सभी की तरह मैं भी माननीय भुवन चन्द्र खंडूड़ी जी को सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री मानता हूँ। उनकी कड़क मिज़ाजी के सभी कायल है। मुझे याद है कि मेरे पड़ोस के गाँव में बचन सिंह नामक एक व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार था। उसकी घर की माली हालत बेहद खराब थी। भाजपा के स्थानीय नेताओं सहित कई समाज सेवियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूड़ी जी से उसके इलाज के लिए सी मुख्यमंत्री राहत कोष से इलाज के लिए कुछ मदद की अपील की। खंडूड़ी जी ने नियम बना लिया था कि वे डीएम की सिफारिश पर ही किसी को मेडिकल ऐड देंगे। तो लोगों ने पहले डीएम से अपील करने का निर्णय लिया। जिस प्रदेश में पटवारी तक से काम कराना "आम आदमी" के लिए टेड़ी खीर हो वहाँ डीएम से काम कराना कितना कठिन होगा आप सोच सकते हैं?
बचन सिंह के आवेदन ने जब तक डीएम से होते हुए सीएम तक का सफ़र तय का लम्बा सफर तय किया, तब तक यमराज ने इन्तजार नहीं किया और वे बचन सिंह के प्राण ले गए। खंडूड़ी जी का एक मामूली रकम का राहत चैक बचन सिंह के घर तब पहुंचा जब उनकी तेहरवीं की रस्म भी पूरी हो चुकी थी। लिहाजा घरवालों ने वो चैक वापस कर दिया।
मैंने सूचना के अधिकार के तहत एक जानकारी माँगी कि ईमानदार मुख्यमंत्री खंडूड़ी जी के स्वास्थ्य पर उनके दो साल के कार्यकाल में जनता का कितना पैसा खर्च हुआ। जो जानकारी मिली उसको देखकर मुझे उस बचन सिंह पर तरस आया जो ईमानदार मुख्यमंत्री के राहत के इन्तजार करते -करते इस दुनिया से कूच कर गया . क्योंकि खंडूड़ी जी के स्वास्थ्य पर 2009 -10 में 356077. 00 रू. तथा 2011-12 में मात्र 505500.00 रू. खर्च आया! मैंनें सुना है, संविधान में सभी नागरिकों के मूल अधिकार एक समान हैं।
सूचना के अधिकार द्वारा प्राप्त आंकड़े
उत्तराखंड की आधा से ज्यादा महिलायें व बच्चियां खून की कमी से ग्रसित है। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी से यह भी पता चला है कि आज तक महिलाओं के स्वास्थ्य परिक्षण का सरकार ने कोई अभियान नहीं चलाया जबकि केंद्र सरकार से आये ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के बजट में खंडूड़ी जी के राज में करोड़ों रुपये का घपला सामने आया है। खैर, घपला घोटाला उत्तराखंड राज्य के लिए कोई नई बात नहीं है इसमें खण्डूड़ी जैसे आदमी भी "बेचारे" बन जाते हैं.
विजेंद्र रावत उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं उनसे संपर्क [email protected] पर किया जा सकता है।