वाराणसी। सुना ही नहीं देखा और कर्इ बार झेला भी है कि मंत्री से लेकर वीवीआर्इपीयों के लिए आम रास्ता किस तरह खास हो जाता है कि उस पर से गुजरने की जुर्रत हम मिनटों से लेकर घंटो तक नहीं कर सकते। लेकिन किसी खास सड़क का प्रयोग केवल पत्रकार ही करेंगे और उस पर से कोर्इ गुजरेगा नहीं ऐसा पहली बार सुन रहा हूं। ये सड़क बनारस के शिवपुर में प्रदेश शासन के सहयोग से वीडीए द्वारा विकसित की गयी पत्रकारपुरम कॉलोनी की सड़क है। यहां रहने वाले एक खास किस्म के पत्रकारों के गोल ने इस हवा को बनाने में कोर्इ कसर बाकी नहीं रख छोड़ी हैं। पत्रकारपुरम के बगल में ही रहने वाले लोग इस बात से परेशान है कि अगर ऐसा हुआ तो वो करेंगे क्या?
इनमें से एक ने तो बकायदे सूचना के अधिकार के तहत जिला ग्राम्य विकास अभिकरण से इस बारे में पूछा तो जवाब मिला कि इस तरह का कोर्इ आदेश है ही नहीं, क्यों कि सांसद-विधायक निधि योजनाओं के तहत बनायी गयी सड़क सार्वजिनक प्रयोगार्थ है। तो फिर सवाल ये खड़ा होता है, इस तरह के माहौल बनाये जाने की वजह क्या है? दरअसल पत्रकारपुरम में रह रहे एक खास किस्म के पत्रकारों के गोल की नजर पत्रकारपुरम से सटी करोड़ो की जमीन पर जा टिकी है। उन्हें लगता है कि इस तरह की हवा बनाकर अगर जमीन के मालिक को अरदब में ले लिया जाये तो उनकी तो लाटरी ही लग जाएगी। इसी के तहत उनकी सारी कवायद जारी है।
आरटीआई द्वारा प्राप्त सूचना
उधर पिछले 12 जनवरी को दैनिक आज में विकास प्राधिकरण के एक विज्ञापन ने जिसमें कालोनी के चारो ओर दिवाल उठाये जाने और विभिन्न मार्गों पर लोहे के गेट लगाये जाने के टेण्डर के प्रकान से लोग और परेशान हैं। उन्हें लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो क्या वो आकाश मार्ग से होकर गुजरेंगे? वैसे बताते चले कि पत्रकारों को आवास के लिये जमीन देने के नाम पर पत्रकारपुरम कालोनी की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बात ये थी कि उन पत्रकारों को आवास के लिए जमीन दी जायेगी जिनके पास नगर निगम के परिसिमन के अन्दर कोर्इ अपना घर न हो लेकिन नियम को ठेंगा दिखाकर उन पत्रकारों ने भी यहां जमीन हासिल किया जिनके घर बकायदा शहर में है। मामला सिर्फ यहीं तक नहीं रूका कर्इयों ने अपने चेहतो को इस कालोनी में जमीन दिलवायी। और छानबीन करें तो कर्इ पत्रकारों ने तो पहले सब्सिडी के तहत सस्ते में जमीन हासिल की फिर उसे मनमानी कीमतों पर बेचकर मुनाफा कमाया। इनमें एक चर्चित पत्रकार वो है जिनके सिर पर हमेशा एक गोल टोपी हुआ करती है। ये महोदय सरकारी महकमें में अपनी सेंटिग के लिए जाने जाते है। ऐसे ही अन्य कर्इ महोदयों के किस्से है जिनकी हरकतों से पत्रकारिता शर्मसार होने के अलावा कुछ और नहीं होती।
पत्रकारपुरम कालोनी में जमीन आवंटन से लेकर जमीनों को मनमाने कीमतों में बेचने तक तह दर तह अनेक किस्से चिंगारी की शक्ल में दबे पड़े है जो बताने के लिए काफी हैं कि जनसरोकार से जुड़े इस पेशे को किस तरह चंद दलाल पत्रकार अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर रहे है। फिलहाल पत्रकारपुरम कॉलोनी की ज़मीन से सटी ज़मीन पर रहने वाले परेशान हैं, उनका कहना है कहीं उनके लिए आने जाने का रास्ता न बंद हो जाए, पूछने पर कहते भी है, हम लोग क्या करे वो प्रशासन और पत्रकार चाहे तो कछ भी करवा सकते है।
लेखक भास्कर नियोगी से संपर्क [email protected] पर किया जा सकता है।