दिल्ली से प्रकाशित पुलिस पब्लिक प्रेस के सर्वेसर्वा (मालिक संपादक) पवन कुमार भूत द्वारा 10,000 रुपए में प्रेस कार्ड दिए जा रहे हैं। यूं तो पवन कुमार भूत अपनी पत्रिका के माध्यम से भारत में बढ़ रहे अपराध के ग्राफ को कम करने व पुलिस व पब्लिक के बीच सामंजस्य स्थापित करने लिए एक पहल बताता है। पर सच्चाई इससे अलग है। पवन भूत अपनी मासिक पत्रिका (जो कि कभी कभार ही छपती है) के रिपोर्टर बनाने के नाम पर लोगों से 10,000 रुपए लेकर प्रेस कार्ड दे रहा है। दो नंबर का धंधा करने वाला हो या गाड़ी चलाने वाला ड्राइवर हो या हो कोई किराणे का व्यापारी सभी को 10 हजार लेकर प्रेस कार्ड बांटे जा रहे है।
इस धोखाधड़ी के बिजनेस में पवन भूत ने किरण बेदी के नाम का उपयोग किया है। किरण बेदी को अपनी कंपनी का पार्टनर बताकर लोगों को विश्वास में लेता रहा है। जानने में आया है कि किरण बेदी द्वारा पुलिस पब्लिक प्रेस का विमोचन करवाया गया था तथा कई सेमीनारों में मुख्यवक्ता के रूप में
बुलाया गया था। विमोचन व सेमीनारों में किरण बेदी के साथ खिंचवाई गई फोटो को पवन भूत पेम्पलेट, अखबारों आदि में प्रकाशित करवाता है ताकि लोग ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ पर विश्वास करे और उससे जुड़े।
यही नहीं पवन भूत ने नेशनल टॉल फ्री नंबर 1800-11-5100 का आरंभ भी किरण बेदी के हाथों करवाया। हालांकि यह नंबर दिखावा मात्र है। पवन भूत का कहना था कि पुलिस अगर किसी की जायज शिकायत पर कार्यवाही नहीं करती है तो वो हमारे टोल फ्री नंबर पर कॉल कर सकता है, तब पुलिस पब्लिक प्रेस द्वारा उसकी मदद की जाएगी। यह लोगों को आकर्षित करने का तरीका महज है। पवन भूत ने अपनी वेबसाइट, अपनी मैगजीन व विभिन्न अखबारों इत्यादि में दिए गए विज्ञापन में किरण बेदी का फोटों लगावाकर किरण बेदी के नाम को खूब भूनाया है। जबकि किरण बेदी का कहना है कि ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के साथ उनका कोई वास्ता नहीं है। पवन भूत के खिलाफ ठगी की कई शिकायतों के बावजूद किरण बेदी का महज यह कह देना कि मैं उसके साथ नहीं हूं . . क्या पर्याप्त है ? क्या किरण बेदी को पवन भूत के खिलाफ कार्यवाही की मांग नहीं करनी चाहिए ? ऐसे ही कई सवाल है पुलिस पब्लिक प्रेस के सदस्य बनकर ठगे गए लोगों के मन में।
18 से अधिक बैंकों में खाते
कई राज्यों के लोगों को मूर्ख बनाकर अब तक करोड़ो रुपए ऐंठ चुके पवन कुमार भूत के देशभर के 18 से भी अधिक बैंकों में खाते है। सारे नियमों व सिद्धान्तों को ताक में रख कर व कानून के सिपाहियों की नाक के नीचे पवन कुमार भूत देश की जनता को ठग रहा है। जनता को भी प्रेस कार्ड का ऐसा चस्का लगा है कि बिना सोचे समझे रुपए देकर प्रेस कार्ड बनवा रहे है। जानकारी के अनुसार पवन कुमार भूत ने 2006 में ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ नाम की मासिक पत्रिका आरंभ की थी। शुरू में वह 1000 रुपए लेकर अपनी मासिक पत्रिका के रिपोर्टर नियुक्त करता था तथा रिपोर्टर के माध्यम से लोगों से 200 रुपए लेकर पत्रिका के द्विवार्षिक सदस्य बनाता था। आजकल वो राशि कई गुना बढ़ गई है। इतने बैंकों में खाते खुलवाने के पीछे पवन भूत का मकसद है कि जिस रिपोर्टर के क्षेत्र जो भी बैंक हो उस बैंक में वो सदस्यता शुल्क तुरन्त जमा करवा सके।
ना तो बीमा करवाता है और ना ही भेजता है मैगजीन
3 साल पहले पवन भूत ने रिपोर्टर फीस बढ़ाकर 1000 रुपए से 2500 रुपए कर दी तथा पत्रिका के सदस्य बनाने के लिए भी दो प्लान बनाए। अब वह प्लान के अनुसार रिपोर्टरों से पत्रिका के सदस्य बनाने लगा। 400 रुपए में द्विवार्षिक सदस्यता व 3000 रुपए में आजीवन सदस्यता दी जाने लगी। द्विवार्षिक सदस्य को 1 वर्ष की अवधि के लिए 1 लाख रुपए का दुर्घटना मृत्यु बीमा देने, पुलिस पब्लिक प्रेस का सदस्यता कार्ड व पुलिस पब्लिक प्रेस के 24 अंक डाक द्वारा भिजवाने का एवं आजीवन सदस्य को 1 वर्ष की अवधि के लिए 2 लाख रुपए का दुर्घटना मृत्यु बीमा देने का वादा किया जाता है।
