जो लोग चिटफंड स्टायल की कम्पनियों में अपनी मेहनत की कमाई को बैंकों के मुकाबले जल्द दुगुना देखना चाहते थे, उनके लिए आने वाला वक्त मुसीबतों का कारण बन सकता है। क्योंकि रिजर्व बैंक की सख्ती, कम्पनी मंत्रालय की सतर्कता और सबसे बढ़कर अदालतों की सक्रियता के कारण चिटफंड कंपनियों लिए अब जनता से धन उगाहना आसान नहीं रह गया है। इन कम्पनियों की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा होना उनके साम्राज्य के ख़त्म होने जैसा है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष देश की ऐसी सबसे बड़ी कम्पनी जो जनता की जमा राशि के बलबूते ही तरक्की कर रही थी, के मुखिया सुब्रत राय ने बार-बार कहा कि उनके पास जनता को लौटाने के लिए धन नहीं है और वो अब जनता का धन अपनी सम्पत्तियां बेच कर ही दे पायेगी। सम्पत्तियों का आंकलन सेबी पहले ही कर चुकी है और परिणाम चौंकाने वाले हैं, क्योंकि सहारा ने दूसरी चीजों की तरह इस मामले में भी अदालत और सेबी को गुमराह करने की भरपूर कोशिश की थी। कहीं-कहीं तो कौड़ियों की जमीनों को हजारों करोड़ की बना कर पेश किया है। जो सहारा चंद दिन पहले तक अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर अपने अरबों के साम्राज्य का दंभ दिखा रही थी, अदालत पहुँचते ही वो दरअसल कितनी खोखली थी और उसका चक्रवर्ती मालिक कितना कमजोर ये चंद मिनटों में ही सबके सामने उजागर हो गया। अब कोर्ट और सेबी की सख्ती से हो सकता है निवेशकों के धन का अधिक नुक्सान न हो, लेकिन सहारा का तिलिस्म तो टूट ही गया।
पर्ल्स पर भी कसा शिकंजा
सहारा के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी चिट फंड शैली में काम करने वाली और अपने को रियल स्टेट बताने वाली कम्पनी के पाँव कितने जमीन पर है ये भी सामने आ रहा है। सीबीआई ने इस कम्पनी के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ रुपहले सपने दिखाकर जनता से लगभग 45 हजार करोड़ रुपए उगाहने के मामले में केस दर्ज किये है। वैसे इस कम्पनी के खिलाफ ऐसी शिकायतें नई नहीं है। यदाकदा इसके घोटाले सामने आते रहे है। मध्य प्रदेश में तो इस कम्पनी सहित ऐसी सभी कम्पनियों पर अब पूर्णतया प्रतिबंध है और ऐसी कम्पनियों के खिलाफ मामले दर्ज करने के बाद अधिकतर संचालक जेलों की हवा खा रहे है। सभी के खिलाफ सीबीआई जांचें अलग से लंबित हैं। पर्ल्स की सम्पत्तियां भी सीज करने की तैयारी है, ऐसे में इस कम्पनी के निवेशकों का भविष्य भी अँधेरे में है।
जेल में है शारधा के संचालक
कोलकाता में लम्बे अर्से से जनता की मेहनत की कमाई हड़पने वाली चिटफंड संपनी शारधा के मालिक भी अब जेल में है और पब्लिक अपने जमा पैसे लगभग खो ही चुकी है। सहारा की ही तरह ठाठ-बाट के साथ रहने वाले, राजनीतिक और सामाजिक रसूख रखने वाले शारधा के मालिक धमक मीडिया से लेकर फ़िल्मी गलियारों तक थी, लेकिन अब वे जेल में है और उनका रसूख गायब है। ममता बनर्जी ने निवेशकों को आंशिक धन वापसी कर बाकियों को लॉलीपॉप पकड़ा दी है।
एक समय था जब रामविलास पासवान के साले की मालिकी वाली जेवीजी सहित कुबेर, अपैक्स, गोल्डन फारेस्ट, अलकनंदा, नीलांचल, परसराम पुरिया, एनबी प्लांटेशन जैसी दो दर्जन कम्पनियां जनता का हजारों करोड़ रुपए डकार कर नौ-दो-ग्यारह हो गई थीं। निवेशकों ने इस बात से कोई सबक नहीं लिया और एक बार फिर ऐसे निवेशकों का उससे कई गुना धन दांव पर है।
लेखक हरिमोहन विश्वकर्मा से [email protected] के जरिए सम्पर्क किया जा सकता है।