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सुब्रत राय 170 एकड़ सरकारी जमीन का इस्तेमाल निजी कार्य में कर रहे!

लखनऊ : निवेशको के पैसों को अपना बनाने वाली कंपनी सहारा ने आलीशान सहारा शहर बसाने में भी सरकारी तंत्र और कागजातों में घालमेल किया है। ये पता चला जनसूचना अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त सूचना से। नगर निगम ने जो सूचना दी है वो हैरान करने वाली है। इससे पता चलता है कि सहारा जैसी नामी कंपनी सरकार द्वारा प्रदत्त जमीन का इस्तेमाल निजी कामों में करती है।

लखनऊ : निवेशको के पैसों को अपना बनाने वाली कंपनी सहारा ने आलीशान सहारा शहर बसाने में भी सरकारी तंत्र और कागजातों में घालमेल किया है। ये पता चला जनसूचना अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त सूचना से। नगर निगम ने जो सूचना दी है वो हैरान करने वाली है। इससे पता चलता है कि सहारा जैसी नामी कंपनी सरकार द्वारा प्रदत्त जमीन का इस्तेमाल निजी कामों में करती है।

सहारा ने लखनऊ के पॉश इलाके गोमती नगर के विपुल खंड और अम्बेडकर स्मारक के बगल में मौजूद 170 एकड़ जमीन को यह कह कर एलाट करने का अनुरोध किया कि वो इस भूमि पर आवासीय, व्यवसायिक और हरित पट्टी विकसित करेंगे। नगर निगम ने इस भूमि को सहारा इंडिया हाउसिंग को एलाट कर दिया। सहारा ने जो अर्जी नगर निगम को दी थी उस अर्जी से उलट इस भूमि पर सुब्रत राय का आशियाना खड़ा कर दिया गया।

सुब्रत राय के इस आशियाने में दुनिया का हर वो सामान मौजूद है, जो किसी भी बड़े और पैसे वाले आदमी के पास होने चाहिए। सुब्रत राय के सपनों की इस दुनिया को प्रदेश के मध्यम वर्गीय और गरीब आदमी तो देख नहीं सकते हैं लेकिन इस शहर की ऊँची दीवारों में लगे बड़े बड़े गेट राजनेताओं, फिल्मस्टारों, भारत के विश्व प्रसिद्ध क्रिकेटरों के आगमन पर हमेशा खुल जाते हैं।

नगर निगम और सरकार को इस भूमि को सहारा को देने और वहा बनाये गए भवनों का निरीक्षण करने के बाद अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसने सहारा द्वारा निर्धारित शर्तों का अनुपालन न करने और लीजडीड एवं अनुज्ञप्ति अनुबंध दिनांक 22-10-1994 को लखनऊ नगर निगम द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया।

नगर निगम लखनऊ द्वारा दिये गए नोटिस के विरुद्ध सहारा इंडिया ने न्यायालय सिविल जज (सीनियर डिवीजन ) के यहाँ वाद दाखिल कर दिया। सहारा की तरफ से उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में आर्बिटेशन (मध्यस्थता ) दाखिल किया गया जिस पर उच्च न्यायालय ने दिनांक 20-11-2009 को अवकाश प्राप्त न्यायाधीश कमलेश्वर नाथ को आर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) नियुक्त कर दिया और आर्बिटेशन की अनुमति प्रदान कर दी। आर्बिटेशन वाद आज भी कोर्ट में विचाराधीन है।

इसी पूरी प्रक्रिया में करीब 15 वर्षों का समय बीत गया| इस बीच सहारा उस भूमि पर काबिज रहा। 2007 में प्रदेश में हुये सत्ता परिवर्तन के बाद सहारा के ऊपर कुछ दिनों तक मुश्किलों का दौर आया जब बसपा सरकार के वरिष्ठ मंत्री के इशारे पर नगर निगम के बुलडोजरों और जेसीबी मशीन का रुख गोमतीनगर स्थित सहारा शहर की तरफ मुड़ा। नगर निगम ने पहले उन बड़े दरवाजों पर नोटिस चस्पा की बाद में उन पर बुलडोजर चला दिया और सहारा शहर की उस बाहरी दीवार को गिरा दिया जिसने सुब्रत राय सहारा के तिलस्मी शहर को अपनी ओट में छुपा रखा था।

मामला कोर्ट में होने की वजह से सहारा इंडिया को नगर निगम की कार्यवाई से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा और वो पहले की तरह 170 एकड़ भूमि पर काबिज रहा। आज भी सहारा उस भूमि पर काबिज है। उच्च न्यायालय से नियुक्त आर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) न्यायाधीश कमलेश्वर नाथ मध्यस्थता कर रहे हैं। सहारा ने कोर्ट का सहारा लेकर जिस भूमि को आवासीय, व्यावसायिक और हरित पट्टी के नाम पर लिया था आज भी उस पर सहारा श्री सुब्रत राय सहारा का आशियाना काबिज है।

मायावती की सरकार जाने के बाद प्रदेश में आई सपा सरकार और उसके मुखिया इस मामले में कोई रुचि नहीं ले रहे। कारण ये बताया जा रहा कि मामला माननीय कोर्ट में विचाराधीन है, इस प्रकरण का जो भी फैसला होगा वो कोर्ट से होगा और आर्बिटेशन (मध्यस्थता ) के माध्यम से होगा। बहरहाल जनसूचना अधिनियम 2005 का सहारा लेकर मांगी गई इस सूचना में 22-10-1994 से लेकर 20-11-2009 तक की स्थिति को बताया गया है, वही स्थिति आज भी है। आगे इसमें क्या फैसला होता है ये या तो नगर निगम जानता है या आर्बिटेशन लेकिन ये तय है कि सुब्रत राय का आशियाना फिलहाल वहीँ मौजूद रहेगा।

(मुनेंद्र शर्मा की रिपोर्ट, साभार- पर्दाफाश)

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