यूपी के एक मंत्री हैं राजेंद्र चौधरी। वे इस समय राज्य के कारागार मंत्री भी हैं और साथ ही प्रदेश समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता भी हैं, जनाब बिना नागा प्रेस विज्ञप्ति भेजते रहते हैं, इन विज्ञप्तियों में राज्य से लेकर दुनिया भर के मुद्दों पर उनकी राय होती है| चौधरी जी को जेल मंत्री बने एक अरसा हो चुका है| जिस दिन पद संभाला उस दिन तो जेल के वातावरण को सही करने का दावा किया लेकिन अभी तक मंत्री जी की ओर से कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया| इस समय आलम ये है कि आये दिन कैदियों कि मारपीट, पेशी के समय हत्या जानलेवा हमले की घटनाएं आम बात हो चुकी हैं। आइये नजर डालते हैं राजेंद्र चौधरी के वादों और जमीनी हकीकत पर।
हाल में ही जब राजेंद्र चौधरी से पूछा गया कि ''जेल मंत्री के रूप में विभाग में आपके द्वारा क्या सुधार किया जा रहा है?'' तो इसके जवाब में उन्होंने कहा अधिकारियों की बैठकें ली गयी है जिसमें जेलर व सुपरिटेन्डेन्ट शामिल रहे। मेरा साफ कहना है कि जेल यातना गृह नहीं है, यहां सुधार होना चाहिए और बंदियों में सुधार कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए तैयार किया जायेगा। सरकार की अपराध व भ्रष्टाचार से दूरी रहेगी। जेलों में जगह की कमी है। हमारे पास 48 हजार बंदियों को रखने की क्षमता है लेकिन 84 हजार बंदियों को रखा गया है। इसलिए हम 10-12 नई जेले बना रहे है। साथ ही साथ वीडियो कान्फेसिंग की व्यवस्था सीसी टीवी कैमरा लगाया जाना एवं आधुनिक व्यवस्थाऐं दिया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। नोएडा व कौशाम्बी में नई जेले तैयार की जायेगी। उन्होंने कहा धांधली को रोका जायेगा तथा आधुनिकीकरण किया जायेगा। घटिया सामग्रियों की जांच करायी जा रही है उस पर कार्यवाही की जायेगी। बंदी रक्षकों की भी कमी है 2500 की संख्या में भर्ती जल्दी ही करेंगे। उन्होनें बताया कि वे खुद कई बार जेल जा चुके हैं। सबसे पहले 45 वर्ष पूर्व और फिर कई राजनैतिक आन्दोलनों में इमरजेंसी में 6 माह मेरठ जेल में रहा।
अब हम आपको बताते हैं आखिर प्रदेश में इस समय क्या चल रहा है| पिछले कुछ दिनों पर नज़र डालें तो साफ़ नज़र आता है कि राज्य में जो भी बड़ी घटनाएँ हुई उनकी जाँच के बाद यूपी एसटीएफ को पता चला कि जेलों से माफियाओं द्वारा गैंग चलाया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक अधिकतर बड़े माफिया जेल को अपना सुरक्षित ठिकाना बना चुके हैं यहाँ उनको सभी सुविधा मिलती हैं और दुश्मनों का खतरा भी नहीं होता| आलम ये हैं कि बड़े माफिया सरगना जैसे मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, बबलू श्रीवास्तव और मुन्ना बजरंगी जेल के अन्दर तो हैं लेकिन उनके कोई भी काम रुक नहीं रहे हैं| पुलिस दावे तो कर रही है लेकिन जेलों पर कड़ी निगाहें रखने के लिए उनके पास न तो साजो सामना हैं और न हीं इक्छा शक्ति। ऐसे में स्थिति बदतर होती जा रही है।
यूपी की जेलों से चल रहे माफियाओं के गैंग
