Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

दिल्ली

मुजफ्फरनगर दंगा और सेक्युलर मीडिया का मुस्लिम जेहाद

तथाकथित सेक्युलर मीडिया के निशाने पर हिन्दू ही क्यों रहता है। तथाकथित सेक्युलर मीडिया हिन्दुओं और हिन्दू संगठनों को ही झूठ और तथ्य विरोधी आधार पर खलनायक व हिंसक साबित करने पर क्यों आतुर रहता है? मुस्लिम सांप्रदायिकता, मुस्लिम आतंकवाद और मुस्लिम हिंसा पर इनकी चुप्पी क्यों रहती है। ‘मुस्लिम पीड़ित हैं’ पर झूठी और सनसनी वाली रिपोर्टिंग क्यों होती हैं?

तथाकथित सेक्युलर मीडिया के निशाने पर हिन्दू ही क्यों रहता है। तथाकथित सेक्युलर मीडिया हिन्दुओं और हिन्दू संगठनों को ही झूठ और तथ्य विरोधी आधार पर खलनायक व हिंसक साबित करने पर क्यों आतुर रहता है? मुस्लिम सांप्रदायिकता, मुस्लिम आतंकवाद और मुस्लिम हिंसा पर इनकी चुप्पी क्यों रहती है। ‘मुस्लिम पीड़ित हैं’ पर झूठी और सनसनी वाली रिपोर्टिंग क्यों होती हैं?

क्या सेक्यूलर मीडिया को हिन्दू विरोधी रिपोर्टिंग के लिए कोई स्पोंसरशिप होती है? क्या इन्हें कोई वितीय लाभ होता है? मुजफ्फरनगर दंगे में उपरोक्त सभी प्रश्नों के जवाबों की खोज हो रही है। अभी हाल ही में सीरिया के राजदूत ने भारतीय मुस्लिम आतंकवादियों के सीरिया में लड़ने व सक्रिय होने का आरोप लगाया था, क्या तथाकथित सेक्युलर मीडिया ने सीरिया में भारतीय मुस्लिम आतंकवादियों के लड़ने व सक्रिय होने की खबर प्रमुखता और गंभीरता से छापी थी? क्या किसी चैनल ने इस पर न्यूज पैकेज चलाया था? इसका उत्तर नहीं है।….. और कितने प्रमाण चाहिए सक्युलर मीडिया का मुस्लिम जेहाद पर।

मुजफ्फरनगर दंगे में मुस्लिम परस्त रिपोर्टिंग ने एक ओर जहां मीडिया आचरण कोड की धज्जियां उड़ायी हैं वहीं एक बड़े संवैधानिक नियामक की भी जरूरत महसूस हुई है जो दंगों के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग की जांच/समीक्षा करे और तथ्यगत विरोधी व एकतरफा या किसी परस्ती का शिकार होकर रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया समूहों और मीडियाकर्मियों को दंडित कर सके और उन्हें सच का आईना भी दिखा सके। प्रिंट मीडिया ने एक हद तक संतुलित रिपोर्टिंग की है वहीं वेब मीडिया और इलेक्टॉनिक्स मीडिया ने सरासर झूठ और तथ्यारोपित और सनसनी फैलाने वाली कवरेज की है। विदेशी मीडिया बीबीसी से लेकर आईबीएन सेवन, एनडीटीवी और न्यूज 24 जैसे चैनल सिर्फ हिन्दुओं को ही खलनायक के तौर पर दिखाया और ऐसा वातावरण तैयार करने की भरपूर कोशिश भी की है कि दंगे में सर्वाधिक हताहत होने वाला समुदाय मुस्लिम ही है। दंगे की शुरूआत और भड़काउ भाषण देने का आरोपी भी हिन्दुओं को ही ठहराया गया है। लव जेहाद और महिला हिंसा के तथ्यात्मक घटनाओं को सिरे से गायब कर दिया गया। दंगे की बुनियाद लव जेहाद और महिला हिंसा थी। अगर इस तह को मीडिया खोलती तो निश्चिततौर मुस्लिम समुदाय और उनके नेताओं की करतूत सामने आती और यह भी आम लोगों को मालूम होता कि न सिर्फ मुजफ्फरनगर में बल्कि सहारनपुर, शामली, अलीगढ़, आगरा जैसे दर्जनों जिलों में हिन्दू किस तरह अपनी बहू-बेटियों की रक्षा करने के लिए चिंतित और प्रताड़ित हैं। क्या यह सही नहीं है कि महिला हिंसा के आरोपी शाहनवाज के पक्ष में मुसलमानों ने दंगे की शुरूआत की थी? क्या यह सही नहीं है कि महिला हिंसा के दोषी शाहनवाज के पक्ष में हजारों मुसलमानों की भीड़ ने महिला हिंसा की शिकार युवती के भाई गौरव और सचिन की हत्या नहीं की थी? जब मुसलमानों की भीड़ नमाज के बाद बलवा करने के लिए सड़कों पर उतर सकती है और कहीं भी और कभी भी हिंसा कर सकती हैं, प्रशासन और सरकार मूकदर्शक बन देखती रहेगी तब हिन्दुओं को क्या अपनी-बेटियों बहुएं बचाने और आत्मस्वाभिमान से जीने के लिए संगठित होने का अधिकार नहीं है क्या? अगर मीडिया का आचरण और मीडिया का व्यवहार सही में निष्पक्ष होता व मीडिया सही में धर्मनिपेक्ष होता तो यह जरूर दिखाया जाता और प्रसारित किया जाता कि कैसे और किस मस्जिद से निहत्थे हिन्दुओं पर गोलियां चली थीं, किस मस्जिद से चली गोलियां पत्रकार राजेश वर्मा और फोटोग्राफर की जान ली थी, मस्जिद को इबाबत का घर कहा जाता है जहां पर हथियार और हिंसा की अन्य वस्तुएं रखना इस्लाम विरोधी माना जाता है पर मस्जिद में हथियार छुपा कर रखे गये थे, मस्जिद में छिपा कर रखे गये हथियारों से ही निहत्थे हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया हैं। ‘बहू-बेटी बचाओ पंचायत’ में आये निहत्थे हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाली मुस्लिम आबादी क्या सत्य-अहिंसा की पुजारी या फिर इनोसेंट हो सकती है?

