मेरे पास मेरे क़त्ल के तरीकों के इतने आफरों की बाढ़ आ गयी है कि मैं हैरान हूँ। मतलब, अतीत में मरने के तरीके इतने जोर-शोर से प्रचारित नहीं किये गये थे वरना तरीके मौजूद तो थे ही, इसके बोनान्जा आफर खपाने के लिए कितने ही लोगों को नरक से गुज़ारा गया।
मसलन, मैं चौरासी के दंगों की तरह गले में जलता टायर डाल कर नरकाग्नि का आनन्द लेते हुए मरूं, रातों-रात छोड़ी गयी गैस में घुटकर तड़प कर मरूं, या उन्नीस सौ बानवे की तरह तलवार से कटना और त्रिशूल भोंका जाना पसंद करूं। या दो हज़ार दो की तरह रेलगाड़ी के डिब्बे में लगाईं आग से तड़प कर मरूं या अपने ही घर में सारे दरवाज़े खिड़कियाँ बंद कर बाहर पेट्रोल छिड़क कर लगाई गयी ब्लास्ट आग में तड़पना पसंद करूँ।
घर में पानी भर कर करेंट दौड़ाने का भी आफर है, त्रिशूल घोंप कर बड़ी कुशलता से अंदर की नन्ही जान को भी मुफ्त मारने का आफर है। इलेक्ट्रिक चेयर का विकल्प भी खुला है। तलवार से काट फेंकने का तो खैर पुराना आफर भी अभी पड़ा ही है।
मरने की तड़प का मजा कई गुना बढ़ाने के लिए मुझे मोबाइल फोन, लैंडलाइन फोन वगैरह भी देने का आफर है कि उस आग से बचाने की खातिर मैं चाहे जिस मंत्री, प्रधानमन्त्री, दमकल, डाक्टर को फोन कर सकूं पर फोन नही उठाया जाएगा यह गारंटी है।
अब तो और नए आफरों की उम्मीद है। सुन रहे हैं कि गैस चैंबर बनवाये जायेंगे। हर शहर में हमारे जैसों के लिए पक्की व्यवस्था की जायेगी की प्राण जाएँ तो दुनिया इसे सैकड़ों साल तक नजीर के तौर पर याद रखे। वो कहते हैं कि हमारे जैसों की मौत को ऐतिहासिक बनायेंगे, ऐसी मौत देंगे कि देखने वालों की रूह तक काँप जायेगी।
मगर मुझमें डर समाया है। वो तो मेरी खातिर नए-नए तरीके दिन रात ईजाद कर रहे हैं। वो दर्द को रस मानते हैं, मैं वीभत्स की कल्पना में हूँ। मरना तो तय है पर कोई ऐसा आफर आये जिससे मरने में दर्द सबसे कम हो, तो बताना।
कवि और सोशल एक्टिविस्ट संध्या नवोदिता के फेसबुक वॉल से साभार।