सुलतानपुर : 25 जून 2007 को जिला कारागार में बैरिक नम्बर 12 में नल के नीचे मोबाइल मिलने के बाद बंदियों पर कार्रवाई की गई जिसके बाद स्थिति बेकाबू हो गई। प्रशासन के मनमाने रवैये से बंदी एकजुट हो गए थे और तत्कालीन जेल अधीक्षक आरके मिश्र को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी थी। इसके बाद ईंट पत्थर व गुम्मे चलने लगे। सूचना पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अजय मिश्र, थानाध्यक्ष पूनम अवस्थी, देवेन्द्र दूबे, रूमसिंह यादव समेत कई थानों की पुलिस जेल पहुंच गई।
यहां की स्थिति इतनी विकराल थी कि जिसे सुनने के बाद लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जेलकांड में बंदी रक्षक बृजमणि दूबे, चन्द्रभान, बंदी दानपति यादव, बंटी सिंह, मुन्ना समेत पांच लोगों की मौत हो चुकी थी। देर रात तक कड़ी मशक्कत के बाद इस भीषण घटना पर काबू पाया जा सका था। पुलिस की पिटाई से दर्जनों बंदी गंभीर रूप से घायल हुए थे जिन्हें पुलिस की मदद से जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मामले की विवेचना तत्कालीन एसओजी प्रभारी अशोक तिवारी को मिली थी। 30 सितम्बर 2007 को विवेचक अशोक तिवारी ने चार्ज शीट न्यायालय में दाखिल की जिसमें विजय बहादुर यादव, इन्द्रजीत उर्फ राजू यादव, विनोद सिंह, अमर बहादुर यादव, अच्छेलाल यादव, रामपूजन मौर्य, मुन्ना मौर्य, संजय वर्मा, त्रिभुवन उर्फ रमेश चौहान, मो. हसीब, सलीम अहमद, सुनील, राकेश वर्मा, भोला उपाध्याय, देवी मल्लाह, नथुनी यादव, अनिल सिंह, इन्द्रजीत, दयाशंकर, अशोक सिंह, मकबूल अहमद, राजेश उर्फ बाजीगर, गुड्डू यादव, जितेन्द्र वर्मा समेत 24 बंदियों को मुल्जिम बनाया गया। इन पर धारा 147, 148, 149, 307, 332, 333, 427, 436, 395, 3/4 डैमेज ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट व 7 सीएलए के तहत विवेचक ने दंडित किए जाने की मांग की।
मामले की सुनवाई के दौरान जेल अधीक्षक राधाकृष्ण मिश्रा, रामसूरत मिश्र, राजनाथ, शैलेन्द्र कुमार पांडेय, मुस्तफा खां, बृजेश कुमार तिवारी, एसआई धर्मेन्द्र कुमार, मनोज कुमार, स्वयंवर सिंह, एसडीएम सिटी अखिलेश तिवारी, विवेचक अशोक कुमार तिवारी समेत 30 पुलिस कर्मियों के बयान परीक्षित कराए गए। बचाव पक्ष से बंदी सत्यप्रकाश, शिवकुमार, सुनील सिंह, अमित सिंह, शिवबहादुर सिंह आदि के भी बयान दर्ज हुए। मामले की सुनवाई चलती रही।
सुनवाई के दौरान ही बंदी राजू यादव, अच्छेराम यादव समेत कई बंदियों ने मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव समेत अन्य आला अफसरों से गुहार लगाई थी कि जेल प्रशासन जुर्म कबूल कराने के लिए उन्हें लगाकार प्रताड़ित कर रहा है। विरोध करने पर पिटाई की जाती है। इस दौरान कई बार बंदी अनशन पर भी बैठ चुके थे। बाद में जिला प्रशासन ने जेलकांड के आरोपी विनोद सिंह, रामपूजन मौर्य को रायबरेली, मकबूल अहमद को सीतापुर, मुन्ना मौर्य, रमाशंकर वर्मा, सलीम अहमद को प्रतापगढ़, विजय यादव, हसीब को बाराबंकी, अच्छेलाल यादव, सुनील गौतम को जौनपुर, जितेन्द्र उर्फ पप्पू वर्मा को बनारस, संजय वर्मा व अशोक मिश्रा को आजमगढ़ जेल भेज दिया गया।
