देहरादून। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में जहां उत्तराखण्ड शासन सारंगी के इशारों पर नाचा करता था, वहीं मुख्यमंत्री बहुगुणा की सरकार में सारंगी का पर्याय बन चुके राका की धुन पर। लेकिन इसकी धुन पर थिरकने वाले लोगों की कतार लम्बी नहीं है। कुछ लोगों ने राका के अब तक के काले कारनामों की फाईल राहुल दरबार की ओर सरका दी है। राजनीति के गलियारों में चर्चा गरम है कि राहुल भी इसकी धुन पर नाचंते हैं या नहीं। भाजपा सरकार के शासनकाल में सारंगी की धुन पर प्रदेश के आला नेता तक नाचा करते थे। सारंगी के बिना शासन के अंदर कोई भी काम नही हो पाता था। खंडूरी के शासनकाल में सारंगी द्वारा किए गए कारनामे भाजपा कार्यकर्ताओ को सरकार से दूर करते चले गए। परिणामस्वरूप भाजपा हाईकमान द्वारा खंडूरी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया गया। खंडूरी के बाद मुख्यमंत्री बने निषंक के शासनकाल में सारंगी का नाम बदलकर राका हो गया। निषंक शासनकाल में राका के इशारे पर कई कारनामों को अंजाम दिया गया। जब तक निषंक कुछ समझ पाते तब तक काफी देर हो चुकी थी। भाजपा हाईकमान राका के कारनामों से इतना आजिज आ चुका था कि उसने भाजपा कार्यकर्ताओं को ही सरकार से दूर कर दिया।
2012 के विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद उत्तराखण्ड में विजय बहुगुणा कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री बने। बहुगुणा के शासनकाल में एक चर्चित अधिकारी, जिसे शासन से लेकर प्रशासन तक राका के नाम से जानता है, के इशारे पर उत्तराखण्ड की सरकार चलनी शुरू हो गई। राका के कारनामों की लिस्ट इतनी लम्बी होती चली गई कि वर्तमान मुख्यमंत्री आम जनता के साथ-साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से भी दूरी बनाते चले गए। उत्तराखण्ड की सरकार में इस विवादित अधिकारी का नाम कई घोटालो में सामने आया है। मुख्यमंत्री यह समझने में नाकाम रहे हैं कि अब तक लिए गए सभी फैसले इसी अधिकारी के इशारो पर, परदे के पीछे लिए गए हैं। राका का खौफ उन ईमानदार अधिकारियो पर भी लगातार बना हुआ है जो प्रदेश हित में विकास की योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन इस विवादित अधिकारी पर सरकार की कृपा के चलते कोई भी ईमानदार अधिकारी अपना विरोध दर्ज नहीं कराना चाहता। यदि कोई विरोध दर्ज कराने की कोशिश करता है, तो उसे षडयंत्र करके किनारे कर दिया जाता है।
उत्तराखण्ड में आगामी पंचायत चुनाव सरकार की परफॉरमेंस साबित करेंगे। वहीं यह चुनाव आगामी 2014 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाईनल के रूप में भी माना जा रहा है। इन चुनावों से यह पता चलेगा कि सरकार की जनता में कितनी पैठ है। विवादित अधिकारी राका की भूमिका को प्रदेश के मुख्यमंत्री समझ पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं और जनता से दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि देहरादून से लेकर दिल्ली तक, जनता के बीच सरकार की नाकारात्मक की छवि बनती जा रही है। जनता का मुख्यमंत्री होने के बाद भी बहुगुणा राका तक सीमित होकर रह गए हैं। उत्तराखण्ड को सैरगाह बनाने वाले आधा दर्जन से अधिक अधिकारी डेप्यूटेशन पर अपना कार्यकाल पूरा चुके हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें उत्तराखण्ड से उनके मूल राज्यो में नहीं भेजा जा सका हैं इसके पीछे भी विवादित अधिकारी राका की कृपा बनी हुई है।
माना जा रहा है उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने यदि इस विवादित अधिकारी से दूरी बनानी शुरू नहीं की तो आने वाले दिनो में कांग्रेस, कोई भी चुनाव जीतती हुई नजर नहीं आ रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जो हाल भाजपा के शासनकाल में खंडूरी व निषंक का हुआ, वही बहुगुणा का हो सकता है। वहीं राका की कई विवादित फाइलें राहुल के दरबार में दस्तक दे चुकी हैं और कांग्रेस हाईकमान उत्तराखण्ड में राका रूपी इस अधिकारी को ठिकाने लगाने की रणनीति में जुट गया हैं।
लेखक राजेंद्र जोशी उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.