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मौज-मस्ती का दूसरा नाम मुलायम का समाजवाद

उत्तर प्रदेश की आम जनता समाजवादियों की गुंडागर्दी से त्रस्त है। पूरे प्रदेश में चल रही भीषड़ शीत लहर से गरीबों की जिन्दगी मुहाल है। मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ित बच्चे, बूढ़े और महिलाये खुले आसमान के नीचे रातें बितानें को मजबूर हैं। ऐसे में सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह सैफई महोत्सव में बालीबुड की नर्तकियों की थिरकन और तबले की थाप का आनंद ले रहे हैं। ये समाजवाद का नया चेहरा है। इस मौज-मस्ती के समाजवाद की चमचमाती चकाचौंध में कभी-कभी लगता है जैसे असली समाजवाद की मौत हो गयी है, और समाजवाद के ये नकली पहरुए उसका जश्न मना  रहे है। क्या, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह सब जायज है। 

उत्तर प्रदेश की आम जनता समाजवादियों की गुंडागर्दी से त्रस्त है। पूरे प्रदेश में चल रही भीषड़ शीत लहर से गरीबों की जिन्दगी मुहाल है। मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ित बच्चे, बूढ़े और महिलाये खुले आसमान के नीचे रातें बितानें को मजबूर हैं। ऐसे में सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह सैफई महोत्सव में बालीबुड की नर्तकियों की थिरकन और तबले की थाप का आनंद ले रहे हैं। ये समाजवाद का नया चेहरा है। इस मौज-मस्ती के समाजवाद की चमचमाती चकाचौंध में कभी-कभी लगता है जैसे असली समाजवाद की मौत हो गयी है, और समाजवाद के ये नकली पहरुए उसका जश्न मना  रहे है। क्या, भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह सब जायज है। 

समाजवाद का दूसरा चेहरा यूपी सरकार के वो मंत्री हैं जो स्टडी टूर के नाम पर जनता के खून-पसीने की कमाई से विदेशो में मौज मस्ती करने गए हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे नेताओ को अपने आपको समाजवादी कहते हुए। जनता के पैसों पर मौज मस्ती और रंगीनियों का ये कौन सा समाजवाद है। उत्तर प्रदेश के माननीय समाजवादियों के इस चकाचौध भरे समाजवाद में असली समाजवाद तो कही दम तोड़ रहा है । जो पैसा सैफई महोत्सव में सलमान और माधुरी दीक्षित के ठुमको और मंत्रियों के विदेशी शैर सपाटे पर खर्च किया जा रहा है उससे ठण्ड से बेहाल मासूमो और दंगा पीड़तों की मदद में खर्च किया जा सकता था। लगता है समाजवादियो को उस आम आदमी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं है जो अपने वोट की ताकत से उन्हें ख़ास बनाता है। समाजवाद के पैरो तले रौंदी जा रही उत्तर प्रदेश की गरीब, शोषित और पीड़ित जनता आखिर अपना दर्द बताए तो किसको।

लेखक राकेश भदौरिया एटा, उत्तर प्रदेश में रहते हैं. संपर्क: 09456037346

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