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चुनावी पैंतरा: टीम मोदी अब सेक्यूलर क्षत्रपों की भी लेने लगी ‘खबर’

चुनाव की घड़ी नजदीक आती जा रही हैं। ऐसे में, सियासी संग्राम तेज होता जा रहा है। होड़ लगी हुई है कि कैसे राजनीतिक रूप से नहले पर दहला मार दिया जाए। इधर, टीम मोदी ने भी अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया है। अभी तक भाजपा के वरिष्ठ नेता अपना मुख्य राजनीतिक निशाना कांग्रेस पर ही साधते रहे हैं। लेकिन, अब रणनीति में कुछ बदलाव किया गया है। अलग-अलग राज्यों के लिए कई रणनीतियां बना ली गई हैं। कांग्रेस के साथ ही धुर-खांटी सेक्यूलर क्षत्रपों को भी निशाने पर रखा जा रहा है। इसकी आक्रामक शुरुआत खुद एनडीए के ‘पीएम इन वेटिंग’ मोदी ने शुरू की है। बिहार में वे पहले से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधते आए हैं। वे बिहार के दौरे पर जाते हैं, तो चुनावी सभाओं में कांग्रेस से ज्यादा नीतीश पर बरसते हैं। उनकी सेक्यूलर राजनीति पर कटाक्ष के तीखे तीर चलाने से नहीं चूकते। शुरुआती दौर में वे उत्तर प्रदेश में सपा नेतृत्व पर सीधा निशाना साधने से बचते नजर आ रहे थे। लेकिन, अब उन्होंने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके सुपुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर तीखे कटाक्ष शुरू कर दिए हैं। मंगलवार को बरेली की रैली में तो उन्होंने सीएम अखिलेश यादव पर कई कटाक्ष किए। कह दिया कि सपा और बसपा का राज उत्तर प्रदेश को कंगाली के सिवाए और कुछ नहीं दे सकता।

चुनाव की घड़ी नजदीक आती जा रही हैं। ऐसे में, सियासी संग्राम तेज होता जा रहा है। होड़ लगी हुई है कि कैसे राजनीतिक रूप से नहले पर दहला मार दिया जाए। इधर, टीम मोदी ने भी अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया है। अभी तक भाजपा के वरिष्ठ नेता अपना मुख्य राजनीतिक निशाना कांग्रेस पर ही साधते रहे हैं। लेकिन, अब रणनीति में कुछ बदलाव किया गया है। अलग-अलग राज्यों के लिए कई रणनीतियां बना ली गई हैं। कांग्रेस के साथ ही धुर-खांटी सेक्यूलर क्षत्रपों को भी निशाने पर रखा जा रहा है। इसकी आक्रामक शुरुआत खुद एनडीए के ‘पीएम इन वेटिंग’ मोदी ने शुरू की है। बिहार में वे पहले से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधते आए हैं। वे बिहार के दौरे पर जाते हैं, तो चुनावी सभाओं में कांग्रेस से ज्यादा नीतीश पर बरसते हैं। उनकी सेक्यूलर राजनीति पर कटाक्ष के तीखे तीर चलाने से नहीं चूकते। शुरुआती दौर में वे उत्तर प्रदेश में सपा नेतृत्व पर सीधा निशाना साधने से बचते नजर आ रहे थे। लेकिन, अब उन्होंने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके सुपुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर तीखे कटाक्ष शुरू कर दिए हैं। मंगलवार को बरेली की रैली में तो उन्होंने सीएम अखिलेश यादव पर कई कटाक्ष किए। कह दिया कि सपा और बसपा का राज उत्तर प्रदेश को कंगाली के सिवाए और कुछ नहीं दे सकता।

