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यूपी पुलिस की भर्ती में मुस्लिमों को 18 फीसदी आरक्षण देकर सपा सरकार ने महान काम किया है

: राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना मुसलमानों की तरक्की नहीं होगी : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सरकार ने वायदा किया था कि वह रंगनाथ कमीशन और सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करेगी. चुनाव में मुसलमानों ने अखिलेश यादव को इतना समर्थन दिया कि उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन गयी. हालांकि 3 महीने किसी भी सरकार के काम का आकलन करने के लिए बहुत कम हैं लेकिन संतोष की बात यह है कि सरकार ने उस दिशा में क़दम उठाना शुरू कर दिया है.

: राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना मुसलमानों की तरक्की नहीं होगी : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सरकार ने वायदा किया था कि वह रंगनाथ कमीशन और सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करेगी. चुनाव में मुसलमानों ने अखिलेश यादव को इतना समर्थन दिया कि उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन गयी. हालांकि 3 महीने किसी भी सरकार के काम का आकलन करने के लिए बहुत कम हैं लेकिन संतोष की बात यह है कि सरकार ने उस दिशा में क़दम उठाना शुरू कर दिया है.

अब खबर आई है कि उत्तर प्रदेश पुलिस में थानेदारों की जो भर्ती होने वाली है उसमें 18 प्रतिशत रिज़र्वेशन दे दिया गया है. यह बड़ा क़दम है. अगर उत्तर प्रदेश पुलिस में एक आदरणीय संख्या में पुलिस वाले भर्ती हो गए तो राज्य में दंगों की संभावना अपने आप कम हो जायेगी. राज्य के कई जिलों में बहुत बड़ी संख्या में रहने वाले मुसलमानों को भी भरोसा हो जाएगा कि एक ऐसी सरकार आ गयी है जो उनकी भलाई के लिए भी सोचती है. मुसलमानों को न्याय देने के लिए सकारात्मक पहल की दिशा में यह एक अहम क़दम है. इसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इस फैसले में हुकूमत की ईमानदारी की झलक दिखती है.

इसके पहले कांग्रेस ने मुसलमानों को बेवकूफ बनाकर विधानसभा चुनाव में वोट झटक लेने के लिए सरकारी नौकरियों में ओबीसी कोटे से काटकर साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण की बात की थी. कांग्रेस ने इसका खूब प्रचार प्रसार भी किया और इस साढ़े चार प्रतिशत को मुसलमान का आरक्षण बताने की राजनीतिक मुहिम चलाई.  लेकिन समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने मुसलमानों को सरकारी नौकरियों से बिलकुल बेदखल कर दिया. कहते हैं कि १९४७ में सरकारी नौकरियों में राज्य में ३५ प्रतिशत मुसलमान थे जबकि कांग्रेस के राज में वह घट कर २ प्रतिशत रह गया.

समाजवादी पार्टी के सांसद और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के भाई धर्मेन्द्र यादव ने विधान सभा चुनाव के पहले इस लेखक को बहुत जोर देकर बताया था कि उनकी पार्टी को मुसलमानों से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है. राज्य का मुसलमान जानता है कि अगर उनकी पार्टी सरकार में आई तो वे मुसलमानों के हित में ठोस क़दम उठायेंगे. उर्दू को तरक्की देंगे और सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को महत्व दिया जाएगा. पुलिस में थानेदारों की भर्ती में १८ प्रतिशत आरक्षण उसी सोच का नतीजा है. आबादी के हिसाब से करीब १९ जिले ऐसे हैं जहां मुसलमानों की आबादी बहुत घनी है. रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर, बरेली, बलरामपुर, अमरोहा, मेरठ, बहराइच और श्रावस्ती में मुसलमान तीस प्रतिशत से ज्यादा हैं. गाज़ियाबाद, लखनऊ, बदायूं, बुलंदशहर, खलीलाबाद, पीलीभीत आदि कुछ ऐसे जिले जहां कुल वोटरों का एक चौथाई संख्या मुसलमानों की है. ज़ाहिर है कि पुलिस में सरकार की तरफ से आरक्षण की घोषणा का बहुत महत्व है.

उधर ओबीसी कोटे से काटकर साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण की बात करके केन्द्र सरकार ने यह साबित कर दिया कि वह मुसलमानों को बेवकूफ बनाकर ही वोट लेना चाहती है. अल्पसंख्यकों  को आरक्षण देने की केंद्र सरकार की घोषणा में ही खोट थी. अब जब आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने उस सरकारी आदेश को गलत बता दिया है तो यह बात दुनिया की समझ में आ गयी है कि केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं थी. दर असल साढ़े चार प्रतिशत के आरक्षण में मुसलमानों का नंबर ही नहीं आने वाला था क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर स्थिति वाले अल्पसंख्यक, सिख, ईसाई और जैन बड़ा हिस्सा ले जाते और मुसलमान पहले से भी ज्यादा पिछड़ जाता. केंद्र सरकार की नीयत और मामले में भी नहीं साफ़ है. वह मुसलमानों के आरक्षण के लिए बड़ी बातें तो करती है लेकिन उनके लिए जो सरकारी फैसले हुए हैं उनको भी ठीक से लागू नहीं करती. इस तरह की बातें संसद की कई रिपोर्टों में उजागर हो चुकी है .

