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सुख-दुख...

आयोजन की कुछ तस्वीरें व कुछ बातें : वीरेन डंगवाल का 66वां जन्मदिन

वीरेन डंगवाल के 66वें जन्मदिन पर दिल्ली के हिंदी भवन में उनके मित्रों, वरिष्ठों, समकालीनों, प्रशंसकों की जुटान हुई. सैकड़ों की संख्या में लोग दूर-दूर से आए. मंच पर हिंदी के जाने-माने और वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह के अलावा खुद वीरेन डंगवाल, आनंद स्वरूप वर्मा, प्रोफेसर आशुतोष मौजूद थे.

वीरेन डंगवाल के 66वें जन्मदिन पर दिल्ली के हिंदी भवन में उनके मित्रों, वरिष्ठों, समकालीनों, प्रशंसकों की जुटान हुई. सैकड़ों की संख्या में लोग दूर-दूर से आए. मंच पर हिंदी के जाने-माने और वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह के अलावा खुद वीरेन डंगवाल, आनंद स्वरूप वर्मा, प्रोफेसर आशुतोष मौजूद थे.

कार्यक्रम का संचालन किया रवींद्र त्रिपाठी ने. सभी ने वीरेन डंगवाल के जल्द स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दीं और वीरेन डंगवाल के उदात्त, खिलंदड़, जनपक्षधर, पत्रकारीय, कवित्व से ओत-प्रोत व्यक्तित्व की चर्चा की. आउटुलक मैग्जीन में असिस्टेंट एडिटर के रूप में कार्यरत भाषा सिंह ने वीरेन डंगवाल के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनकी महिलाओं से संबंधित कविताओं का जिक्र किया.

भाषा ने बताया कि किस तरह वीरेन डंगवाल की दो कविताएं उन्होंने बचपन में स्कूल में सुनाईं और इन कविताओं व कवि की काफी चर्चा उस समय स्कूल में रही और अब उनकी बेटी ने भी वीरेन जी की दो कविताएं अपने स्कूल में सुनाकर पूरे स्कूल को चमत्कृत किया. तो, इस तरह कोई कवि व कविता कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पाठकों, श्रोताओं के मन-मिजाज में मौजूद रहता है, इसके नायाब व जीवंत उदाहरण वीरेन डंगवाल जी हैं. भाषा ने बताया कि व बचपन से और पारिवारिक तौर से वीरेन चाचा से जुड़ी हैं इसलिए उनके लिए नाम लेकर वीरेन डंगवाल या वीरेन जी कह पाना संभव नहीं है.

भाषा ने वीरेन डंगवाल और मंगलेश डबराल की बातचीत पर आधारित रिपोर्ट के आउटलुक मैग्जीन में प्रकाशन का उल्लेख किया और बताया कि उन्हें इस बातचीत के दौरान बिलकुल नहीं लगा कि वीरेन चाचा में कोई बदलाव आया है. उनकी पूरे कुनबे, समस्त मनुष्य के दुख-सुख को लेकर साथ चलने की प्रकृति-प्रवृत्ति आज भी मौजूद है. आईबीएन7 में कार्यरत पंकज श्रीवास्तव ने वीरेन डंगवाल के वर्षों पुराने रिश्ते का जिक्र किया और वीरेन जी के व्यक्तिव की कई खासियत को उजागर किया. पंकज ने बताया कि वीरेन डंगवाल हम जैसों को जब बहुत चाहते हैं तो चूतिये शब्द से नवाजते हैं और जिन्हें ये नवाजते हैं उनके लिए यह किसी तोहफे से कम नहीं होता.

पंकज ने अमर उजाला, कानपुर के वीरेन डंगवाल के संपादकत्व के दिनों के बारे में बताया कि किस तरह अच्छी पत्रकारिता के जरिए अमर उजाला अखबार को छह सौ कापियों से बढ़ाकर एक लाख प्रसार संख्या तक पहुंचाया गया. पंकज ने वीरेन जी की कई कविताओं का पाठ व जिक्र किया. सभी वक्ताओं ने वीरेन डंगवाल के शीघ्र स्वस्थ होने और इसी तरह मनुष्यता और उपेक्षितों के पक्ष में कविता के जरिए आवाज बुलंद करने की कामना की. वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार मंगलेश डबराल ने वीरेन डंगवाल से अपने करीब चालीस साल पुराने संबंधों का विस्तार से जिक्र किया.

आनंद स्वरूप वर्मा और योगेंद्र आहूजा ने भी वीरेन डंगवाल के अदभुत व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ कहा. कवि केदारनाथ सिंह ने वीरेन को बड़ा कवि बताते हुए वीरेन डंगवाल की एक कविता का पाठ किया. साथ ही यह भी बताया कि किस तरह वीरेन जिस जगह झुमका गिरा था, उस शहर में बने रहे और वहां के जीवन, सड़कों, लोगों को खूब दिल से लगाकर जीते रहे. यही कारण है कि जब मैं एक बार बरेली गया तो देख सका कि वहां वीरेन को जाने कितने चाहने वाले हैं और ये लोग वीरेन से अगाध प्रेम करते हैं.

