Dilnawaz Pasha : आप समझते हैं कि चैनल आपके लिए पत्रकारिता कर रहे हैं. पत्रकारिता में balance यानि संतुलन का भी एक सिंद्धांत होता है. जब तक संतुलन न हो तब तक रिपोर्टिंग हमेशा अधूरी रहती है. भारतीय चैनलों को देखकर तो यही लग रहा है कि ज़्यादातर संतुलन के सिद्धांत को भूल गए हैं. सिर्फ़ नरेंद्र मोदी की ही रैली का प्रसारण किया जा रहा है जबकि दिल्ली में राहुल गाँधी की भी एक रैली थी. होना तो यह चाहिए था कि दोनों को बराबर का वक़्त दिया जाता और जनता दोनों के विचारों पर अपनी राय क़ायम कर पाती.
सिर्फ़ इकतरफ़ा ख़बरें दिखाना न सिर्फ़ दर्शकों के प्रति लापरवाही है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी नुकसानदेह है. informed Citizen (जागरूक नागरिक) लोकतंत्र को मजबूत करते हैं, लेकिन जब नागरिकों तक सिर्फ़ एक ही पक्ष पहुँचाया जाए तब लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा होता है. इसी गाँधी मैदान में, कुछ ही दिन पहले, इतनी ही भीड़ जुटी थी. मंच से कुछ नेता भी बोले थे. क्या किसी ने भी उनके भाषणों को टीवी पर सुना था. पत्रकारों को खुद से पूछना चाहिए कि क्या वो अपनी रिपोर्टिंग में संतुलन बनाए रख पा रहे हैं? TRP और Media Management (मीडिया प्रबंधन) से आगे भी कुछ होता है, जिसे नागरिकों के प्रति ज़िम्मेदारी कहते हैं. लेकिन हम यहाँ किससे बात कर रहे हैं?
बीबीसी में कार्यरत में पत्रकार दिलनवाज पाशा के फेसबुक वॉल से.