लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर तथा अधिवक्ता प्रतिमा पाण्डेय द्वारा दिल्ली तथा पुदुचेरी को राज्य का दर्जा दिए जाने हेतु अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दायर पीआईएल सुप्रीम कोर्ट ने आज ख़ारिज कर दी।
याचिगण के अधिवक्ता अशोक पाण्डेय की बहस सुनने के बाद चीफ जस्टिस पी. सथाशिवम, जस्टिस रंजन गोगोई तथा जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने कहा कि यदि यह मामला किसी दिल्लीवासी द्वारा लाया जाता है तो कोर्ट इसे सुन सकता है।
याचिका में कहा गया था कि भारत का संविधान मात्र राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों की बात करता है। इनके विपरीत संविधान के अनुच्छेद 239ए, 239एए तथा 239एबी ऐसे प्रावधान हैं जो दिल्ली और पुदुचेरी को वस्तुतः राज्य का स्वरुप प्रदान करते हैं। इन केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल तथा विधान सभा की व्यवस्था की गयी है, लेकिन राज्यों के विपरीत इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है पर वे उपराज्यपाल को सहायता और सलाह देते हैं।
इससे एक विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न हुई है जो इन्हें व्यवहार में राज्य और कानूनन केंद्रशासित प्रदेश बना देती हैं। केशवानंद भारती केस (1973) तथा कुलदीप नायर केस (2006) में स्थापित संविधान के संघवाद के मौलिक ढाँचे के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए याचीगण ने संविधान के अनुच्छेद 239ए, 239एए तथा 239एबी को रद्द किये जाने तथा दिल्ली एवं पुदुचेरी को राज्य सूची में रखे जाने का निवेदन किया था।