राजधानी लखनऊ का माज हत्याकांड तो याद ही होगा आपको जिसमें इंस्पेक्टर संजय राय का नाम आया था। जाँच में सामने आया कि संजय राय ने आजमगढ़ जिला जेल में बंद अपराधी संदीप से मदद मांगी थी और संदीप ने ही हत्या के लिए शूटर मोहैया कराए। नोएडा के बिल्डर को जेल में बंद माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी से फोन पर धमकी दी। यहाँ भी जाँच में सामने आया कि 6 मई को नोएडा के एक बिल्डर को मुन्ना बजरंगी ने फोन कर एक विवादित जमीन को छोड़ देने की धमकी दी और कहा कि उससे सुलतानपुर जेल में आकर मिले। इसी तरह गोरखपुर जेल में बंद श्याम बाबू ने जहानागंज के अजय सिंह से 25 लाख रुपए की रंगदारी मांगी थी। आजमगढ़ के पूर्व बसपा एमएलए सर्वेश कुमार सिंह सीपू की हत्या मामले में खुलासा हुआ है कि जेल में बंद कुंटू सिंह ने ही जेल के अन्दर हत्या कि साजिश रची। कहा जाता है कि माफिया ब्रजेश सिंह के भाई सतीश सिंह की हत्या के पीछे जेल में बंद मुख्तार अंसारी का हाथ था। सूत्रों के मुताबिक ये वो मामले हैं जिनका खुलासा हो गया है जबकि जेल में रसूख वाले कैदियों को सभी प्रकार की सुविधा मिलती है| फिर चाहे वो मोबाईल फ़ोन हो या बाकी के ऐशो आराम|
जेलों में कैदियों की सत्ता
उत्तर प्रदेश की जेलों में जहां संख्या से लगभग दोगुना कैदी बंद हैं, वहीं इन जेलों को संभालने के लिए जेलरों की संख्या उतनी भी नहीं है जितनी होनी चाहिए। लोग तो यह भी कहते हैं कि जेलों में 'कैदियों की सत्ता' है। कर्मचारियों की कमी ने प्रदेश की जेलों में कैदियों व जेल के कर्मचारियों की संख्या के अनुपात को बिगाड़ दिया है, जिसके चलते अब जेलों में अब कैदी ज्यादा और उन पर नजर रखने वाले कम हो गए हैं। सूत्रों का कहना है कि कैदी इसका बड़ा फायदा उठा रहे हैं। जेलों में कैदियों की संख्या निर्धारित संख्या से दोगुना है। यही वजह है कि जेलों में अब अराजकता और निरंकुशता बढ़ गई है। दबी जबान पर लोग यह कहने से गुरेज नहीं कर रहे कि जेल में 'कैदियों की सत्ता' है।
बताया जाता है कि प्रदेश में केवल उन्हीं जेलों में कर्मचारियों की कमी नहीं है जिनकी गिनती खास जेलों में की जाती है। वैसे तो प्रदेश में 65 जेल हैं जिनमें जेलरों के 87 पद हैं। लेकिन इनमें से 30 पद आजकल खाली पड़े हैं। यही कारण है कि ऐटा उरई, हरदोई, प्रतापगढ़, मिजार्पुर फतेहपुर और गाजीपुर जैसी जेलों में जेलर नहीं हैं। जहां जेलों में जेलरों की कमी है वहीं इन जेलों में कैदी ठूंस-ठूंस कर भरे हुए हैं। यही नहीं, जेलरों की कमी से जूझ रहे विभाग के दो जेलरों आलोक सिंह और शशिकांत को प्रदेश के कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी और राज्य मंत्री अभिषेक मिश्र के घर तैनात किया गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए हालांकि, काफी समय से 3000 लोगों की भर्ती की बात कही जा रही है। अगर देखा जाए तो पुलिस विभाग ऊपर से लेकर नीचे तक अपने बड़े अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है।
प्रदेश में एडीजी का एक पद रिक्त पड़ा है। वहीं डीआईजी के चार पदों पर किसी अधिकारी को नहीं बैठाया गया है। इसी तरह जेल अधीक्षक के 64 पदों में से 28 पद रिक्त चल रहे हैं और एक निलंबित है। डिप्टी जेलरों के वैसे तो 448 पद हैं, लेकिन लगभग आधे 268 पद खाली हैं और सात निलंबित हैं। बंदी रक्षक व प्रधान बंदी रक्षकों के 2029 पद रिक्त है। कैदियों की सेहत की बात की जाए तो जेलों में चिकित्सकों के वैसे तो 134 पद हैं जिनमें से 46 पद खाली हैं। इसी प्रकार 134 फार्मेसिस्ट पदों में से 52 रिक्त हैं।
