Prakhar Shrivastava : कल्याणी होस्टल…. भोपाल के शिवाजी नगर में बना दो मंजिला होस्टल, जो बनाया तो कामकाजी महिलाओं के लिए था लेकिन इसमें साथ में रहते थे 19 अनाथ बच्चे… सुरेश, रवि, मुकेश, असलम, अनिल बाकी नाम अब याद नहीं हैं… ये वो अनाथ बच्चे थे जिनके माता-पिता को 2-3 दिसंबर 1984 की काली रात भोपाल गैस कांड ने लील लिया था…
ये होस्टल चारो ओर से सरकारी बंगलों से घिरा था, जिसमें आज भी रहते हैं मध्यप्रदेश के मंत्री, विधायक, आला अधिकारी और ताकतवर पत्रकार… वो नब्बे के दशक की शुरुआत थी… इसी शिवाजी नगर में मैं भी रहता था… हम नए कपड़े पहन कर दिवाली मनाते, पटाखे फोड़ते… लेकिन कल्याणी होस्टल के तुम अनाथ बच्चे हमें ललचाई आंखों से देखते रहते… हमारी और तुम अनाथ बच्चों की उम्र एक थी लेकिन इसके अलावा कोई बराबरी नहीं थी… लेकिन एक दिन वो हुआ जो मैं आज तक नहीं भूला हूं…
उस दिन हमारी टीम और तुम 'अनाथों' की टीम के बीच क्रिकेट मैच था… मैच में हम बेईमानी पर बेईमानी करते जा रहे थे…. लेकिन तुम में से एक 'अनाथ' सुरेश को ये सहन नहीं हुआ…. याद है तुम्हे, सुरेश अड़ गया और हमारी टीम के कैप्टन दीपू ने बल्ला उठा कर सुरेश के सर पर दे मारा… सुरेश का सर फट गया, खून निकल रहा था… हम वहां से भाग गए और तुम उसे अस्पताल ले गए… बाद में तुम्हारी वार्डन तुम सब 'अनाथों' को लेकर पुलिस स्टेशन पहुंच गईं… थाने वालों को भी समझ में आ गया कि वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते…
दीपू विधायक चौधरी राकेश सिंह (मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के उपनेता जो चुनावों से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए) का भतीजा था, बाकी हम अफसरों और पत्रकारों के लड़के…. पलड़ा हमारा भारी था… तुम 'अनाथों' को पुलिस ने डांट कर भगा दिया… उस दिन तुम्हे न्याय नहीं मिला और ना उसके बाद… वो तो एक छोटी सी लड़ाई थी, एक पुलिस थाना था, तुम 'अनाथों' को तो इस देश की अदालतों से भी न्याय नहीं मिला, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं…. तुम अपनी ज़िंदगी का हर केस हारते रहे… ना मुआवज़ा, मिला ना इंसाफ, तुम्हारे मां-बाप के हत्यारों तक को छोड़ दिया गया…
इतने साल बाद सोचता हूं कि तुम्हे तो इस अन्याय की आदत तभी पड़ जाना चाहिए थी, फिर उस दिन थाने में क्या सोचकर इंसाफ मांगने गए थे… हमारी और तुम 'अनाथों' की उस लड़ाई की बात 20 साल पुरानी हो चुकी है… सबकुछ बदल गया है…. मैं तुम्हे भूल चुका था… कुछ साल पहले सुना था कि दीपू (सुरेश को बल्ला मारने वाले) ने इटावा में आत्महत्या कर ली… बाकी के हमारे दोस्त कुछ अपने पिताओं की तरह अधिकारी बन गए हैं, कुछ एमएनसी और आईटी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं… और मैं देश की राजधानी में रहकर पत्रकारिता की दुनिया में जगह बनाने की कोशिश कर रहा हूं… हर साल भोपाल गैस कांड पर एक आइडिया देता हूं और शो बनाता हूं….
पिछले साथ भी तुम अनाथों के दर्द को बेचकर भोपाल गैस कांड पर एक शो बनाया… उस शो को पिछले साल का NT Award मिला… और उस शो का नाम था "क्योंकि हम भूलते नहीं"…. ना जाने क्यों उस शो को बनाते-बनाते मुझे तुम अनाथ बच्चे याद आ गए…. तुम्हारे चेहरे आंखों के सामने घूमने लगे…. और तुम्हारे उन चेहरों में मैं अपनी शक्ल देखने लगा… जानते हो क्यों? क्योंकि 2-3 दिसंबर 1984 की उस रात मेरे पापा भी यूनियन कार्बाइड के एकदम करीब बने होटल ब्लू स्टार में थे…
मैंने एक पल के लिए महसूस किया कि उस रात अगर उन्हें कुछ हो जाता तो मेरे और तुम अनाथों के मेरे बीच कोई अंतर नहीं रहता… लेकिन इस अहसास को जागने में पूरे 20 साल का वक्त लग गया… आज फिर भोपाल गैस कांड की बरसी है… मैंने आज भोपाल गैस कांड पर कोई शो नहीं बनाया, लेकिन फिर भी तुम लोग मुझे बहुत याद आ रहे हो… ना जाने तुम लोग अभी कहां होगे… कभी वक्त मिला तो तुम लोगों को तलाशने की कोशिश करुंगा… क्योंकि एक बार मैं तुम लोगों से सच्चे दिल से SORRY कहना चाहता हूं…
पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.