बहुत बहुत बधाई कि 'बी4एम' ने सफलता के साथ चार साल पूरे कर लिए. मौका भी है और दस्तूर भी कि जश्न मनाया जाए. अग्रज हरिवंश जी का व्याख्यान और सिद्धार्थ मोहन जी और उनकी टीम का सूफी संगीत सुनना और गुनना आनंद दायक होता, मगर ऐन मौके पर फच्चर के कारण आ नहीं पा रहा हूँ. आ पाता तो पिछली मुलाकातों में हुई चर्चा आगे बढ़ती. खैर…..
ये जोश ! ये जुनून !!
चार साल में 'भड़ास' ने अपनी सफलता के जो झंडे गाड़े, वह कोई मामूली बात नहीं है, इस बात की गहराई को दुनिया में हिंदी के पहले पोर्टल वेबदुनिया के पहले संपादक होने के नाते मैं समझ सकता हूँ. ये झंडे केवल यशवंत सिंह के गाड़े हुए झंडे हैं, क्योंकि इसके पीछे कोई बड़ी पूंजी, बड़ा समूह, बड़ी पार्टी, कोई चिटफंडिया, भू माफिया, दारू माफिया, खदान माफिया नहीं है. न ही कोई विशाल कार्पोरेट या एमएनसी है. इस पोर्टल की भाषा हिंदी है, जो विज्ञापनों कि भाषा नहीं मानी जाती. इस दौर में जब बड़े बड़े नामी चैनल विज्ञापन के नाम पर बाबा और बॉबी, भूत – भभूत, लोटा और लंगोट , जादू-टोने के ताबीज, ताकत व जवानी की दवाएं, कद को लम्बा और शिश्न को मोटा करने के यंत्र बेच बेच कर पत्रकारिता के पेशे से व्यभिचार पर उतारू हैं, वहीँ यह बंदा सीमित साधनों, कुछ दोस्तों और अपने जोश और जुनून से साथ अड़ा हुआ है. और यही बात खास है. 'भड़ास' की नक़ल तो कई ने की और कर रहे हैं पर 'भड़ास' में एक बेबाकी, यही बेख़ौफ़, यही बिंदासपन है, जो 'भड़ास' के नकलचियों के पास नहीं है. इस जज्बे, इस साहस और दुस्साहस, इस जुझारूपन, इस अड़ियलपन , इस सनक, इस जिद, इस जिद को वे कहाँ से लायेंगे?
गज़ब की ओपननेस !!!
जब खुशवंत सिंह ' इलेस्ट्रेडेड वीकली' के संपादक थे, तब वीकली बहुत पाप्युलर थी. सरदार साहब को कई लोग चिट्ठियां लिखते थे, उनमें गालियाँ भी होती थीं, खुशवंत सिंह उनको 'लेटर टू द एडिटर' में पहले पहल छाप देते थे. ऐसा ही कुछ इस अज़ीज़ और अजीम दोस्त के साथ है. इन्हें गाली भी लिख डॉ तो जवाब में गाली नहीं देते, उसका भी इस्तकबाल करते हैं. यह कोई छोटी बात नहीं. वरना आजकल तो भाई लोग आत्म रति में ही लगे रहते हैं. असहमति को भी स्वीकार करना और सम्मान देना वाकई काबिले तारीफ है.
हिम्मत है !!!
यह मित्र पंगेबाज हैं. लेता रहता है. डरता नहीं. इनके नौ ग्रह बलवान हैं और दसवां यह खुद बलशाली. यह एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा है, जो हर एक के पास नहीं. लेकिन साथ ही यह जिससे दोस्ती करता है, उसे निभाता है, सुख में, दुःख में– हर जगह. इस गुण पर तो कौन नहीं वारा जाये? बेसिकली ईमानदार है और इसी लिए लोगों का प्रिय पात्र है. पाता है कि बिजनेस करने वाले तो कई आयेंगे, कई जायेंगे, इन्हीं में पन्द्रह बिलियन डॉलर का इश्यु लानेवाले जकरबर्ग जैसे लोग भी होंगे और बाबा नागार्जुन जैसे लोग भी. लेकिन बाबा नागार्जुन का आना और कहना हमारे लिए ज्यादा मायने वाला है. इसीलिये वे हमारे झंडाबरदार हैं.
रश्क होता है!
रश्क होता है यार. क्या चीज़ हो तुम! क्या जलवा है. और क्या ज़िन्दगी का अल्हड़पन है. जब लड़ाई करते हो तब भी मज़ा आता है, चिढाते हो, पीछे पड़ते हो, तब भी फख्र होता है कि कोई तो बंदा है जो अपना काम कर रहा है. चाहता तो वह भी माइक आई दी बाँट देता, क़स्बे क़स्बे में ब्यूरो खोल लेता, बाद डिपाजिट लेकर दुकान बड़ी कर लेता. आज भी बाज़ार में कई खरीद दार तैयार खड़े हैं, लेकिन उन्हें निराश होना पड़ रहा है.
…वे लोग सदा निराश रहें. यही दुआ.
प्रकाश हिन्दुस्तानी
इंदौर
लेखक प्रकाश हिंदुस्तानी इंदौर के निवासी हैं. मध्य प्रदेश के वरिष्ठ और जाने-माने पत्रकार हैं. कई मीडिया हाउसों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता और स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं. उनसे संपर्क 09893051400 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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