ऐसी ही एक रिपोर्ट अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के काम काज के बारे में संसद में पेश की गयी है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से सम्बंधित कमेटी ने अल्पसंख्यकों के लिए किये जा रहे काम में सम्बंधित मंत्रालय को गाफिल पाया है. इस समिति की बीसवीं रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार ने  मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए बजट में मिली हुई रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया और पैसे वापस भी करने पड़े.  कमेटी की रिपोर्ट में लिखा गया है कि कमेटी इस बात से बहुत नाराज़ है कि २०१०-११ के साल में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ५८७ करोड़ सत्तर लाख की वह रक़म लौटा दी जो घनी अल्पसंख्यक आबादी के विकास के लिए मिले थे. हद तो तब हो गयी जब मुस्लिम बच्चों के वजीफे के लिए मिली हुई रक़म वापस कर दी गयी.

यह रक़म संसद ने दी थी और सरकार ने इसे इसलिए वापस कर दिया कि वह इन स्कीमों में ज़रूरी काम नहीं तलाश पायी. यह सरकारी बाबूतंत्र के नाकारापन का नतीजा है. प्री मैट्रिक वजीफों के मद  में  मिले हुए धन में से ३३ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए, मेरिट वजीफों के लिए मिली हुई रक़म में से २४ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए और पोस्ट मैट्रिक वजीफों के लिए मिली हुयेर रक़म में से २४ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए. इसका मतलब यह हुआ कि सभी पार्टियों के प्रतिनिधित्व वाली संसद ने तो सरकार को मुसलमानों के विकास के लिए पैसा दिया था लेकिन सरकार ने उसका सही इस्तेमाल नहीं किया. इसके बारे में सरकार का कहना है कि उनके पास अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों से प्रस्ताव नहीं आये इसलिए उन्होंने संसद से मिली रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया. संसद की स्थायी समिति ने इस बात पर सख्त नाराज़गी जताई है और कहा है कि वजीफों वाली गलती बहुत बड़ी है और उसको दुरुस्त करने के लिए सरकार को काम करना चाहिए. बजट में वजीफों की घोषणा हो जाने के बाद सरकार को चाहिए कि उसके लिए ज़रूरी प्रचार प्रसार आदि करे जिससे जनता भी अपने जिले या राज्य के अधिकारियों पर दबाव बना सके और अल्पसंख्यकों के विकास के लिए मिली हुई रक़म सही तरीके से इस्तेमाल हो सके.

कमेटी के सदस्य इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे कि अल्पसंख्यक मंत्रालय में काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. खाली पड़े पदों के बारे में सरकार के जवाब से कमेटी को सख्त नाराज़गी है. जहाँ उर्दू पढ़े लोगों को कहीं नौकरियाँ नहीं मिल रही हैं, वहीं केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कमेटी को बताया है कि सहायक  निदेशक (उर्दू), अनुवादक (उर्दू) और टाइपिस्ट (उर्दू) की खाली जगहें नहीं भरी जा सकीं. सरकार की तरफ से बताया गया कि वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि यह खाली जगह भर दिए जाएँ लेकिन सफल नहीं हो रहे हैं. यह बात कमेटी के सदस्यों के गले नहीं उतरी, सही बात यह है कि सरकार के इस तर्क पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा. कमेटी ने सख्ती से कहा है कि जो पद खाली पड़े हैं उनको मीडिया के ज़रिये प्रचारित किया जाए तो देश में उर्दू जानने वालों की इतनी कमी नहीं है कि लोग केंद्र सरकार में नौकरी के लिए मना कर देंगे. 

कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने का फैसला तो सरकार ने कर लिया है लेकिन उसको लागू करने की दिशा में गंभीरता से काम नहीं हो रहा है. वजीफों के बारे में तो कुछ काम हुआ भी है लेकिन सच्चर कमेटी की बाकी सिफारिशों को टाला जा रहा है. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को अगर सही तरीके से लागू कर दिया जाए तो अल्पसंख्यक समुदाय का बहुत फायदा होगा. कमेटी ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को सख्त हिदायत दी है कि सच्चर कमेटी को गंभीरता से लें और उसको लागू करने के लिए सार्थक प्रयास करें.

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मुसलमानों के कल्याण के लिए प्रधान मंत्री ने १५ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी. इसको लागू करने में भी सरकार का रवैया गैरजिम्मेदार रहा है. १५ सूत्री कार्यक्रम पर नज़र रखने के लिए कुछ कमेटियां बनी है जिनकी बैठक ही समय समय पर नहीं होती. शिकायत मिली है कि जब बैठक होती भी है तो लोकसभा और राज्यसभा के वे सदस्य जो इन कमेटियों के मेंबर हैं, उन्हें इत्तिला ही नहीं की जाती. मंत्रालय के सेक्रेटरी ने अपनी पेशी के दौरान यह बात स्वीकार किया कि उनको इस सम्बन्ध में सदस्यों से मिली शिकायत की जानकारी है. ज़ाहिर है मुसलमानों के लिए बड़ी बड़ी बातें करने और उनके वोट को हासिल करने की राजनीति से कौम का कोई भला नहीं होने वाला है. मुसलमानों की तरकी तभी होगी जब सरकारें ईमानदारी और सही नीयत से काम करेंगी.

लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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