ऐसी जानकारी मिल रही है कि तेलंगाना का विरोध करने में चरमोत्कर्ष पर पहुंचे कांग्रेस, टीडीपी और वाईएसआर के सांसदों का सीमांध्र की जनता के हितों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका मक़सद केवल तेलंगाना बनने के बाद वहाँ स्थित उनके उद्योगो की रक्षा है जिसके कारण वे बर्बाद हो सकते है।
छोटे राज्यों की मांग करने वाले कमोवेश सभी संगठनों का ये अनुभव है कि ऐसी मांगों के पीछे क्षेत्रों का, प्रदेशों का असमान आर्थिक विकास है। एक और बड़ा कारण ऐसे क्षेत्रों का विकसित क्षेत्रों द्वारा पिछड़े क्षेत्रों में स्थित संसाधन, श्रम और विपुल खनिज संसाधनों के प्रति उपनिवेशवादी रवैया है। इन परिस्तिथियों में गरीब क्षेत्र और गरीब और समृद्ध इलाके और समृद्ध होते गए है। असंतुलन बढ़ता गया त्यों-त्यों आक्रोश भी बढ़ता गया और राज्यों के विभाजन की मांगें बलवती होती गई। ऐसी मांगों के बलवती होने के साथ इनमें निहित स्वार्थी तत्व और अराजक तत्वों के साथ अवसरवादियों का प्रवेश निसंदेह होता है। लेकिन सिर्फ इस कारण से आजादी के बाद से, विकासवादी नारों के दम पर…..याद रखिये केवल नारों के दम पर भुखमरी, बेरोजगारी, पलायन और पिछड़ेपन की मार झेल रहे लोगों की आवाज को कमजोर किसी भी सत्ता-व्यवस्था को नहीं आंकना चाहिए।
छोटे राज्यों की मांगें नितांत प्रासंगिक है और इनका विरोध केवल भरे-पुरे पेट और ऐशो-आराम में जी रहे ऐसे लोग ही करते है जिनकी ढर्रे पर चल रही व्यवस्थाओं को खतरा उत्पन्न हो रहा हो। ऐसा ही आज देश की संसद में हुआ और तेलंगाना बनाने के पीछे राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा में हुई हड़बड़ियां आज कॉंग्रेस ही नहीं देश की संसद का सर शर्म से झुकाने का कारण नहीं बनता। आखिर कॉंग्रेस ने 2004 में टीआरएस से गठबंधन करते वक़्त वादा किया था। तब से अब तक तेलंगाना का गठन, कभी का, बिना किसी दुश्वारियों के हो चुका होता।
जय बुंदेलखंड!
लेखक हरिमोहन विश्वकर्मा से [email protected] के जरिए सम्पर्क किया जा सकता है।