संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतवर्ष में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव प्रत्येक पांच वर्ष के कार्यकाल के पश्चात् निर्वाचन आयोग के द्वारा करवाये जाते है। कई बार सत्ता परिवर्तन का अवसर आया किन्तु सदैव चुनाव परिणामों के अनुसार निर्वाचित जनप्रतिनिधि अहिंसक तरीके से सत्ता संभालते रहे है। इस लोकतांत्रिक परम्परा को भारत में आत्मसात कर लिया गया है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है, किन्तु दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के लोकतंत्र में यह एक विडम्बना रही कि राजनैतिक दलो में आंतरिक लोकतंत्र की स्थिति पर सदैव प्रश्न चिन्ह लगा रहा है। किसी भी राजनैतिक दल की ओर से चुनाव में कौन उम्मीदवार होगा, इसके निर्धारण की पद्धति की पारदर्शिता संदिग्ध रही है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा आसन्न होती है उसके कुछ समय पुर्व से राजनैतिक दलो में उम्मीदवारी को लेकर स्पर्धा सामने आती है, लोक सभा या विधानसभा चुनाव की स्थिति में राजनैतिक दलो में उम्मीदवारी के अभिलाषी नेता व कार्यकर्ता प्रदेश व देश की राजधानी की ओर दौड़ लगाते है।
प्रांतीय व राष्ट्रीय नेताओ की कृपा दृष्टि व आर्शीवाद अर्जित करने के लिये कई यतन किये जाते है। इस दौड़ में सफलता का प्रथम सोपान उम्मीदवारी का टिकिट प्राप्त कर लेना ही होता है। धर्म, जाति व अन्य कई प्रकार के मापदण्डो के आधार पर जोड़-तोड़ की जाती है। यहां तक कि उम्मीदवारी के टिकिट वितरण में आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप प्रत्यारोप भी सामने आते रहे है। सेवा के प्रति समर्पित भाव से राजनीति मे सम्मिलित होने वाले कई व्यक्ति इस टिकिट की दौड़ में अपने आप को असहाय पाते है तथा लोकतंत्र के माध्यम से योग्यतम व श्रेष्ठतम नेतृत्व के सामने आने की परिकल्पना साकार नहीं हो पाती है।
सातवें दशक में चल रहे हमारे लोकतंत्र में समय के साथ कई परिष्कार हुये, परिपक्वता आई, सुधार हुये, जिसके फलस्वरूप न केवल राजनैतिक दृष्टि से देश संसार के सामने मजबूती से उभरा बल्कि आर्थिक संबल और ज्ञान विज्ञान की प्रगति मे भी देश ने दुनिया के सामने अपना प्रबल स्थान बनाया। किन्तु राजनैतिक दलो की आंतरिक व्यवस्था के प्रति असंतोष अंदर ही अंदर पनपता रहता है। इसी के परिणाम स्वरूप भीतर घात तथा दलो की अन्तर्कलह रह-रह कर सामने आती रहती है। व्यवस्था की अन्तर्निहित दुर्बलता के कारण ही चुनाव के ठीक पहले आयाराम-गयाराम की प्रवृत्ति देखने को मिलती है, जो केवल सत्ता अर्जित करने के प्रयोजन से राजनीति में प्रवेश करते है और राजनीति में बने रहते है वे न विचारधारा से प्रतिबद्ध होते है और न ही उन्हे किन्ही सिद्धांतो से कोई सरोकार होता है। उनका एक ही ध्येय होता है उम्मीदवारी का टिकिट प्राप्त करना और चुनाव लड़कर सत्ता पर काबिज हो जाना। टिकिट वितरण के कोई निश्चित व पारदर्शी मापदण्ड न होने का यह परिणाम है।