कारागार मंत्री राजेंद्र चौधरी भी मानते हैं कि प्रदेश की जेलों में बंदी रक्षकों और डिप्टी जेलरों की कमी है। उन्होंने बताया कि जेलों में बंदी रक्षकों व डिप्टी जेलरों की कमी है। इस कमी को पूरा करने व नई भर्ती के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जेलों में 48 हजार कैदियों के लिए स्थान है, जहां लगभग 84,000 कैदी बंद हैं। जेलों में कैदियों की निर्धारित संख्या से दोगुना कैदियों के होने की समस्या नए जिले बनने के कारण खड़ी हुई है, जिसे दूर करने के लिए सरकार एक दर्जन नई जेले बनवा रही है। उन्होंने कहा कि 2014 तक जेलों से जुड़ी हर समस्या हल कर ली जाएगी।
यूपी की जेल, जेल नहीं यातना शिविर हैं
वैसे तो आम धारणा है कि जेल जाने के बाद अपराधी सुधर जाते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश कि किसी भी जेल में ऐसा नहीं होता| क्योंकि यहाँ की जेल, जेल नहीं यातना शिविर हैं| यूपी में जेल जाने के बाद अपराधी सुधरते नहीं बल्कि वहां की अमानवी यंत्रणा झेल कर जब बाहर है, तब बन जाते हैं खूंखार अपराधी| प्रदेश की सभी जेलों को मिलकर 48 हजार कैदियों को रखने का स्थान है लेकिन इनमें लगभग 84 हजार कैदी बंद हैं। आपको जानकार हैरत होगी कि 51379 कैदी ऐसे हैं जिनका अभी अंडरट्रायल चल रहा है।
देश भर में हर वर्ष ऐसे कैदी निकलने हैं जिन्होंने किसी न किसी पेशे को कैद के दौरान दिल लगा कर सिखा है। वहीँ उत्तर प्रदेश के जेल से निकले किसी भी कैदी को यदि जीवन यापन के लिए कहा जाये तो वो कुछ भी नहीं कर सकता| यहाँ के अधिकतर कैदी अपनी सजा समाप्त करने के बाद जल्द ही वापस जेल आते हैं किसी और गुनाह की सजा काटने| ऐसा क्यों होता है वो हम आपको बताते हैं, उत्तर प्रदेश की जेलों में चल रही है जेलरों और उसके प्यादों की सल्तनत| आज आप को पता चलेगा कि इन में एक बार गया एक छोटा अपराधी कैसे जल्द ही अपराध की दुनिया का बड़ा नाम बन जाता है |यही नहीं कैसे इन ऊँची दीवारों के पीछे डॉ. सचान जैसे राह के काँटों को बड़ी सफाई से निकाल फेंका जाता है|
सूबे की कोई भी जेल हो जब वहां अपने गुनाह में सजा पाए अपराधी प्रवेश करते हैं उस समय सभी को पहले एक बड़े कमरे में रखा जाता है| इस कमरे में खूंखार, शातिर अपराध के दोषियों के साथ छोटे मोटे अपराधी भी रखे जाते हैं| यहाँ सबसे पहले इनका सामना होता है पट्टेदार से, इसी पट्टेदार से उसे सोने की जगह मिलती है, और यहीं से आरंभ होता है पैसे का न खत्म होने वाला खेल, ये पट्टेदार उसे सोने की 5 फुट जमीन के लिए पैसे वसूलता है| सोने की जगह का रेट अलग अलग होता है जो जगह की और कैदी की हैसियत देख कर कम ज्यादा होता है|
इस प्रक्रिया को पट्टे लेना कहा जाता है| इन कैदियों से इनकी माली हैसियत देख कर जेल के अन्दर सुविधाओ का मोलभाव होता है| मसलन बीडी, सिगरेट, चाय, दारू. मोबाईल और खाना सब कुछ यहाँ मनमाफिक मिलता है। इनके रेट तय है उनका भुगतान करने के बाद कैदी होता तो जेल में लेकिन मजे सारे उठाता है| पीली वर्दी वाले लम्बरदार तो पैसे मिलने पर जेल के बाहर से भी कुछ भी लाकर दे सकते हैं| यदि लम्बरदार को जेल के हर ताले की चाभी कहा जाये तो ज्यादा सही होगा|