अब तक रिपोर्टर बने सैंकड़ों लोगों द्वारा बनाए गए सदस्यों को महज ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के सदस्यता कार्ड के अलावा कुछ नहीं मिला है। प्रेस कार्ड व सदस्यता कार्ड की मार्केट में जबरदस्त मांग के चलते अब पवन भूत ने पुलिस पब्लिक प्रेस की सदस्यता राशि और बढ़ा दी है, अब वार्षिक सदस्यता शुल्क 400 रुपए, द्विवार्षिक सदस्यता शुल्क 1000 रुपए व आजीवन सदस्यता शुल्क 3000 रुपए कर दिया है। एसोसिएट रिपोर्टर की फीस 10,000 रुपए कर दी है। जिसे आजीवन सदस्यता मुफ्त दी जा रही है।
एक ही शहर में सैकडों रिपोर्टर
एक शहर में किसी अखबार या पत्रिका के 1, 2, 3 या 4 संवाददाता होते है, जो अलग-अलग मुद्दों पर काम करते है। लेकिन ’’पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के एक ही शहर में सैकड़ों-सैंकड़ों रिपोर्टर है। गुजरात के सूरत, बड़ोदा, गांधीनगर, महाराष्ट्र के मुम्बई, कोलकत्ता, दिल्ली, फिरोजाबाद, रांची, धनबाद में 100-100 से अधिक कार्डधारी संवाददाता है।
ऐसे की जाती है ठगी
पवन भूत विभिन्न माध्यमों से ‘‘संवाददाताओं की आवश्यकता’’ के आशय का विज्ञापन प्रकाशित करवाता है। जरूरतमंद लोग विज्ञापन में दिए पते पर सम्पर्क करते है। जहां उनसे रिपोर्टर फीस के नाम पर रुपए वसूल कर संवाददाता का फार्म भरवाया जाता है और मैगजीन के सदस्य बनाने का काम सौंपा जाता है।
रुपए देकर रिपोर्टर बना व्यक्ति मैगजीन के सदस्य बनाना शुरू करता है। उसे सदस्यता राशि का 25 प्रतिशत दिया जाता है। 1 वर्ष, 2 वर्ष और आजीवन सदस्यता के नाम पर लोगों से रुपए लिए जाते है और वादा किया जाता है कि उनकी सदस्यता अवधि तक उन्हें डाक द्वारा मैगजीन भेजी जाएगी और दुर्घटना बीमा करवाया जाएगा। लेकिन हालात जुदा है ना तो मैगजीन भेजी जाती है और ना ही किसी प्रकार का दुर्घटना बीमा करवाया जाता है। सदस्य बने लोगों को दिया जाता है तो महज सदस्यता कार्ड।
पीड़ितों ने की प्रधानमंत्री से शिकायत
कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी. चिदम्बरम व प्रेस कांउसिल ऑफ इंडिया की सेक्रेटरी विभा भार्गव को शिकायत पत्र भेजकर ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। धोखाधड़ी के शिकार हुए देश भर के कई लोगों ने विभिन्न पुलिस थानों में एफआईआर भी दर्ज करवाई है। फरीदाबाद, कोलकत्ता के थाने में एफआईआर दर्ज करवाई है। लेकिन नतीजा सिफर रहा है। अभी तक पवन भूत के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इससे ऐसा लगता है कि पवन भूत पुलिस व पब्लिक के बीच में भले ही सामंजस्य स्थापित ना करवा पाया हो, लेकिन पुलिस व प्रेस में सामंजस्य जरूर स्थापित किया है।
पवन भूत जिसकी वाकपटुता का ही कमाल है कि उसने देश की जनता से करोड़ों रुपए ठग लिए हैं। वह ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ नाम की भिजवाने का वादा कर लोगों से सदस्यता राशि के नाम पर रुपए लेता है। लेकिन पत्रिका भिजवाता नहीं है। लोग पत्रिका की मांग करते हैं या ठगी का आरोप लगाते हैं तो सफाई से कहता है ‘‘यही मेरी कमजोर नस है’’ कि मैं पत्रिका नहीं भिजवा पाता हूं।
क्या हजारों लोगों से मैगजीन के नाम से लाखों रुपए लेकर महज इतना कह देना कि किन्हीं कारणों से मैं मैगजीन नहीं भिजवा पा रहा हूं पर्याप्त है ? 5000 रुपए प्रतिमाह का झांसा देकर बेरोजगार युवाओं से हजारों रुपए लेकर उन्हें रिपोर्टर कार्ड प्रदान करने वाले पवन भूत के खिलाफ पुलिस कोई कार्यवाही करेगी या देश के लोगों को यूं ही लुटने देगी ?