देश की राजनीति में जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह उभरे करोड़ो लोगो की आशा के केन्द्र युवा नेता श्री राहुल गांधी ने देश को आगे बढ़ाने के लिये अपने मौलिक विचारों के अनुरूप कई प्रयोग किये है। समय आने पर दृढता के साथ अपने विचारों के अनुरूप नीतियों के निर्धारण के प्रयास किये है और सफलता प्राप्त की है। न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये लंबी सजा पाने वाले व्यक्तियो को अपील के विचाराधीन रहने के आधार पर जनप्रतिनिधि बने रहने देने के संबंध में प्रस्तावित अध्यादेश को खुली पत्रकारवार्ता में नकार देने तथा आम आदमी की पीडा को समझकर अनुदान के आधार पर सस्ते मुल्य पर पर्याप्त संख्या में घरेलु गैस उपलब्ध कराने जैसे मुद्दो पर उन्होने अपने अभिमत को लागू करवाने के लिये जिस दृढता का परिचय दिया उससे यह स्पष्ट हो गया है कि देश के ज्वलंत मुद्दो पर न केवल वे अपने मौलिक विचार रखते है बल्कि उनमें ऐसी क्षमता है कि वे उन विचारो के अनुरूप व्यवस्था में परिवर्तन भी करवा सकते है।
कांग्रेस में चुनाव में उम्मीदवारी के टिकिट वितरण की अब तक प्रचलित पद्धति में आमूल परिवर्तन करने के अपने मौलिक विचार को लागू करने के पूर्व राहुलजी ने इस लोकसभा चुनाव के संदर्भ में 16 संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस के सरपंच स्तर के कार्यकर्ता से लेकर, सांसद और विधायक स्तर के जनप्रतिनिधियो एवं ब्लाक से लेकर जिला स्तर के संगठन के पदाधिकारीयो एवं आम जनता में से विभिन्न संगठनो के प्रतिनिधियों के द्वारा उम्मीदवार का निर्वाचन करवाने का एक प्रयोग पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया है। इसके तहत मन्दसौर संसदीय क्षेत्र मे भी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का कौन उम्मीदवार हो इसके बारे में चुनाव किया गया है। इस चुनाव हेतु विधिवत निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री श्री नीरज डांगी ने अपने सहयोगी सहायक निर्वाचन अधिकारियो श्री अशोक टांक, सुनील बिन्जोल, संदीपकुमार, हरीश चैधरी, प्रीतम शर्मा, उमेशसिंह तंवर, बलराम यादव, कुलदीपसिंह बछल, आदम सिसौदिया, देव कसाना, सत्यन पुथुर, मनोज सहारन, सुरेन्द्र यादव, आरसी चैधरी, राजकुमार कीराडु जो राजस्थान, हरीयाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतो से आये थे के साथ मन्दसौर संसदीय क्षेत्र मे रहकर इस निर्वाचन को विधिवत् संपन्न करवाया। यह चुनाव पूर्ण पारदर्शिता के साथ, निष्पक्ष रूप से हुआ।
कांग्रेस के जिला एवं ब्लाक संगठन के वर्तमान व पुर्व पदाधिकारियों, ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक के वर्तमान व पूर्व जनप्रतिनिधियो, सहयोगी संगठनो, युवक कांगे्रस, महिला कांग्रेस, सेवादल, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन व अजा, अजजा, अल्प संख्यक प्रकोष्ठो के पदाधिकारियो व गैर-राजनैतिक संगठनो के प्रतिनिधियों को सम्मिलित करते हुये मतदाता सूची बनाई गई उस पर आपत्तियां आमंत्रित की गई, उसमे आवश्यकतानुसार परिवर्तन, परिवर्धन एवं संशोधन किया गया और अंतिम घोषित मतदाता सूची के आधार पर यह चुनाव संपन्न हुआ। चुनाव में वर्तमान सांसद सुश्री मीनाक्षी नटराजन एवं एक अन्य उम्मीदवार द्वारा नाम निर्देशन पत्र प्रस्तुत करने पर दोनो के बीच उपरोक्त मतदाताओ के द्वारा गुप्त मतदान द्वारा यह चुनाव संपन्न हुआ।
