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अंग्रेजी वाले जिसे oomph ‘ऊम्फ’ कह कर निकल जाते हैं, उसे हम ‘नमक’ कहेंगे

Sanjay Sinha : आज मुझे दो खूबसूरत लड़कियों से मिलना है। एक का नाम है यामी गौतम, जिसे आपने विकी डोनर फिल्म में देखा हो। उनकी एक और फिल्म आ रही है, नाम है 'टोटल सियापा'। दूसरी लड़की का नाम है कंगना रनाउत, जिनकी फिल्म 'क्वीन' भी आने वाली है। कंगना की बहुत सी फिल्में आ चुकी हैं, और आप उन्हें पहचानते हैं। दोनों से मेरी मुलाकात होगी। यामी गौतम से अब तक मिला नहीं हूं लेकिन वो मुझे सुंदर लगती हैं, लेकिन कंगना में सुंदरता से हट कर जो चीज है, उसे ऊम्फ (oomph) कहते हैं। मेरे लिए ये शब्द नया है।

Sanjay Sinha : आज मुझे दो खूबसूरत लड़कियों से मिलना है। एक का नाम है यामी गौतम, जिसे आपने विकी डोनर फिल्म में देखा हो। उनकी एक और फिल्म आ रही है, नाम है 'टोटल सियापा'। दूसरी लड़की का नाम है कंगना रनाउत, जिनकी फिल्म 'क्वीन' भी आने वाली है। कंगना की बहुत सी फिल्में आ चुकी हैं, और आप उन्हें पहचानते हैं। दोनों से मेरी मुलाकात होगी। यामी गौतम से अब तक मिला नहीं हूं लेकिन वो मुझे सुंदर लगती हैं, लेकिन कंगना में सुंदरता से हट कर जो चीज है, उसे ऊम्फ (oomph) कहते हैं। मेरे लिए ये शब्द नया है।

मैं जब भी माधुरी दीक्षित से मिलता और फिर मल्लिका शेरावत से भी मिलता, तो ठीक से बयां नहीं कर पाता कि दो सुंदर महिलाओं की खूबसूरती को परिभाषित कैसे करूं? एक मुझे सुंदर लगती, दूसरी मुझे आकर्षक लगती। कई बार खुद उलझन में पड़ा कि ये सुंदरता और आकर्षण के बीच आखिर कड़ी कौन सी है? दिमाग पर बहुत जोर डाला तो तो यही कह पाया कि एक सुंदर है, दूसरे में नमक है।

और यहीं से मैंने तय किया कि अंग्रेजी वाले जिसे 'ऊम्फ' कह कर निकल जाते हैं, उसे हम 'नमक' कहेंगे। तो आज बात इसी नमक पर। लड़का-लड़की, पति-पत्नी, भाई-बहन, मां-पिता, सास-बहू…ना जाने कितने रिश्तों को कुरेद चुका हूं। लेकिन कभी रिश्तों में नमक पर मैंने बात नहीं की। आज यामी गौतम और कंगना रनाउत से मिलना है तो लग रहा है कि रिश्तों की नई परिभाषा पर बात करनी चाहिए। क्योंकि मेरा मानना है कि रिश्तों में खूबसूरती चाहे जितनी हो, नमक ना हो तो रिश्ता 'बेसुआदी' हो जाता है। अब ये नमक क्या बला है?

इसे जब तक आप खुद महसूस नहीं करेंगे, मैं कितना बयां कर पाउंगा? आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि तमाम बातें होने के बावजूद 'वो' लड़की या 'वो' लड़का आपको आकर्षित नहीं करते। कई बार तो ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर कमी ढूंढें तो कहां ढूंढें? ये नमक ही है, जो ना हो तो सबकुछ ठीक होने के बावजूद कुछ ठीक नहीं होता।

मैं ऐसे कई जोड़ों को जानता हूं जो अपनी खूबसूरत पत्नी और हैंडसम पति से भी खुश नहीं है। बहुत बार वजह तलाशने की कोशिश की और हर बार यही पाया कि उस रिश्ते में उसे वो नमक वहां नहीं मिल रहा। रिश्तों में ये नमक बहुत बारीक चीज है और अलग-अलग आदमी के लिए इसकी मात्रा अलग-अलग तय होती है। मसलन सौ बार माधुरी दीक्षित से मिलने के बावजूद उन्होंने कभी बहुत आकर्षित नहीं किया। मतलब मुझे उनमें नमक नहीं दिखता। लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि बहुतों को वो सबसे आकर्षक लगती हैं।

ये सच है, लेकिन अविश्वसनीय है। मैं जब ज़ी न्यूज़ में था, एक बार ऐश्वर्या राय का इंटरव्यू करने गया। उनकी कोई फिल्म अनिल कपूर के साथ आने वाली थी और मैं पॉलिटिकल रिपोर्टर होने के बावजूद सिर्फ ऐश्वर्या से मिलने के लिए इस इंटरव्यू के लिए गया।

मेरा पहला सवाल था, "ऐश्वर्या, दुनिया कहती है कि आप बेहद खूबसूरत हैं।"

ऐश्वर्या ने चहकते हुए मुझसे ही सवाल पूछा, "आप क्या कहते हैं?" मेरे मुंह से निकला, "उतनी नहीं, जितनी दुनिया कहती है।"

वो इंटरव्यू वहीं खत्म हो गया। कभी विस्तार से जरूर बताउंगा, उस इंटरव्यू के बारे में, जब मुझे हजार सफाई देनी पड़ी थी कि मेरा मतलब ये नहीं और वो नहीं था।

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खैर, ये सच है कि ऐश्वर्या राय से पहली बार मिलने के बाद मुझे सचमुच समझ में नहीं आया था कि उनमें वाकई में ऐसा है क्या?

फिर कई हीरो, हीरोइन से मिला। हेमा मालिनी से मिल कर भी मैं बहुत निराश हुआ था। अब इतना तो मैं भी कह सकता हूं कि हेमा जी से ज्यादा खूबसूरत कोई नहीं, लेकिन मैं उनकी खूबसूरती के आकर्षण में नहीं बंध सकता था। और फिर जब बहुत सी हीरोइनों से मिलना हुआ तो पाया कि श्रीदेवी, जूही चावला, रानी मुखर्जी ये सभी बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन 'मुझे' उनमें वो नमक नहीं नजर आता, जो प्रियंका चोपड़ा, करीना कपूर या बिपाशा बसु में है।

ऐसा बहुत बार हुआ है कि हमारे आसपास हमें कोई उससे ज्यादा आकर्षक लगता है, जिसपर दुनिया मरती है। आकर्षण की यही कड़ी अगर रिश्तों में मिल जाए तो यकीनन रिश्ता दिलचस्प हो जाता है। रिश्ता किसी भी तरह का हो, उसमें आकर्षण का होना जरुरी है। कोई अन्यथा ना ले, लेकिन मेरा मतलब उस आकर्षण से बस इतना ही है कि बाप-बेटा, भाई-बहन, दोस्त, फेसबुक पर मिले लोग, सफर में मिले लोग…तभी तक अपनी अहमियत रखते हैं, जब तक उसमें आपका आकर्षण बना रहता है। और इस आकर्षण के पीछे खूबसूरती से ज्यादा अहम होता है 'ऊम्फ' फैक्टर।

इसकी मात्रा और पहचान सबके लिए अलग-अलग होती है। बस जरुरत है आपको अपने रिश्तों में इस नमक को तलाशने की, और दूसरों को तलाशने देने की। फिर रिश्ता कोई भी हो…चटक हो जाएगा, 'सुआदी' हो जाएगा।

और तब आप भी अपनी जिंदगी में 'उसके' न होने पर उसी बिरह से तड़पेंगे और गाएंगे- 'तेरे बिना बेसुआदी, बेसुआदी रतिया'…

जैसे इन दिनों मैं अपने भाई के बिना सारी रात तड़पता हूं…हम सारी-सारी रातें गप्प किया करते थे…जो उसके ना होने पर बिना 'नमक' की हो गई हैं, जो उसके ना होने पर 'बेसुआदी' हो गई हैं।

आज यामी गौतम से मिलूंगा फिर बताउंगा कि वहां सिर्फ सुंदरता है, या हमारा 'ऊम्फ फैक्टर' भी है। बात 'विकी डोनर' जितनी है, या 'टोटल सियापा' है…

टीवी टुडे ग्रुप में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार संजय सिन्हा के फेसबुक वॉल से.

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