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पुण्य प्रसून बाजपेयी की हिंदी और ‘जड़मति’ होते पाठक

पुण्य प्रसून बाजपेयी हिंदी पत्रकारिता जगत में किसी परिचय के लिये मोहताज़ नहीं हैं। भारतीय मीडिया में उनकी छवि एक जानकार पत्रकार की रही है, लेकिन उनके ब्लॉग पर एक सरसरी निगाह डालने से साफ़ पता चलता है कि भाषा पर उनकी पकड़ कितनी कमजोर है। उनके आलेख में न सिर्फ़ हिज्जे की गलतियों की भरमार है बल्कि दोहे को भी गलत लिखा गया है।

पुण्य प्रसून बाजपेयी हिंदी पत्रकारिता जगत में किसी परिचय के लिये मोहताज़ नहीं हैं। भारतीय मीडिया में उनकी छवि एक जानकार पत्रकार की रही है, लेकिन उनके ब्लॉग पर एक सरसरी निगाह डालने से साफ़ पता चलता है कि भाषा पर उनकी पकड़ कितनी कमजोर है। उनके आलेख में न सिर्फ़ हिज्जे की गलतियों की भरमार है बल्कि दोहे को भी गलत लिखा गया है।

शुक्रवार 14 सितंबर को प्रकाशित उनके आधिकारिक ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com के ताज़ा आलेख के शीर्षक में ही तुलसी के दोहे का एक हिस्सा गलत लिखा गया है। इस शीर्षक और आलेख में 'सिल' को 'सील' लिखा गया है जिसे पत्थर की बजाय नमी या सीलन के अर्थ में लिखा जाता है। आगे भी इस दोहे को (शायद उसके अपभ्रंश को सुधारने की कोशिश में) गलत लिखा गया है। आलेख में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की देश-विदेश की मीडिया में धूमिल होती छवि के बारे में बताया गया है और उसके कारणों पर सवाल उठाया गया है। ये आलेख कितना सार्थक और प्रभावी है ये एक अलग बहस का मुद्दा है, लेकिन ऐसी भाषा हिंदी के कई जानकारों की नज़र में चुभती है। 
 
उनके ब्लॉग पर उनका परिचय कुछ यूं लिखा है। "पुण्य प्रसून बाजपेयी ज़ी न्यूज़ (भारत का पहला समाचार और समसामयिक चैनल) में प्राइम टाइम एंकर और सम्पादक हैं। पुण्य प्रसून बाजपेयी के पास प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 20 साल से ज़्यादा का अनुभव है। प्रसून देश के इकलौते ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें टीवी पत्रकारिता में बेहतरीन कार्य के लिए वर्ष 2005 का ‘इंडियन एक्सप्रेस गोयनका अवार्ड फ़ॉर एक्सिलेंस’ और प्रिंट मीडिया में बेहतरीन रिपोर्ट के लिए 2007 का रामनाथ गोयनका अवॉर्ड मिला।"
 
पुण्य प्रसून की ये हिंदी इसलिये भी सोचनीय है कि उनकी पहचान उसी टेलीविजन से बनी है जिसमें टिकर पर हुई इससे भी छोटी गलतियों के लिये कितनों की नौकरी चली जाती है। प्रिंट मीडिया से अपने करीयर की शुरुआत करने वाले पुण्य प्रसून ने नागपुर के लोकमत टाइम्स, दिल्ली के करंट न्यूज़ (अब बंद हो चुका अखबार) और आजतक व एनडीटीवी जैसे कई प्रमुख संस्थानों और चैनलों में काम कर चुके हैं। 
 
मीडिया में उनकी छवि एक गंभीर, पढ़ाकू और ढेर सारा ज्ञान बांटने वाले पत्रकार के तौर पर होती है। कई पत्रकार उन्हें प्रेम और श्रद्धा से 'पुन्नू बाबा' भी कहते हैं और उनके कहे एक-एक शब्द को बाइबिल की पंक्तियों की तरह मानक मानते हैं। देश की कई नामी-गिरामी हस्तियां, जिनमें सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी भी शामिल हैं, खुले मंच पर खुद को पुण्य प्रसून का फैन बता चुकी हैं। उनका ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com भी पाठकों के बीच खासा लोकप्रिय होता जा रहा है।
 
वैसे तो ये ब्लॉग अंग्रेजी में भी होने का दावा करता है, लेकिन उस हिस्से को 13 अप्रैल 2009 से अबतक अपडेट नहीं किया गया है। बहरहाल, उनका हिंदी ब्लॉग भाषाई अशुद्धियों की भरमार बन हिंदी प्रेमियों को लगातार मुंह चिढ़ा रहा है। किसी ने बताया कि उनका ब्लॉग कोई और डिज़ाइन और मैनेज़ करता है, लेकिन अपने आलेखों की फाइनल कॉपी वही देखते हैं। ऐसे में इन अशुद्धियों को क्या माना जाए… गलती या भूल? एक बड़े भाषा के जानकार ने टिप्पणी की, "वैसे भी 'जड़मति' लोगों को लिखने का प्रयास करते रहना चाहिये तभी तो वे 'सुजान' बनते हैं।"

 

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