अकेले भीलवाड़ा जिले में हजार से अधिक लोग ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के मार्फत ठगे गए है। उन को ना तो मैगजीन भेजी गई है और ना ही किसी किस्म का बीमा करवाया गया।
पुलिस पब्लिक प्रेस से जुड़कर पत्रकारिता में अपना भविष्य संवारने निकले ठगी के शिकार हुए युवाओं को कहना कि पुलिस पब्लिक प्रेस के मालिक पवन भूत के बहुत ही बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों से सम्पर्क है तथा कई मंत्रियों से भी मिलीभगत है जिसके चलते उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नही हो पाती है।
‘‘मैं अकेला क्या कर सकता हूं, हर तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है, मैंनें भी ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के कई सदस्य जोड़े लेकिन पवन भूत ने उन सदस्यों को मैगजीन नहीं भेजी। चूंकि लोगों से सदस्यता राशि लेकर मैंनें पवन भूत को भिजवाई थी इसलिए लोगों ने मैगजीन के मुझ पर दबाव बनाया। अंत में मुझे अपनी जेब से पैसे वापस लौटाने पड़े।’’ दिनेश-ज्ञानगढ़।
सदस्यों की मैगजीन न मिलने की शिकायतों से परेशान होकर रिपोर्टर के रवि व्यास को अपना क्षेत्र छोड़कर अन्यत्र जाकर रहना पड़ रहा है। अकेले भीलवाड़ा शहर में सैकड़ों लोगों को पुलिस पब्लिक प्रेस की सदस्यता दिलवा चुके युवा रवि व्यास का कहना है कि सदस्यता फार्म में लिखा होता है कि डाक द्वारा मैगजीन भेजी जाएगी और दुर्घटना बीमा करवाया जाएगा। लेकिन जब मैगजीन नहीं आती है और बीमा नहीं करवाया जाता है तो लोग सदस्यता फार्म भरने वाले को पकड़ते है ना कि मैगजीन के मालिक और सम्पादक को।
गुजरात के हिम्मतनगर जिले के विपुल भाई पटेल का कहना है कि वो बड़े जुनून के साथ पत्रकारिता क्षेत्र में उतरे। उन्होंने एक माह में सैकड़ों लोगों को ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ की सदस्यता दे दी। लेकिन उनके पांव से जमीन तब खिसक गई जब उन्हें पवन भूत की असलियत का पता चला।
जब मैंने ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ को दखा और उसमें जगह जगह पवन भूत के साथ किरण बेदी के फोटो देखे तो इस मैगजीन से जुड़ने का ख्याल आया। मैंने पूवन भूत से बात की। उन्होनें मुझे बताया कि किरण बेदी ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के साथ है तथा हर समय पीडि़त लोगों की मदद के लिए तत्पर रहती है। तब मैं भी इस मैगजीन में पत्रकार के रूप में जुड़ा था। कई पत्रकार साथियों को भी इससे जोड़ा तथा सैकड़ो सदस्य बनाए। इससे जुड़ने के दो माह बाद ही मुझे पता चल गया कि ना तो किरण बेदी उसके साथ है और ना ही वो मैगजीन को नियमित छपवाता है। सदस्यता कार्ड पर छपे हुए केवल एक वादे को वो पूरा करता है, सदस्यता और रिपोर्टर कार्ड समय पर भिजवा देता है।
पवन भूत के बारे में मैंने किरण बेदी से भी बात की। उन्होने कई दिनों तक तो ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ और पवन भूत के बारे में कुछ बोलने पर चुप्पी साधे रखी। उन्होनें बताया कि वो पवन भूत द्वारा
आयोजित कार्यक्रमों में जाती रही है। जब मैंनें उन्हें पूवन भूत द्वारा की जा रही ठगी के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि ‘‘आई एम नोट विथ हिम देट्स आल’’. किरण बेदी द्वारा पवन भूत के खिलाफ कोई कार्यवाही करने की बजाए क्या महज यह कह देना पर्याप्त है?
लेखक लखन सालवी युवा और तेजतर्रार पत्रकार हैं.