Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

विविध

बंद करो न्यूज़ चैनल, कुछ और लगा दो… दिमाग पक गया है

अब शाम 6 बजे के बाद न्यूज़ चैनल देखने का मन नहीं करता। ये मेरा निज़ी विचार भी है और कुछ यार दोस्तों के मन में भी कुछ ऐसा ही है.. वज़ह, उन नेताओं को शाम को न्यूज़ की जगह राजनीतिक बहस में बिठा दिया जाता है जो देश लूटने के भागीदार हैं। जनता उन्हें देखना पसंद नहीं करती उनकी जनसभाओं में जाना पसंद नहीं करती, जनता का बस चले तो इनका हाल बुरा कर देती। क्या हमने ये ही सब देखने के लिए न्यूज़ चैनल्स को पैसा दिया है? माफ़ करना अब करीब-करीब सभी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स मुफ्त में नहीं देखे जा रहे। केबल टीवी की भाषा में ये पेड चेनल हैं।

अब शाम 6 बजे के बाद न्यूज़ चैनल देखने का मन नहीं करता। ये मेरा निज़ी विचार भी है और कुछ यार दोस्तों के मन में भी कुछ ऐसा ही है.. वज़ह, उन नेताओं को शाम को न्यूज़ की जगह राजनीतिक बहस में बिठा दिया जाता है जो देश लूटने के भागीदार हैं। जनता उन्हें देखना पसंद नहीं करती उनकी जनसभाओं में जाना पसंद नहीं करती, जनता का बस चले तो इनका हाल बुरा कर देती। क्या हमने ये ही सब देखने के लिए न्यूज़ चैनल्स को पैसा दिया है? माफ़ करना अब करीब-करीब सभी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स मुफ्त में नहीं देखे जा रहे। केबल टीवी की भाषा में ये पेड चेनल हैं।

शाम की बहस में कांग्रेस, बीजेपी, सपा बसपा और अन्य कई दलों के नेता चीख-चीख कर कान ख़राब कर देते हैं। बेचारा एंकर… उसी पर तरस आता है कि अपनी नौकरी बचाने के लिए उसे इन नेताओं के साथ वक्त बर्बाद करना पड़ रहा है। न्यूज़ चैनलों ने अपनी कॉस्ट कटिंग की वज़ह से खबर से ध्यान हटा कर नेताओं की बहस पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। शाम होते ही हर न्यूज़ चैनल ऐसा कर रहा है, लिहाज़ा दर्शक खीज रहा है खबर की तलाश में दर्शक लोकल चैनल की तरफ रुख कर रहा है.. जहां शहर, प्रदेश की खबर तो कम से कम दिखलाई देती है। कितने दर्शक ऐसे होंगे जो इन बेईमान नेताओं की बहस को सुनना चाहते होंगे। देश बेचने में लगे इन नेताओं की सुबह शाम अपनी कुर्सी बचाने में लगी रहती है। इन नेताओं से कब छुटकारा मिलेगा? उफ़्फ..

 
राष्टीय न्यूज़ चैनल वालों, दर्शको पर रहम करो। एक आध घंटा तो ठीक है, पर तीन चार घंटे दिमाग नहीं झेल पा रहा, दिमाग का दही बन जा रहा है, न्यूज़ चैनल वालों हम आपका न्यूज़ चैनल देखने का पैसा देते हैं। फ्री में नहीं देख रहे, कुछ तो रहम करो.. एंकर को देखना अच्छा लगता है पर ये संजय निरुपम, जगदम्बिका पाल, मुख़्तार अब्बास, मनीष तिवारी और हाँ आँख बंद 
 
कर चिल्ला कर बोलने वाले कांग्रेसी नेता शकील अहमद.. इनसे कब निज़ात दिलाओगे..? खबर दिखाओ… बहस नहीं… अब बात कर लें फटाफट न्यूज़ की, स्पीड न्यूज़ की, गोली से रफ़्तार से तेज़ खबर की.. ट्वेंटी ट्वेंटी, शतक खबर की… ऐसी चलती शॉट कोई और आवाज कोई और… क्या मज़ाक है… एक खबर को चार बार दिखा कर शतक पूरा किया जा रहा है तो फिर सौ खबरें कैसे हुईं..? विद्वान संपादक बताईये ना.. जिम्मेदारी आपकी ही तो है…ऐसी भी क्या कॉस्ट कटिंग…
 
एक टिकर तीन दिन तक चलता है कि भारत ने पाकिस्तान को हराया। अरे भाई जीत गया आप भी 10 घंटे चला दो… सब को पता चल गया, अब कोई दूसरी खबर की टिकर चला दो ना… एक ही लाइन तीन-तीन दिनों तक कोई कैसे सहन करेगा… ये भी क्या दर्शक बताएगा?
 
पहले टिकर का अपना असर होता था अब ये भी बेअसर हो गया है ..समझ  में नहीं आता कि टिकर बदल कर चलाने में क्या खर्चा आता है? एक दौर था जब अपराध, नाग नागिन ,ज्योत्षी खबरें देख कर उबकाई आने लगती थी अब इन कांव-कांव करते नेताओं को देख कर टीवी स्क्रीन फोड़ने का मन करता है… अरे भाई खबर दिखलाओ जरा  ये तो बताओ सोनिया गाँधी ने यूएसए जाकर कौन सी बीमारी का इलाज करवाया, कहाँ करवाया?
 
जनता जानना चाहती है… बताओ ना चुप क्यों हो गए…? क्या कोई पाबन्दी है? खबर कहाँ है? क्या है? क्या ये भी दर्शक बताएगा, संपादक .और उनकी टीम क्यों चुप हो जाती है? क्या नौकरी का डर है या बाज़ारवाद हावी हो गया है खबर दिखलाने के लिए मोटी तनख्वाह जरूरी नहीं होनी चाहिए… मोटी तनख्वाह वाले संपादकों, रिपोर्टरों  का क्या हाल हुआ है? कुछ गर्त में चले गए या लापता हो गए… नाम आप भी जानते हैं… बताने की जरूरत नहीं… खबरों में सुधार करने के लिए क्या क्या करना है आप से बेहतर कोई नहीं जानता कॉस्ट कटिंग इसका हल नहीं है ..खबर दिखाना… दर्शक को अपने चैनल से ना जाने देना ही इसका हल है।
 
कॉस्ट कटिंग करनी है तो अपनी मोटी तन्खवाह में से करो… कंपनी से मिलने वाली दामादों वाली सुविधाओ में करो… क्यों साबुन तेल के बिल लगा देते हो, अपने कपड़ों को प्रेस करने, बच्चों को स्कूल भेजने में कम्पनी की कार का इस्तेमाल करते हो… याद रखो जब तक नौकरी है तब तक मज़े है कहीं ये मज़े आपकी नौकरी लेने कि वज़ह ना बन जाएं.. बहरहाल, हम रास्ता न भटक जाएँ, सीधे खबर पर चले जाएँ तो ज्यादा बेहतर होगा। 
 
खबर… सधे शब्दों में हार्ड न्यूज़… जो सरकार हिला दे… शासन में अफरातफरी ला दे… रिपोर्ट देख दर्शक कहें, "वाह ये है खबर…" न कि न्यूज़ चैनल्स  पर इन नेताओ को देख ये कहे… "कुछ और लगा दो… दिमाग पक गया है…"
 
लेखक दिनेश मानसेरा उत्तराखंड के टीवी जर्नलिस्ट हैं.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement