केजरीवाल– प्रसून के बातचीत के विडियो लीक होने के बाद से मीडिया जगत में हड़कम्प मचा है। प्रसून एक प्रतिभाशाली, संवेदनशील, होनहार और जागरूक पत्रकारों में से एक माने जाते है। केजरीवाल- प्रसून की बातचीत के विडियो में प्रसून ने ना ही कोई आपतिजनक बात कही है और ना ही वे किसी पार्टी के लिए लॉबिंग कर रहे है। प्रसून कभी-कभी हड़बड़ी में आपा खो देते है यह सच है। जब वो सहारा में एडिटर-इन-चीफ पद पर कार्यान्वित थे उस दौरान लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे। जब लालू प्रसाद यादव का इंटरव्यू पूरा हो गया तो उन्होने प्रसून को कहा, आप आजतक चैनल छोड़कर यहां आये है तब प्रसून ने कहा जी हां….. सहारा को ठीक करने आया हूं। यह अनएडिटेड वीडियो सहाराश्री को एडिटरूम से चला गया और प्रसून को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
केजरीवाल– प्रसून के बातचीत के बाद प्रसून को सोशल साइट्स पर मीडिया का दलाल जैसे सम्बोधन से बुलाया जा रहा है। प्रसून की पत्रकारिता पर प्रश्निचिन्ह लगाना मतलब पत्रकारिता के मूल्यों को कठघरे में खड़ा करना है। प्रसून एक प्रतिभाशाली पत्रकार हैं।
1990-95 का दौर था जब टीवी न्यूज़ चैनल का बाजारीकरण नहीं था। वो नागपुर से प्रकाशित हिंदी अखबार लोकमत समाचार में रिपोर्टर थे। उस दौरान महाराष्ट्र के आदिवासी जिले गडचिरोली में कुछ नाबालिग लड़कियों से गाव के दबंगों ने बलात्कार किया था। कुछ कांग्रेसी नेताओ ने पीड़िता पर दबाव बनाया। मुम्बई के मंत्रालय से लेकर कांग्रेस के बढ़े नेताओ तक ने इस मामले को दबाने की युद्ध स्तर पर कोशिश की। प्रसून को इस घटना कि भनक लगी तो उन्होंने सारे तथ्यो के साथ लोकमत समाचार में पहले पन्ने पर न्यूज़ को पब्लिश किया। अखबार के प्रबंधन ने जब प्रसून को पूछा आप ने खबर क्यों छापी? प्रसून ने जवाब दिया, मैंने पत्रकारिता का धर्म निभाया है। प्रसून की इस खबर से महाराष्ट्र की राजनीति में काफी कड़कंप मचा था। कुछ स्थानीय नेताओं ने मिलीभगत करके पीड़ितों से झूठा बयान स्थानीय मीडिया के समक्ष दिलाया। किन्तु प्रसून ने सभी पीड़ितों को नागपुर बुलाया। नागपुर मीडिया के सामने पीड़ितों को कहना पड़ा दबाव के कारण उन्होने बयांन बदला था। उन्होंने टाडा में फसे बेगुनाह आदिवासियो पर बेहतर रिपोर्ट पेश की थी, जिसके चलते सरकारों को टाडा वापस लेना पड़ा था। प्रसून के इसी स्टोरी ने उन्हें रामनाथ गोयनका अवॉर्ड तक पहुचा दिया। केजरीवाल- प्रसून के बातचीत से पुण्य प्रसून वाजपेई मीडिया का दलाल कहना बहुत जल्दबाजी होगा।
लेखक सुजीत ठमके से [email protected] पर सेपर्क किया जा सकता है।