 
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मोदी के बीच गुजरात के शेर भी सियासत का एक मुद्दा बन गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध पर गुजरात सरकार ने अपने गिरि अभयारण्य से उपहार के तौर पर शेर भेजे हैं। जिन्हें फिल्हाल, चिड़ियाघर में रखा गया है। पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक चुनावी सभा में अखिलेश यादव ने गुजरात के शेरों के बहाने मोदी पर चुटकी ली थी। कह दिया था कि गुजरात से उन्होंने शेर मंगाए हैं। लेकिन, ये उत्तर प्रदेश में ज्यादा उछल-कूद नहीं कर पाएंगे। क्योंकि, चंबल के पास उन्होंने कई एकड़ का एक पार्क बनवाया है। इसकी दीवारों के भीतर ही गुजरात के शेर रहेंगे। उन्हें खुले मैदान में दहाड़ने का मौका भी नहीं मिलेगा। ये टिप्पणी अखिलेश ने मोदी पर राजनीतिक कटाक्ष के रूप में कही थी। इसका जवाब मंगलवार को चुनावी रैली में मोदी ने भी चुटीले अंदाज में दे डाला। कह दिया कि यूपी सरकार ने गुजरात के शेर पिंजरों में रखे हैं। क्योंकि, गुजरात के शेरों को संभालना कोई आसान काम नहीं है। क्योंकि, गुजरात का एक शेर जो खुले आम घूम रहा है, उसी ने तमाम छद्म सेक्यूलरों की बोलती बंद कर दी है। मोदी के कटाक्ष पर भीड़ ने जमकर करतल ध्वनि की। पिछले दिनों भी मोदी और सपा सुप्रीमो के बीच सियासी कटाक्ष के तीर चल चुके हैं। मुलायम सिंह यादव ने गुजरात विकास मॉडल पर तीखे तंज कसे थे। यही कहा था कि गुजरात के मुकाबले अखिलेश सरकार ने कम समय में ही यूपी का ज्यादा विकास किया है।

पलटवार करते हुए मोदी ने कहा था कि नेता जी (मुलायम सिंह) गुजरात जैसा विकास करने के लिए 56 इंच के सीने की जरूरत पड़ती है। हर कोई ऐसा विकास कर ले, यह संभव नहीं है। 56 इंच वाली टिप्पणी पर कई दिनों तक मुलायम सिंह मोदी पर बरसते रहे हैं। अब गुजरात से आए शेरों पर जुबानी जंग तेज हो गई है। राजनीतिक हल्कों में माना जा रहा है कि मोदी खास तौर पर उन सेक्यूलर क्षत्रपों पर सियासी प्रहार कर रहे हैं, जिनको लेकर वे कोई राजनीतिक जोखिम नहीं समझ रहे। दरअसल, टीम मोदी को अच्छी तरह मालूम है कि किसी भी स्थिति में मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली सपा, भाजपा सरकार की राजनीतिक बैसाखी नहीं बन सकती है। उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं। भाजपा नेता लगातार कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों से ही दिल्ली की गद्दी का निर्णायक फैसला होगा। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उम्मीद बांधे है कि इस बार 50 सीटों पर ‘कमल’ खिल सकता है। जबकि, मुलायम सिंह यादव पूरा जोर लगाए हुए हैं कि उनकी मौजूदा सीटें घट न पाएं। उल्लेखनीय है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 23 सीटों में सफलता मिली थी। 2012 में वे विधानसभा चुनाव में सपा ने अकेले दम पर बहुमत पाकर अपना सियासी सिक्का जमाया। ऐसे में, सपा और भाजपा के बीच यहां चुनावी जंग काफी तेज है।
 
प्रदेश में करीब दो दर्जन ऐसी सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम समुदाय की रणनीति निर्णायक परिणाम दे सकती है। इस वोट बैंक पर कांग्रेस, सपा व बसपा की भी नजर है। तीनों दल अल्पसंख्यक समाज को अपने-अपने तरीके से लुभाने में लगे हैं। कांग्रेस के नेता यही प्रचार कर रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर सपा-बसपा के बजाए कांग्रेस ही मोदी के विजय रथ को रोक सकती है। ऐसे में, मुस्लिम समाज उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का हाथ मजबूत करे। ताकि, भाजपा के मोदी मिशन को फेल किया जा सके। लेकिन, जमीनी सच्चाई यही मानी जा रही है कि यहां पर कांग्रेस के मुकाबले सपा और बसपा की सियासी स्थिति ज्यादा मजबूत है। अखिलेश सरकार दो साल से सत्ता में है। कई मुद्दों को लेकर सरकार के कामकाज को लेकर लोगों की नाराजगी बढ़ी है। इस मोर्चे पर सपा को तमाम राजनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि, बसपा नेतृत्व अपने सोशल इंजीनियरिंग के चुनावी फार्मूले के जरिए ही प्रदेश में जीत की सबसे बड़ी लकीर खींचने में जुटा है। सपा का नेतृत्व मुस्लिम समाज में यह सवाल भी उछाल रहा है कि चुनाव के बाद बसपा का नेतृत्व सत्ता की जुगाड़ में एनडीए से भी हाथ मिला सकता है। ऐसे में, वे अवसरवादी ‘हाथी’ का साथ देने का जोखिम न लें।
 
