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बर्मा में 16 निजी दैनिक अख़बारों को एक अप्रैल से सर्कुलेशन की अनुमति

बर्मा ने प्रेस सुधारों की तरफ ऐतिहासिक कदम बढ़ाते हुए 16 निजी दैनिक अख़बारों को एक अप्रैल से सर्कुलेशन की अनुमति दे दी है. पांच दशक के सैन्य शासन की 2011 में समाप्ति के बाद बर्मा ने लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले क्लिक करें मीडिया में सुधारों की शुरुआत की है. जिन अख़बारों को प्रकाशन की अनुमति दी गई है उनमें विपक्ष की नेता क्लिक करें आंग सांग सू ची की पार्टी द्वारा संचालित अख़बार भी शामिल है. हाल ही में जापान की संवाद एजेंसी क्योदो ने भी रंगून शहर में अपना ब्यूरो खोला था.

बर्मा ने प्रेस सुधारों की तरफ ऐतिहासिक कदम बढ़ाते हुए 16 निजी दैनिक अख़बारों को एक अप्रैल से सर्कुलेशन की अनुमति दे दी है. पांच दशक के सैन्य शासन की 2011 में समाप्ति के बाद बर्मा ने लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले क्लिक करें मीडिया में सुधारों की शुरुआत की है. जिन अख़बारों को प्रकाशन की अनुमति दी गई है उनमें विपक्ष की नेता क्लिक करें आंग सांग सू ची की पार्टी द्वारा संचालित अख़बार भी शामिल है. हाल ही में जापान की संवाद एजेंसी क्योदो ने भी रंगून शहर में अपना ब्यूरो खोला था.

हालांकि देश की पत्रकार बिरादरी में इसे लेकर ज़्यादा उत्साह नहीं हैं. दरअसल वे सूचना मंत्रालय के एक प्रस्तावित क़ानून से ख़फ़ा हैं. उन्हें लगता है कि ये क़ानून मुश्किल से मिली उनकी आज़ादी पर कुठाराघात है. क़ानून का मसौदा पहली बार 27 फरवरी को सरकारी अख़बारों में छपा था और पांच दिन बाद इसे मंजूरी के लिए संसद भेजा गया था. हालांकि मीडिया और कुछ सांसदों की आलोचना के बाद इसे कार्यसूची से हटा दिया गया था. लेकिन जून में संसद में इस पर चर्चा होने की संभावना है.

बर्मा में प्रेस की आज़ादी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडैक्स में देश को 179 की सूची में 151वें स्थान पर रखा गया है. मीडिया पर लगी कई पाबंदियों को पिछले साल हटाए जाने के बाद बर्मा ने इस सूची में 18 स्थान का सुधार किया था. अगर ये विधेयक पारित होता है तो सैन्य शासन द्वारा 1962 में मीडिया के संबंध में पारित क़ानून और 1931 का प्रेस (इमरजेंसी पॉवर्स) एक्ट रद्द हो जाएंगे. लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस विधेयक में पुराने क़ानूनों के कई प्रावधानों को बरकरार रखा गया है.

साप्ताहिक न्यूज जर्नल इलेवन न्यूज ने अपनी वेबसाइट में संपादकीय में लिखा है कि 1962 के क़ानून की धारा सात के चैप्टर तीन को इस विधेयक में शामिल किया गया है. विधेयक में कहा गया है कि प्रिंटिंग फर्म या प्रकाशक को ऐसी सामग्री के प्रकाशन की अनुमति नहीं होगी जिससे देश में क़ानून की स्थिति खराब हो, हिंसा को बढ़ावा मिले, किसी धर्म या जाति का अपमान हो या जो संविधान या किसी क़ानून का ख़िलाफ़ हो.

अगर नया अख़बार सरकार के साथ अपना पंजीकरण नहीं करता है तो उसके मालिक को छह महीने की कैद हो सकती है या 3500 डॉलर का जुर्माना भरना पड़ सकता है. अख़बारों को लाइसेंस जारी करने और क़ानून तोड़ने वालों पर नज़र रखने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया जाएगा. बर्मा पत्रकार संघ ने इस मसौदे को नई बोतल में पुरानी शराब बताया है. संघ ने कहा कि मसौदा प्रकाशन के मूलभूत नियमों के ख़िलाफ है.

साउथईस्ट एशियन प्रेस एलायंस सेक्रेटेरिएट ने कहा कि ये मसौदा इस बात का प्रमाण है कि सरकार लाइसेंस कंट्रोल के माध्यम से प्रिंट मीडिया पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहती है और वो मीडिया की पूरी आज़ादी देने के लिए तैयार नहीं है. पत्रकारों का कहना है कि मीडिया ने हाल में रखाइन और मैखटीला प्रांतों में हुई साम्प्रदायिक हिंसा तथा कचीन विद्रोहियों के साथ हुई झड़पों की मीडिया ने अच्छी खासी रिपोर्टिंग की थी और प्रस्तावित क़ानून से मीडिया की आज़ादी प्रभावित हो सकती है. नार्वे से संचालित बर्मीज डेमोक्रेटिक वॉयस ऑफ बर्मा ने कहा कि इस कानून का मतलब है कि अगर आपने कचीन के पक्ष में कुछ लिखा तो आपका लाइसेंस रद्द हो जाएगा और आपको जेल भी हो सकती है.

सरकार द्वारा गत सितंबर में गठित अंतरिम प्रेस परिषद भी इस बात से नाराज है कि विधेयक के बारे में उससे कोई सलाह तक नहीं ली गई. परिषद को प्रकाशन क़ानून को दोबारा लिखने के लिए कहा गया था लेकिन सूचना मंत्रालय के विधेयक से परिषद के सदस्यों को आश्चर्य हुआ है. हालांकि सूचना मंत्री आंग क्यी ने इस विधेयक के मसौदे का बचाव किया है. उन्होंने कहा कि इससे प्रेस की आज़ादी में दखल दिए बिना देश में वैमनस्य फैलाने वाली सूचना सामग्री को प्रकाशित होने से रोका जा सकेगा. (बीबीसी)

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