही है। अब जब लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया है, तो नसीहतों की नहीं, रहनुमाई की जरूरत है और वह भी मुलायम सिंह यादव की। ऐसा नहीं हुआ तो जनता मुलायम सिंह से यह जरूर सवाल करेगी-
'तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यूं लुटा,
मुझे रहजनों से गरज नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।'

 

लेखक सलीम अख्तर सिद्दीकी मेरठ से प्रकाशित हिंदी दैनिक जनवाणी में सब एडिटर पद पर कार्यरत हैं। संपर्कः [email protected]

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