चुनावी अंधड़ चल रहा है। कुछ उड़ जाने वाले हैं और कुछ उड़ा देने वाले हैं। कुछ का कहना है कि मोदी नाम की "सुनामी" आयी हुई है। मसलन हर रैली का लाइव कवरेज, सोने-उठने बैठने तक की खबर। कोई तीखे सवाल नहीं। विरोधियों की ज़बर्दस्ती आलोचना। ये सारा कुछ चल रहा है टी.वी. न्यूज़ चैनल्स के ज़रिये। हर रैली में करोड़ों रुपये फूंकने वाले मोदी, गरीबों को कभी ये नहीं बता रहे कि ये करोड़ों-अरबों रुपये आ कहाँ से रहे हैं? और ना मीडिया ये सवाल उठाने की ज़ुर्रत कर रहा है।
भाजपाई खेमे के न्यूज़ चैनल्स, ढिंढोरा पीट रहे हैं कि मोदी नहीं तो हिंदुस्तान की हालत खराब हो जायेगी। मगर केजरीवाल नाम के वामपंथ मिश्रित समाजवाद के कठिन सवालों का जवाब मोदी के साथ-साथ, मोदी भक्त न्यूज़ चैनल्स के पास भी नहीं है। पेट्रोल 40 रुपया लीटर बिकेगा और प्याज 5 रुपये किलो, टमाटर-आलू-भिन्डी और भी सस्ता होगा, ऐसा मोदी को मानने वाले बता रहे हैं। अम्बानी जैसे लोग बड़ी संख्या में हो सकते हैं और 40% गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली आबादी, निम्न माध्यम वर्ग में ज़रूर आ जायेगी, ऐसा भी सपना मोदी के "अपने"" न्यूज़ चैनल्स पर बेचा जा रहा है। आतंकवाद हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा हो जाएगा और हर आदमी, भर पेट खाने के बाद तसल्ली से चैन की नींद सोयेगा, मोदी के "सौजन्य" से न्यूज़ चैनल्स ये जतला सा रहे हैं। पर ये होगा कैसे? ये कोई नहीं बता रहा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो मोदी भक्त मीडिया वालों के साथ क्या सलूक होना चाहिए, ये मोदी के शुभचिंतक न्यूज़ चैनल्स नहीं बताते और ना ही बुद्धिजीवी वर्ग की ओर से ये सवाल उठ रहे हैं। मीडिया, मोदी का भरपूर "सहयोग" कर रहा है। ऐसा सहयोग जो पूरी तरह "लेन-देन" पर टिका है। मीडिया में काम करने पत्रकार साथी जानते हैं कि न्यूज़ चैनल्स के अंदर समाचारों की भाषा किस "अर्थ" पर टिकी होती है। कहा जा रहा है कि आज की तारीख में भाजपा नाम की पार्टी ने अपनी तिजोरी खोल दी है। जो नमो का जप करेगा, उसका आर्थिक "पाप" कटेगा। गुजरात दंगों के अलावा, राष्ट्रीय स्तर पर, कोई अन्य उपलब्धि न होने के बावजूद मोदी परेशान नहीं होते क्योंकि वो मीडिया मालिकों की "कमज़ोरी" जानते हैं। उस कमज़ोरी को दूर करने की "माया" से वो वाक़िफ़ हैं।
बेहद कम समय में बेहद अमीर बन चुके अम्बानी और अडानी जैसों के हवाई महल में बैठकर, मोदी आसमान से गरीबों को ज़मीनी सपने दिखा रहे हैं। क्योंकि मोदी जानते हैं कि मीडिया को "मैनेज" कर लो, मीडिया "पब्लिक मैनेजमेंट" का शॉर्ट टर्म कोर्स शुरू कर देगा। नरेंद्र मोदी की खासियत है कि वो अमीरों के बल पर गरीबों के सपने बुनने में भरपूर मदद करते हैं। मोदी अम्बानी-अडानी के रईस बनने के "शॉर्ट टर्म" फॉर्मूले पर ऐतराज़ नहीं जताते, क्योंकि उनका मानना है कि अम्बानी-अडानी जैसे अमीर, गरीब का पेट भरते हैं और राजनीतिक पार्टियों की तिजोरी। मगर इतिहास गवाह है कि अमीर गरीब का शुभचिंतक बड़ी मुश्किल से होता है। मोदी जानते हैं कि गर वो अपने वायदे पूरे नहीं कर पाए तो भी जनता उन्हें कांग्रेस की तरह सर आँखों पर सालों-साल बिठाए रखेगी, क्योंकि "मैनेज" करने के बाद मोदी का मीडिया बाकी सारे विरोधियों से कड़े सवाल पूछेगा मगर मोदी को बक्श देगा। कई न्यूज़ चैनल्स ये साबित करने पर तुले हैं कि हिन्दुस्तान में राजनीतिक बदलाव का मतलब, पार्टी या व्यक्ति बदल जाना मात्र होता है। विकास से इसका कोई ख़ास लेना-देना नहीं।
मोदी की जय-जय, मोदी से कड़े सवाल पूछने से परहेज और विरोधियों की खामी को हेडलाइन्स और ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर पेश करना ही ज़्यादातर टीवी न्यूज़ चैनल्स की प्राथमिकता बन चुकी है। आज ऐसे कई बड़े न्यूज़ चैनल्स हैं जो मोदी-मोदी कर रहे हैं। इन चैनल्स को भी "दक्षिणा" मिलने का अंदेशा है। माना जा रहा है कि नमो-नमो करने वाले चैनल्स की तिजोरी भरी रह रही है। दर्शक भी न्यूज़ चैनल नामक विकीपीडिया के ज़रिये, धन्य हो रहे हैं। न्यूज़ को लिखा कुछ ऐसे जा रहा है कि "दक्षिणा" देने वाले नेताओं की जय-जय हो और विरोधी परास्त हों। इन चैनल्स को गरीबी-भ्रष्टाचार-बेरोज़गारी-एलियन की तरह नज़र आते हैं।
आम आदमी इन चैनल्स को मिलने वाले "दक्षिणा ज्ञान" से वाक़िफ़ नहीं होता, लिहाज़ा वो यही समझता है कि जो टीवी पर दिख रहा है वो सच है। आज-कल उद्योग-धंधे या मीडिया हाउस बड़े लोग चला रहे और बड़े आदमी कुछ देते तभी हैं जब बहुत कुछ मिलने की उम्मीद हो। मोदी में उनको उम्मीद नज़र आ रही है। किसी ईमानदार को दस बार चोर-चोर कह दीजिये या इसका उलटा कर दीजिये तो दसियों बार के बाद दिमाग थोड़ा सा ही सही पर बदलता है, मीडिया इसी फॉर्मूले पर काम कर रहा है। "दक्षिणा" के बल पर मीडिया मोदी को ज़ीरो से हीरो बना चुका है। खेल चालू आहे।
चलते-चलते एक सवाल आम हिन्दुस्तानी के ज़ेहन में छोड़ देना उचित होगा कि मीडिया में खबर देखने के बाद आप लोग, जिन्हें अपनी उम्मीद मान बैठे हैं, वो लोग अमीरों के हवाई-महल में बैठ कर हिन्दुस्तान को हकीकत की ज़मीन दिखा रहे हैं या सपने दिखा कर ज़मीन से चार फूट उंचा हवा में टांग रखे हैं? या फिर कस्मे वादे प्यार वफ़ा, वादे हैं वादों का क्या। ज़रा सोचना।
नीरज….'लीक से हटकर'। [email protected]