लखनऊ: वैसे तो सूचना आयुक्त का काम सूचना दिलाना है। लेकिन उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त सूचना आयुक्त अपने एक वक्तव्य के कारण खुद ही आरटीआई के जाल में फँस गए हैं। बीते 4 फरवरी को एक अंग्रेजी दैनिक को दिए साक्षात्कार में नवनियुक्त सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह बिष्ट ने वक्तव्य दिया था कि कुछ मामलों में आरटीआई का प्रयोग सरकारी अधिकारियों को प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है। 7 फरवरी को लखनऊ के एक इंजीनियर और आरटीआई कार्यकर्ता संजय शर्मा ने राज्य सूचना आयोग में आरटीआई दायर कर उस रिकॉर्ड की मांग की है जिसके आधार अरविन्द सिंह बिष्ट ने बयान दिया था।
संजय ने बताया कि सूचना आयुक्त लोक प्राधिकारी हैं, वे सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। इस कारण उनके कथन के समर्थन में उपलब्ध अभिलेखों की मांग की गई है। संजय ने बताया कि सूचना के अधिकार अधिनियम में उपलब्ध न करायी जा सकने वाली सूचना के प्रगटन पर रोक के पर्याप्त प्रबंध हैं। इसमें सरकारी कर्मचारी और तृतीय पक्ष के हितों को सुरक्षित रखने की भी पर्याप्त व्यवस्था है। अतः बिना सूचना आयुक्त की मिलीभगत के सूचना मांगने वाले व्यक्ति द्वारा सरकारी कर्मचारी या तृतीय पक्ष के हितों को अन्यथा प्रभावित करना या सरकारी कर्मचारी का उत्पीड़न करना सम्भव ही नहीं है।
संजय ने कहा कि वे इन मामलों में प्राप्त सूचना के आधार पर दोषी सूचना आयुक्तों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी करेंगे।
Urvashi Sharma
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