मार्क्सवादी चिंतक और प्रोफेसर प्रणय कृष्ण ने वीरेन डंगवाल की कविताओं के सुर, लय, ताल, छंद, तेवर का बखूबी विश्लेषण किया और वीरेन डंगवाल की कविताओं के सबसे अलग होने के बारे में बताया. वक्ताओं ने जलेबी, समोसा, पपीता जैसी वीरेन डंगवाल की कई कविताओं का बार-बार जिक्र किया. वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने भी वीरेन जी की कई कविताओं का पाठ किया. वीरेन डंगवाल ने अपनी खुद की तीन कविताओं का पाठ किया और वहां मौजूद श्रोताओं ने जोरदार तालियां बजाकर वीरेन डंगवाल के प्रति अपने प्रेम-प्यार-समर्थन का इजहार किया.

तस्वीरें अपलोड की जा रही हैं, इसलिए सभी तस्वीरों को देखने के लिए इस पेज को रिफ्रेश करते रहें…

बाएं से मुकेश कुमार, आनंद स्वरूप वर्मा और केदारनाथ सिंह : वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के हाल में ही आए कविता संग्रह का अवलोकन करते वरिष्ठ व जाने-माने कवि केदारनाथ सिंह.

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आयोजन से ठीक पहले जलपान और बातचीत में मशगूल लोग.

 

कार्यक्रम का संचालन करते रवींद्र त्रिपाठी.

आनंद स्वरूप वर्मा का संबोधन.

सबसे दाहिने बीबीसी हिंदी के संपादक निधीश त्यागी.

कवि केदारनाथ सिंह का स्वागत करते मुकेश कुमार.

वीरेन डंगवाल को पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करते युवा पत्रका और एक्टिविस्ट मोहम्मद अनस.

आनंद स्वरूप वर्मा का स्वागत करते पंकज श्रीवास्तव.

प्रोफेसर आशुतोष कुमार का स्वागत करते प्रणय कृष्ण.

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प्रोफेसर आशुतोष कुमार का संबोधन.

योगेंद्र आहूजा का संबोधन.

पंकज श्रीवास्तव का संबोधन.

भाषा सिंह का संबोधन.

प्रणय कृष्ण का संबोधन.

मंगलेश डबराल का संबोधन.

वरिष्ठ व चर्चित कवि केदारनाथ सिंह का संबोधन

अपनी तीन कविताएं सुनाने की तैयारी में वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल का कविता पाठ

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वीरेन डंगवाल की कविताओं को गौर से सुनते हुए कवि केदारनाथ सिंह

कार्यक्रम शुरू होने से पहले कुछ होमवर्क करते रवींद्र त्रिपाठी.

रवींद्र त्रिपाठी को सलाह-सुझाव देते मंगलेश डबराल.


अगर वीरेन डंगवाल के जन्मदिन के इस आयोजन में आप भी शामिल रहे हैं और आपने आयोजन के बारे में कुछ सोचा, लिखा है तो कृपया भड़ास तक [email protected] के जरिए पहुंचाएं.



अंत में.. वीरेन डंगवाल ने खुद की जो तीन कविताएं सुनाईं, उसमें से एक कविता यहां पेश है…

इतने भले नहीं बन जाना

-वीरेन डंगवाल-

इतने भले नहीं बन जाना साथी
जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी
गदहा बनने में लगा दी अपनी सारी कुव्वत सारी प्रतिभा
किसी से कुछ लिया नहीं न किसी को कुछ दिया
ऐसा भी जिया जीवन तो क्या जिया?

इतने दुर्गम मत बन जाना
सम्भव ही रह जाय न तुम तक कोई राह बनाना
अपने ऊंचे सन्नाटे में सर धुनते रह गए
लेकिन किंचित भी जीवन का मर्म नहीं जाना

इतने चालू मत हो जाना
सुन-सुन कर हरक़ते तुम्हारी पड़े हमें शरमाना
बग़ल दबी हो बोतल मुँह में जनता का अफसाना
ऐसे घाघ नहीं हो जाना

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ऐसे कठमुल्ले मत बनना
बात नहीं हो मन की तो बस तन जाना
दुनिया देख चुके हो यारो
एक नज़र थोड़ा-सा अपने जीवन पर भी मारो
पोथी-पतरा-ज्ञान-कपट से बहुत बड़ा है मानव
कठमुल्लापन छोड़ो
उस पर भी तो तनिक विचारो

काफ़ी बुरा समय है साथी
गरज रहे हैं घन घमण्ड के नभ की फटती है छाती
अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन
जिस पर बिजली रह-रह अपना चाबुक चमकाती
संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती
इनकी असल समझना साथी
अपनी समझ बदलना साथी

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