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टीवी24 न्यूज चैनल में रिपोर्टर बनना है तो पचास हजार रुपये जमा करें

यशवंत जी नमस्कार, भड़ास पर मैंन ये खबर पढ़ी कि ''इंदौर में टीवी24 न्यूज चैनल के ब्यूरो का शुभारंभ मध्य प्रदेश शासन के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और रूचि ग्रुप के मनीष शाहरा के आतिथ्य में 11 मार्च को हुआ. इस अवसर पर शहर के वरिष्ठ पदाधिकारी तथा मीडियाकर्मी मौजूद थे. टीवी24 न्यूज चैनल के इंदौर ब्यूरो चीफ राजेंद्र पांडेय ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि टीवी24 न्यूज चैनल इंदौर के जनजन की आवाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए दृढ़ संकल्पित है. इस मौके पर टीवी24 की टीम ने सबका आभार प्रकट किया.''

यशवंत जी नमस्कार, भड़ास पर मैंन ये खबर पढ़ी कि ''इंदौर में टीवी24 न्यूज चैनल के ब्यूरो का शुभारंभ मध्य प्रदेश शासन के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और रूचि ग्रुप के मनीष शाहरा के आतिथ्य में 11 मार्च को हुआ. इस अवसर पर शहर के वरिष्ठ पदाधिकारी तथा मीडियाकर्मी मौजूद थे. टीवी24 न्यूज चैनल के इंदौर ब्यूरो चीफ राजेंद्र पांडेय ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि टीवी24 न्यूज चैनल इंदौर के जनजन की आवाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए दृढ़ संकल्पित है. इस मौके पर टीवी24 की टीम ने सबका आभार प्रकट किया.''

खबर में न्यूज चैनल के ब्यूरो चीफ ने जनजन की आवाज का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया है. मैं यहां पर एक बात कहना चाहता हूं कि आज के इस दौर में पत्रकारिता दलाली और व्यापार से ज्यादा कुछ भी नहीं रह गई है. प्रतिभाशाली लोगों के लिए आज की मीडिया लाइन में कोई जगह नहीं है. मैं खुद भी इनका इस्तेहार पढ़कर रिपोर्टर बनने के लिए गया था. वहां जाने के बाद पता चला कि इस लाइन में मेरा अनुभव और मेरा काम बाद में देखा जाएगा, पहले मुझे 50 हजार रुपये जमा करवाने होंगे. साथ ही पूछा गया कि जो एरिया मिलेगा काम करने के लिए वहां के मार्केट कितना उठा सकते हो. इसमें गलती इन जनाब की भी नहीं अगर इन्हें इंदौर ब्यूरो मिला है तो काबिलियत के बल नहीं बल्कि मोटी रकम के दम पर मिला होगा और अब ये महाशय अपनी जमा की हुई रकम आने वाले रिपोर्टर से वसूलने की तैयारी कर रहे हैं.

मेरे पास इतना पैसा नहीं था सो मैने ना कर दिया. लेकिन एक बात यहां मैं उठाना चाहूंगा कि अगर रिपोर्टर की नियुक्ति इस तरह से पैसा वसूली करके की जाएगी तो फिर भला जनजन की आवाज कैसे उठाई जाएगी. ये रिपोर्टर से वसूलेंगे. रिपोर्टर अपना कोटा पूरा करने के लिए अधिकारियों को ब्लैकमेल करेगा या फिर नेताओं की दलाली करेगा और पत्रकारिता इसी तरह मरती जाएगी. क्या इन सबके लिए कोई गाइडलाइन, कोई नीति नहीं होनी चाहिए. आज कितने ऐसे रिपोर्टर हैं जो कंटेंट और नॉलेज के बलबूते फील्ड में काम कर रहे हैं. अगर इंदौर की बात करें तो एक दो नाम भी दिमाग पर जोर डालने से नहीं आ पाते. मीडिया में जब तक दलाली और पैसा वसूलने का ये काम बंद नहीं हो जाता तब तक जनजन की आवाज कैसे उठाई जाएगी ये समझ पाना थोड़ा मुश्किल लगता है.

वीरेंद्र सिंह राठौर

[email protected]

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