इधर सरकार, सेबी, रिजर्व बैंक, कॉर्पोरेट मंत्रालय चिटफंड के धंधे और चिटफंड की कंपनियों के बारे में सोच-सोच कर दुबले हो रहे हैं उधर नटवरलालों के दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चल रहे है. अभी शारदा, रोजवैली जैसी कम्पनियों का मायाजाल उजागर नहीं हुआ कि महाराष्ट्र से श्रीसूर्या नाम की एक चिटफंड कम्पनी पब्लिक के 2200 करोड़ लेकर फरार है. अब पब्लिक और पुलिस दोनों इस कम्पनी के मालिक समीर जोशी नामक शख्स को तलाश रहे है.
दरअसल सेबी को और अधिक अधिकार मिल तो गए हैं लेकिन हाकिमी का तंत्र वो ही पुराना है. राज्य सरकारें भी इन नटवरलालों की करतूतों को गंभीरता से नहीं ले रही हैं या फिर ऐसी योजनायें बनाने वाले लोगों के सूत्र राज्य सरकारों में बैठ कर उनके हितसंरक्षण का कार्य कर रहे हैं.
ऐसे में जनता के हितों की चिंता किसी को नहीं है. जनता रोज लुट रही है और फिर थानों पर प्रदर्शन कर रही है. न पैसा मिल रहा है न राहत, ग्वालियर से भागी कई कम्पनियों की संपत्ति नीलाम कर जिला प्रशासन ने निवेशकों का पैसा दिया जरूर पर वो उनके निवेश का अंशमात्र ही था.
जेवीजी, कुबेर, अलकनंदा जैसी कई कम्पनियां जो सालों पहले भागी थी आज भी निवेशक इनसे अदालती कार्यवाही में उलझे है और नई -नई चिटफंड कम्पनियां अपने-अपने सुनहरे मायाजालों में गरीबों को अपना शिकार बना रहे है. हालांकि सेबी के रडार पर इनमें से 18 कम्पनियां फिलहाल हैं लेकिन अभी भी ऐसी कम्पनियां सुदूर भारत के हिस्सों में फैली हुई हैं. सेबी, सरकार या किसी भी नीति नियामक संस्थाओं की पकड़ से दूर, जनता की मेहनत की कमाई के बलबूते हजारों-लाखों करोड़ में खेल रही हैं और भारत के नौनिहालों के सपनों को मिटटी में मिला रही हैं.
हरिमोहन विश्वकर्मा की रिपोर्ट.