अब तक जिस प्रक्रिया से उम्मीदवार का चयन होता है उस पर यह आक्षेप किये जाते रहे है कि आम पार्टी जनो की भावना को ध्यान मे रखे बिना ही व्यक्तिगत निष्ठा एवं अन्य आधारों पर उम्मीदवारी के टिकिट का निर्धारण कर दिया जाता है। चयनित उम्मीदवार के जनाधार पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े किये जाते है। ये प्रश्न चिन्ह सदैव निराधार भी नहीं होते है क्योकि ऐसे भी उदाहरण सामने है कि अपने प्रभाव से टिकिट प्राप्त कर निर्वाचित होने के बाद प्रतिनिधियो ने एक बार भी निर्वाचन क्षेत्र के पार्टीजनो या मतदाताओ से क्षेत्र में जाकर उनके हाल चाल नही पुछें। कई कई अभिलाषी टिकिट की दौड़ में सम्मिलित होते है और अन्ततः एक को छोड़कर शेष को जब निराशा हाथ लगती है तो वे या तो उनमे से कई चुनाव में तटस्थ भाव अपना लेते है या अपने असंतोष को भीतर घात की सीमा तक जाकर व्यक्त करते है। इससे पार्टी की एकता और शक्ति प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।
अब, जब पार्टीजनो ने स्वयं एक पारदर्शी प्रक्रिया के द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन किया है तो किसी को भी यह कहने का अवसर शेष नहीं है कि उनके उपर उम्मीदवार थोपा गया है या अपात्र व्यक्ति को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। लोक तांत्रिक तरीके से उम्मीदवार के चयन में प्रत्येक राजनैतिक कार्यकर्ता स्वयं के प्रति राजनैतिक न्याय की अनुभूति करता है। जिसे चयनित होने का अवसर नही मिला वह भी यह भली भांति जान लेता है कि उसे बहुमत का समर्थन हासिल नहीं रहा, इसलिये उसे अवसर नही मिला है। इसके लिये वह किसी अन्य को दोषी नही ठहरा सकता बल्कि और अधिक प्रभावी तरीके से कार्य करके भविष्य में बहुमत अर्जित करने के लिये प्रयत्न का विकल्प उसके लिये खुला रहता है।
वास्तव में राहुलजी ने अभी केवल 16 क्षेत्रों में यह प्रयोग किया है किन्तु इसे आम कांग्रेसजनो ने इतना पसंद किया है कि निश्चित रूप से आगे आने वाले समय में पुरे देश में और प्रत्येक चुनाव में इस पद्धति को अपनाना ही श्रेष्ठ उपाय होगा। जितना गर्व भारतवासियों को अपने लोकतंत्र पर है उतना ही गर्व आगे चलकर जब राजनैतिक दलो में आंतरिक लोकतंत्र को सुदृढ बनाया जाएगा तब उन्हे इस मुद्दे पर भी आत्म संतोष होगा। अब तक यह धारणा रही है कि उम्मीद्वार के चयन में आम कार्यकर्ताओं के अभिमत को ध्यान मे नहीं रखा जाता किन्तु जब आम कांग्रेसजन को उम्मीद्वार के चयन में मतदान का अवसर मिला तो उन्हे अपनी भूमिका एवं योगदान के प्रति आत्म गौरव की अनुभूति हुई है। कई-कई प्रतिस्पर्धियों में से एक का चयन होने पर शेष के सामने सआधार या निराधार पक्षपात या अन्याय का आरोप लगाने का अवसर अब समाप्त हो जाएगा। निर्वाचन के माध्यम से चयन की स्थिति में पिछड़ जाने वाले अभिलाषी भी अब किसी प्रकार का आक्षेप लगाने की स्थिति में नहीं रहेगे। जिन कांग्रेसजनो एवं अन्य मतदाताओ ने अपना उम्मीदवार चुना है वे नैतिक और आत्मीय रूप से उसे चुनाव में जीताने के लिये भी प्रतिबद्ध हो जाएंगे। इस प्रकार निश्चित रूप से इसका अच्छा परिणाम सामने आयेगा।
प्रकाश रातडिया
गौशाला भवन, मन्दसौर
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