तेलंगाना के समर्थन और विरोध में हो रहे आन्दोलनों के दौरान तेलगु चैनल मर्यादाओं की सीमा तोड़ते हुए एक दूसरे की खुलेआम आलोचना करते नजर आते हैं. कोई चैनल समर्थन में तो कोई विरोध में खबरें दिखाते हुए ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिससे मीडिया की नैतिकता पर सवाल उठते हैं. आंध्र प्रदेश में शुरू हुए तेलंगाना आन्दोलन के चलते यहाँ मीडिया भी दो भागों में बट गया है, जिसे सीमान्ध्र मीडिया व तेलंगाना मीडिया का नाम यहाँ के लोगो द्वारा दिया जा रहा है. जिस हद तक तेलंगाना आन्दोलन की खबरें विगत में दिखाई गई थी, उससे बढ़कर तेलंगाना विरोधी आन्दोलन की खबरे भी यहाँ दिखाई जा रही हैं.
कभी इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की प्रतिमायें जलाने की खबरें तो कभी राजनीतिक पार्टी के कार्यालयों पर होनेवाले हमलों की खबरें, कुल मिलाकर हिंसा की ऐसी खबरें दिखाना क्या हिंसा को बढ़ावा देना नहीं है? यही नहीं सभी नियमों को ताक पर रखकर यहाँ के चैनल खुलेआम एक दूसरे की पोल खोलते हुए आम लोगों के ज्वलंत मुद्दों को ठन्डे बस्ते में डालकर बैठे हैं. यही नहीं ये चैनल ऐसी खबरे भी दिखाते हैं जिसमे मर्यादाओं का थोड़ा सा भी पालन नहीं किया जाता.
इस सन्दर्भ में 15 अक्तूबर को 11:15 व 11:30 के बीच और 16 अक्तूबर को 10 बजे के बुलेटिन में टीवी 9 पर दिखाए गए लाइव का उल्लेख करना चाहूँगा, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने तिरुपति में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की समाधि बनाकर उनकी फोटो पर हार चढ़ा दिया. ये प्रदर्शनकारी तेलगु देशम पार्टी के हैं. उस चैनल के सवांददाता द्वारा पूछने पर ये नेता बता रहे थे कि वे आज सोनिया गांधी की मौत का दूसरा दिन मना रहे हैं. साथ ही ये नेता असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करते हुए सोनिया गांधी को पिशाच तक कह रहे थे. समाधि के पास रखी गई फोटो पर सोनिया गांधी की जन्म तिथि व मृत्यु तिथि के रूप में उस तारीख को लिखा है, जिस दिन तेलंगाना की घोषणा की गई. अगर इस विषय को पार्टी से जोड़ा ना जाए तो सबसे पहले सोनिया गांधी एक महिला हैं जिन्हें वो आंदोलनकारी भगा भगाकर इटली पहुँचाने की बात कह रहे हैं. वहीं आश्चर्य की बात ये है कि प्रदर्शनकारियों के इस असभ्य कारनामे को पुलिस मूकदर्शक बनकर देख रही थी.
जिस देश में महिला को देवी के रूप में पूजा जाता है और भारतीय संस्कृति की यही पहचान भी है, उनका इस तरह अपमान करना उन आंदोलनकारियों के उद्देश्य पर ही सवालिया निशान लगाता है. वहीं अगर आंदोलनकारियों द्वारा ये कहा जाये कि लोकतंत्र में ऐसा होता है तो इसमें कम से कम नैतिक मूल्यों का पालन तो होना ही चाहिए. मीडिया द्वारा ऐसे स्तरहीन आन्दोलनों को लाइव दिखाना भी उन सिद्धांतों का मजाक उड़ाना ही कहा जा सकता है, जो केवल मीडिया ही नहीं इस समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए बने हैं.
आंध्र प्रदेश में ज्यादातर मीडिया किसी ना किसी राजनितिक दल से जुड़ा है और उनसे जुडी खबरे दिखाना उनकी जरुरत हो सकती है. लेकिन मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है. ऐसे में उसे सामाजिक मर्यादाओं का पालन करना जरुरी है ताकि भारतीय संस्कृति का सम्मान बढ़े. साथ ही आंध्र प्रदेश में हो रहे मीडिया वार पर नियंत्रण के लिए भी एनबीए व केंद्र सरकार द्वारा कोई प्रणाली बनाये जाने की आवश्यकता है.
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http://www.youtube.com/watch?v=iAHGd6TqxNY
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.