ये तो हुई रेट की बात अब बताते हैं कि वसूली कैसे होती है| जिन अपराधियों का यहाँ अक्सर आना जाना होता है वो अपनी ज़रूरत के हिसाब से पैसे देकर पहले से ही बता देते हैं कि उनको क्या और कब चाहिए| वही दूसरी और जो छोटे मोटे अपराध में इन जेलों में आते हैं उनको पट्टेदार और लम्बरदार मिल कर बता देते हैं कि उनको कितने पैसे कब-कब और कहाँ पर देने है| जेलों में बंद कैदियों को इनके साथ दबंग अपराधियों को भी पैसे देने होते हैं|
नए और छोटे अपराध में जेल आये कैदियों से उनके कामकाज के बारे में जानकारी ली जाती है| इसके बाद उनपर पैसे देने का दबाव डाला जाता है जो घर से माँगा कर पैसे दे देते है उनसे अच्छे से पेश आया जाता है वहीँ जो पैसे नहीं दे पाते उनको दूसरों के कच्छे बनियान और जेल के शौचालय धोने को मजबूर होना पड़ता है कोई प्रतिकार करता है तब उसकी पिटाई कर दिमाग सही किया जाता है| वसूली का सारा पैसा पट्टेदार से होते हुए जेलर तक जाते हैं| जेलर ही जेल कि सल्तनत का सुल्तान होता है उसके सामने ही ये सब होता है और वो देख कर भी कुछ नहीं देखता|
वहीँ जब कोई सफेदपोश दबंग, बाहुबली या प्रभावशाली अपराधी जेल में आता है तब पूरा जेल प्रशासन उसके पीछे कुत्ते की तरह दम हिलाता नज़र आता है| यही जेलकर्मी इनको ये बताते हैं कि कैसे वो कानून का सहारा ले कर फ्रिज कूलर का मजा ले सकता है। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे रोचक बात ये है कि इस काम में जेलर से लेकर जेल डॉक्टर तक मददगार होते हैं| ऐसा नहीं कि शासन-प्रशासन में ऊचे पदों पर बैठे अधिकारीयों को ये सब पता नहीं सभी को पता है लेकिन कोई कुछ करता नहीं सभी चुप्पी मारे बैठे हैं| समझ में नहीं आता की आखिर क्यों इनके मुंह सिले हुए हैं|
अब हम आप को जो बताने जा रहे हैं वो उत्तर प्रदेश की जेलों का सबसे काला पहलू है। यहाँ किसी भी जेल में डॉ. सचान जैसा कांड करवाना सबसे आसान काम है। चंद चाँदी के सिक्को की खनखनाहट में पूरा का पूरा स्टाफ बिक जाता है। फिर वो सफाई से अपना काम अंजाम देता है, सबूत मिटाता है और बाहर बैठे अपने आका को सफलता का सन्देश देता है| इसके बाद सीबीआई जाँच करे या फिर जेम्स बांड कोई कुछ नहीं कर सकता|
तो आप ने देखा यहाँ वो सब कुछ होता है जो नहीं होना चाहिए लेकिन कैदियों को प्रेरित करने के लिए कुछ भी नहीं होता| किसी कैदी को कभी रोजगार से जुड़ा प्रशिक्षण नहीं दिया जाता| वर्तमान सपा सरकार के गठन के बाद निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह ''राजा भैया'' जब कारागार मंत्री बने तो उन्होंने कैदियों से जुड़े कई वादे तो किये लेकिन उनको रोजगार आरंभ करने का कोई प्रशिक्षण मिलेगा या मिलता है इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा| फिलहाल हम यही कहेंगे की प्रदेश में पहले कुछ नयी जेलों का निर्माण हो और यहाँ सजा काट रहे कैदियों को ऐसा प्रशिक्षण दिया जाये की वो जब सजा काट कर बाहर निकलें तो सम्मान से दो वक्त की रोटी जुटा सकें|
लेखक ऋषि शर्मा से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।