इधर, मारे गए बंटी सिंह के पिता रामबख्स सिंह मुकदमा दर्ज कराने के लिए कोर्ट का चक्कर लगाते रहे। अन्ततः तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अजय मिश्र, जेल अधीक्षक आरके मिश्र समेत 45 वर्दीधारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने का आदेश दीवानी न्यायालय ने कोतवाली नगर को दिया। मुकदमा दर्ज होने के बाद मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। हालांकि यह मामला न्यायालय में अब भी विचाराधीन है। मंगलवार को एडीजे एक्स कैडर रामकृपाल के फैसले के बाद बंदियों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने छह बंदियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया और 18 बंदियों को जेल में बिताई गई अवधि को सजा मानकर रिहा कर देने का आदेश दिया। जेलकांड के फैसले के समय भीड़ से खचाखच भरी अदालत में जज रामकृपाल ने कहा कि भगवान मुझे देख रहा है। यदि मैं कोई गलती करूंगा तो भगवान मुझे भविष्य में सजा जरूर देगा। इसके बाद उन्होंने फैसला सुना दिया।
जेलकांड की सुनवाई के दौरान गवाह नम्बर 18 डा. धीरेन्द्र सिंह के बयान से ही छह आरोपितों को दोषमुक्त होने का रास्ता साफ हुआ। डा. ने बयान दिया था कि बवाल के समय बंदी विजय बहादुर यादव, विनोद सिंह, अनिल सिंह, देवी मल्लाह, राजेश सिंह व मकबूल जेल अस्पताल में दाखिल थे। डा. के बयान पर ही अदालत ने इन आरोपितों को आरोपमुक्त कर दिया। बहुचर्चित जेलकांड में अदालत के फैसले पर सभी की निगाहें लगी हुईं थी। मंगलवार की सुबह से ही दीवानी न्यायालय परिसर में लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। बंदियों के परिवारीजनों समेत बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं में भी फैसले को लेकर कौतूहल बना हुआ था। फैसला आते ही जहां आरोपितों ने राहत की सांस ली वहीं उनके परिवारीजनों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। फैसला आते ही आरोपितों के परिवारीजन गले मिलकर एक दूसरे को बधाई दी। अदालत से बाहर आने के बाद आरोपितों ने भी परिवारीजनों व शुभ चिंतकों के साथ फैसले का स्वागत करते हुए खुशी का इजहार किया।
जेलकांड में फंसने के बाद कई बंदियों का घर तबाह हो चुका है। आरोपी विनोद सिंह की मां विमला ने रोते हुए बताया कि पैरवी के लिए घर का तिनका-तिनका बिक चुका है। इन्द्रजीत उर्फ राजू यादव ने बताया कि पैरवी के चलते उसका परिवार दाने दाने को मोहताज हो गया है। पैरवी के लिए उसे पैतृक भूमि को भी बेचना पड़ा। आरोपी त्रिभुवन ने बताया कि लगभग सात साल से वह जेल में बंद है। इस दौरान उसके बीबी बच्चों के गहने और खेत तक बिक गए। यह तो बानगी भर है। कमोबेश यही हाल कई बंदियों का है।
आर्म्स एक्ट के निरुद्ध हुए मकबूल के रिहाई आर्डर में नाम को लेकर काश त्रुटि न हुई होती तो शायद मकबूल जेलकांड में मुल्जिम होने से बच जाते। जेलकांड से ठीक एक दिन पहले 24 जून 2007 की शाम मकबूल का रिहाई आर्डर जेल पहुंचा तो उसमें नाम को लेकर थोड़ी सी त्रुटि थी। इसी को ठीक कराने के लिए जेल प्रशासन ने आर्डर को वापस जेल भेज दिया था। अगले दिन जेलकांड की घटना हो गई और मकबूल मुल्जिम बन गए। यही हाल राजू यादव का भी था।
सुल्तानपुर से आसिफ मिर्जा की रिपोर्ट.