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उपेक्षित साहित्यकारों और विलुप्त अनुवादित रचनाओं को मुख्यधारा में लाएगी ‘भाषान्तर’ वेबसाइट

हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए एक नई वेबसाइट 'भाषान्तर' की शुरुआत की गई है। वाबसाइट ने चर्चित साहित्यकारों, लेखकों, कवियों के साथ ही उपेक्षित रचनाकारों का भी एक वृहद डेटाबेस तैयार किया है। इस संबंध में भाषान्तर परिवार की ओर से कहा गया है कि "हम कुछ हिंदी प्रेमियों एवं सांस्कृतिक-कर्मियों ने मिलकर तय किया है कि हिंदी साहित्य को इंटरनेट की मुख्यधारा में प्रस्तुत किया जाय। अपने इस प्रयास के अन्तर्गत हम हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों के साथ-साथ उन दुर्लभ लेखकों/ कवियों की प्रकाशित/ अप्रकाशित रचनाएँ भी शामिल करेंगे, जो काल-कवलित हो चुके हैं और जिन्हें हिंदी जगत ने लगभग भुला ही दिया है। हमारा प्रयास रहेगा कि हिंदी के उन उपेक्षित रचनाकारों को भी इंटरनेट पर प्रस्तुत किया जाय जिनकी रचनाओं की ओर हिंदी के आलोचक कोई ध्यान नहीं देते हैं। साथ ही हम भारतीय लोक साहित्य एवं बाल साहित्य को भी इंटरनेट पर सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे। हिंदी में विदेशी साहित्य का लगातार अनुवाद हो रहा है किन्तु वह अनुवाद एक बार प्रकाशित होने के बाद पुनर्प्रकाशन के अभाव में विलुप्त हो जाता है, हम उसको भी संरक्षित करने का प्रयास करेंगे। यह सब कठिन बहुत है पर आप सभी का साथ होने से सब मंगल होगा, ऐसा हमें विश्वास है।"

हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए एक नई वेबसाइट 'भाषान्तर' की शुरुआत की गई है। वाबसाइट ने चर्चित साहित्यकारों, लेखकों, कवियों के साथ ही उपेक्षित रचनाकारों का भी एक वृहद डेटाबेस तैयार किया है। इस संबंध में भाषान्तर परिवार की ओर से कहा गया है कि "हम कुछ हिंदी प्रेमियों एवं सांस्कृतिक-कर्मियों ने मिलकर तय किया है कि हिंदी साहित्य को इंटरनेट की मुख्यधारा में प्रस्तुत किया जाय। अपने इस प्रयास के अन्तर्गत हम हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों के साथ-साथ उन दुर्लभ लेखकों/ कवियों की प्रकाशित/ अप्रकाशित रचनाएँ भी शामिल करेंगे, जो काल-कवलित हो चुके हैं और जिन्हें हिंदी जगत ने लगभग भुला ही दिया है। हमारा प्रयास रहेगा कि हिंदी के उन उपेक्षित रचनाकारों को भी इंटरनेट पर प्रस्तुत किया जाय जिनकी रचनाओं की ओर हिंदी के आलोचक कोई ध्यान नहीं देते हैं। साथ ही हम भारतीय लोक साहित्य एवं बाल साहित्य को भी इंटरनेट पर सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे। हिंदी में विदेशी साहित्य का लगातार अनुवाद हो रहा है किन्तु वह अनुवाद एक बार प्रकाशित होने के बाद पुनर्प्रकाशन के अभाव में विलुप्त हो जाता है, हम उसको भी संरक्षित करने का प्रयास करेंगे। यह सब कठिन बहुत है पर आप सभी का साथ होने से सब मंगल होगा, ऐसा हमें विश्वास है।"

http://www.bhashantar.org

डॉ. अबनीश सिंह चौहान। संपर्कः [email protected]

 

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