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इससे पहले ये सवाल मुझसे किसी ने नहीं पूछा- Are you saving your money to travel the world?

Manisha Pandey : मैं तकरीबन एक हफ्ते दिल्‍ली से बाहर रही। अकेले केरल घूमती रही। केरल स्‍टेट ट्रांसपोर्ट की बस, लोकल फेरी और सरकारी नाव में सफर किया। सस्‍ते गेस्‍ट हाउस, होटल और डॉरमेटरीज में रुकी, जहां का किराया प्रतिदिन साढ़े तीन सौ रुपए से लेकर चार सौ रुपया था। फोर्ट कोच्‍ची, अलेप्‍पी और कोवलम में एक्टिवा और स्‍कूटी किराए पर ली और आसपास के इलाकों की सैर की।

Manisha Pandey : मैं तकरीबन एक हफ्ते दिल्‍ली से बाहर रही। अकेले केरल घूमती रही। केरल स्‍टेट ट्रांसपोर्ट की बस, लोकल फेरी और सरकारी नाव में सफर किया। सस्‍ते गेस्‍ट हाउस, होटल और डॉरमेटरीज में रुकी, जहां का किराया प्रतिदिन साढ़े तीन सौ रुपए से लेकर चार सौ रुपया था। फोर्ट कोच्‍ची, अलेप्‍पी और कोवलम में एक्टिवा और स्‍कूटी किराए पर ली और आसपास के इलाकों की सैर की।

सड़क किनारे के ढाबों और सस्‍ती जगहों पर खाना खाया। नए-नए लोगों से मुलाकात और फिर उनसे दोस्‍ती। अलेप्‍पी में नाव चलाने वाले लोकल सीपीएम के मेंबर, जो चे ग्‍वेरा की फोटो पहचानता था, से लेकर कोवलम के रेस्‍त्रां के वेटर तक सबसे दोस्‍ती हो गई और खूब लंबी बातें। 65 साल का एक रिटायर्ड ब्रिटिश बैगपैकर, जो ऐसे ही सस्‍ती जगहों पर रुकते और सस्‍ते होटलों में खाते हुए दुनिया भर में घूमता रहता था। स्‍वीडन से आई 22 साल की एक लड़की, जो अकेले ही हिंदुस्‍तान घूम रही थी। इस्राइल से आया एक कपल, जो हिंदुस्‍तानी मानकों के हिसाब से पति-पत्‍नी नहीं थे और एक रॉयल इनफील्‍ड में पिछले तीन महीने से घूम रहे थे। पोलैंड का एक लड़का, जो यूं तो लॉ की पढ़ाई कर रहा था, लेकिन बहुत अच्‍छा गिटार बजाता था। फ्रांस से आए 19-20 साल के 4 कॉलेज किड्स, जो ज्‍यां पाल सार्त्र का नाम सुनकर पांच मिनट सोचकर बोले, "कौन सार्त्र। हां-हां, नाम सुना है।" एक स्‍पेनिश आदमी, जो रोज कोवलम बीच पर एक रेस्‍त्रां में अकेले बैठा किताबें पढ़ता रहता था। सबसे बातें की, सब दोस्‍त बन गए। सबकी कहानियां मेरी डायरी में दर्ज हो गईं। एक-एक कर इस ट्रैवल डायरी के पन्‍ने उनकी तस्‍वीरों के साथ खुलेंगे।

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31 साल के पेश से मेरी मुलाकात एलेप्‍पी में हुई। हम दोनों एक ही गेस्‍ट हाउस में रुके थे। हमारी दोस्‍ती हो गई और फिर लंबी बातें। जिंदगी के बारे में, धरती के उन दो हिस्‍सों के बारे में, जहां से हम आते थे। लाइफ, फिलॉसफी, म्‍यूजिक, बुक्‍स, सिनेमा और भी बहुत कुछ। पेश ने मुझसे पूछा, "Are you saving your money to travel the world?" इससे पहले ये सवाल मुझसे किसी ने नहीं पूछा था। "Are you saving your money to travel the world?" लोग कहते हैं, "Save money to buy a car, save money to buy a bigger house. Save money to secure your future." मेरे घर में कभी किसी ने दुनिया घूमने के लिए कभी पैसे नहीं बचाए। जिनके पास पैसे थे, उन्‍होंने और बड़ी कार, और बड़ा घर, और ज्‍यादा गहने खरीदने में, बेटी के दहेज के लिए बचाने में, तामझाम के साथ बेटे की शादी करने में खर्च किए। जिनके पास पैसा नहीं है, उनकी क्‍या बात करना, लेकिन जिनके पास पैसा है, उनके लिए कभी-कभार घूमने का मतलब आलीशान होटलों में रुकना और महंगे रेस्‍त्राओं में खाना खाना है। पैसे का दिखावा करना या उसे लॉकर में बंद करके रखना और खुश होते रहना। मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं दुनिया घूमने के बारे में सोचूं। लेकिन जो भी है, उसे बचा रही हूं, दुनिया घूमने के लिए।

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कमाल ही है। रोज आंखें फाड़कर दुनिया को देखना सीखती रहती हूं। अब अगर मैं कहूं कि दुनिया की नजरों में निहायत प्रगतिशील, लेकिन भीतर से हद चिरकुट, अहंकारी और मर्दवादी मर्द मुझसे भी कम नहीं टकराए, कि अगर मैं कहूं कि सालों पहले मेरे ब्‍वॉयफ्रेंड, जो काफी पढ़ा-लिखा लेखक जीव हुआ करता था, ने मेरे ऊपर भी हाथ उठाया है, कि मैं भी पिट चुकी हूं तो मेरी इस बात को दुर्भावना से भरा दुष्‍टतापूर्ण कथन कहने वालों की लाइन लग जाएगी। "मनीषा को कोई कैसे मार सकता है। हा-हा-हा। ये लड़की दुर्भावना से भरकर लिख रही है।" अरे मूर्खों, ये क्‍यों भूल रहे हो कि आज मैं जो हूं, पहले नहीं थी। वक्‍त के साथ हुई हूं। हर दिन लड़ती हूं, हर दिन सीखती हूं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने पलटकर थप्‍पड़ मारना सीखा, उलटकर जवाब देना सीखा, नकारना सीखा, गेट आउट बोलना सीखा, सामान उठाकर घर से बाहर फेंक देना सीखा, "नो" बोलना सीखा, अकेले रहना, जीना और खुश होना सीखा। अपने पैसे खुद कमाना और अपना घर खुद बनाना सीखा। अपनी जिंदगी की जिम्‍मेदारी लेना सीखा। मेरी जिंदगी किसी के बाप की बपौती नहीं। मेरी है। प्रेम भाव, व्रत-उपवास, सेवा-समर्पण, बलिदान, त्‍याग, दया – माय फुट। यू डोंट डिजर्व। इसलिए सालों बाद मुझे बैठकर रोने-धोने, और इसने ये किया, उसने वो किया का गाना गाने की कोई जरूरत नहीं। जो हुआ सो हुआ। लेकिन अब नहीं हो सकता। किसी प्रगतिशील उल्‍लू के पट्ठे की बीवी बनकर बुढ़ापे में रोने और दुखभरी आत्‍मकथा लिखने से तो मैं आज फक्‍कड़ जिप्‍सी ही अच्‍छी। "मैं नीर भरी दुख की बदली" से कहीं ज्‍यादा आगे की चीजें हैं मेरे पास लिखने के लिए।

इंडिया टुडे हिंदी मैग्जीन में वरिष्ठ पद पर कार्यरत मनीषा पांडेय के फेसबुक वॉल से.

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