यह अलग बात है कि बसपा सुप्रीमो मायावती खांटी सेक्यूलर तेवर दिखा रही हैं। ताकि, मुस्लिम वोट बैंक का पूरा विश्वास जीत सकें। इसके लिए वे हर चुनावी सभा में मोदी के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कर रही हैं। यही कह रही हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बन गए, तो अल्पसंख्यकों के साथ ही दलित और वंचित वर्गों के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। मायावती बार-बार सफाई दे रही हैं कि उनके राजनीतिक विरोधी ही यह अफवाह फैला रहे हैं कि बसपा सत्ता के लिए भाजपा वालों से चुनाव के बाद हाथ मिला सकती है। लेकिन, यह एकदम निराधार बात है। उल्लेखनीय है कि मायावती उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन से सत्ता तक पहुंच चुकी हैं। वे भाजपा के साथ प्रदेश में साझा सरकार भी चला चुकी हैं। सपा नेतृत्व इस हकीकत के बहाने बसपा पर ताने कस रहा है। फिलहाल मोदी, मुलायम सिंह के साथ मायावती पर भी बरस रहे हैं। लेकिन, वे माया पर रोजाना भड़कते नहीं दिखाई पड़ते। राजनीतिक हल्कों में लंबे समय से कयास रहा है कि चुनाव के बाद शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, एनडीए से भी हाथ मिला सकती है। पिछले महीनों में कई मौकों पर पवार सहित उनके सिपहसालार बयानों में मोदी के प्रति नरमी भी दिखा चुके हैं। इन बयानों को लेकर कांग्रेस का नेतृत्व भी चिंतित रहा है।
 
पवार के नरमी के रुख को देखकर भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी दल शिवसेना नेतृत्व ने नाराजगी जताई थी। इस पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पवार को लेकर कड़े बयान दिए थे। यह भी कहा था कि हार का खतरा देखकर अवसरवादी नेता पवार एनडीए में राजनीतिक शरण लेना चाहते हैं। लेकिन, शिवसेना ऐसा नहीं होने देगी। कहीं शिवसेना, भाजपा की नीयत पर शक न करने लगे। ऐसे में, महाराष्ट्र भाजपा के भी कई नेताओं ने पवार को जमकर कोसा। इसके बाद तो एनसीपी के नेताओं ने भी मोदी के खिलाफ बयानबाजी तेज की। पिछले दिनों शरद पवार तो यहां तक कह चुके हैं कि मोदी को किसी मानसिक अस्पताल में इलाज कराना चाहिए। क्योंकि, उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं रह गया। इस बयान के बाद मोदी ने भी पवार की जमकर खबर ली है। रही-सही कसर भाजपा के पूर्व अध्यध नितिन गडकरी ने पूरी कर दी है। उन्होंने कह दिया है कि पवार पर बुढ़ापे का काफी असर हो गया है। उनके कई आॅपरेशन हो चुके हैं। ऐसे में, वे उनके खिलाफ ज्यादा नहीं बोलना चाहते। क्योंकि, उनकी खराब सेहत को देखते हुए हम उनकी बदजुबानी को भी माफ करते हैं। क्योंकि, हमें पता है कि महाराष्ट्र की जनता वैसे भी कांग्रेस के साथ एनसीपी का सफाया करने जा रही है। ऐसे में, हम इन ‘बेचारों’ पर अपनी जुबान का स्वाद क्यों कसैला करें?

 

लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।
 

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