तथाकथित सेक्युलर मीडिया की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता की यह कैसी अवधारणा है? तथाकथित सेक्युलर मीडिया की धर्मनिरपेक्षता व सांप्रदायिकता की अवधारणा न तो लोकतांत्रिक मानी जा सकती है और न ही संविधान-कानून की कसौटी पर चाकचौबंद मानी जा सकती है। तथाकथित सेक्युलर मीडिया की यह अवधारणा पूरी तरह से ध्वस होनी चाहिए कि मुस्लिम आबादी अगर नमाज के बाद वहशी भीड़ की तरह सड़कों पर दौड़ लगाये, सरेआम हिंसा करे, बहुसंख्यक आबादी को भयभती करे, मुस्लिम नेता सरेआम आपतिजनक भाषण दे, भड़काउ मानसिकता का प्रचार-प्रसार करें और दलीय सीमा लांघ कर एकजुट होकर दंगा-फसाद करें तो भी ये धर्मनिरेपक्ष कहलाये, पर बहुसंख्यक आबादी अपनी बहू-बेटियों को बचाने के लिए और मुस्लिम आबादी की दंगाई मानसिकता, दंगाई भय और लव जेहाद के खिलाफ सभा करें, एकजुट होने के लिए संगठित हों तो तथाकथित सेक्युलर मीडिया हिन्दुओं की इस एकजुटता को सांप्रदायिकता मान बैठती है। मुस्लिम नेता और मुस्लिम मुल्ला-मौलवी जब आतंकवादियों के पक्ष में सरेआम खड़े होते हैं, कसाब और अफजल गुरू जैसे दुर्दांत आतंकवादियों के पक्ष में मुस्लिम नेता-मुस्लिम मुल्ला-मौलवी खड़े होते हैं तो भी इनकी धर्मनिरपेक्षता की पदवि जाती हैं, ये मीडिया के लिए समानीय होते हैं। इसका दुष्परिणाम भयानक होता है, दुष्परिणामों में मुस्लिम कट्टरता, मुस्लिम दंगाई मानसिकता, परसंप्रभुता की पैरवी और परसंप्रभुता के हित साधने जैसे राष्टविरोधी कारनामें शामिल है।

बीबीसी ऐसे तो ब्रिटिश उपनिवेशवाद की उपज है, इसकी पृष्ठभूमि में ब्रिटिश उपनिवेवाद को प्रचारित-स्थापित करने और अप्रत्यक्षतौर ईसाइत संस्कृति की रक्षा करने जैसे एजेंडे थे। यही कारण है कि जब प्रसंग ब्रिटिश साम्राज्यवाद का होता है या फिर ब्रिटिश महराजा-महारानी से जुड़ा हुआ होता है तो बीबीसी की पत्रकारिता की धार स्वतः जमींदोज हो जाती है। अगर-मगर में बीबीसी की पत्रकारिता सिमट जाती है। बीबीसी अपने आपको निष्पक्ष पत्रकारिता का सिरमौर कहता है। भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी खबरों को वह उछालने की किसी भी हद को पार कर सकता है। बीबीसी में कार्यरत मुस्लिम पत्रकारों को हिन्दुओं के खिलाफ कुछ भी लिखने की छूट होती है। मुजफ्फरनगर दंगे में ही बीबीसी की मुस्लिम पत्रकारों की रिपोर्टिंग आप खुद देख लीजिये। बीबीसी का मुस्लिम पत्रकार दिलनवाज पाशा छह सितम्बर को अपनी रिपोर्टिंग ‘आखिर क्यों हैं मुजफ्फरनगर में तनाव’ शीर्षक से खबर झूठी और इस्लामिक जेहाद से प्रेरित है। मुस्लिम पत्रकार दिलनवाज पाशा अपनी रिपोर्टिंग में लिखता है कि दंगे की शुरूआत शाहनवाज और गौरव के बीच रास्ते में किसी बात को लेकर हुई थी। जबकि इसके पीछे महिला से छेड़छाड़ थी। गौरव की बहन से शाहनवाज पिछले एक साल से छेड़खानी कर रहा था, एक बार शाहनवाज गौरव की बहन का अपहरण तक करने का प्रयास किया था। ऐसे में गौरव ने शाहनवाज की हत्या जैसे कदम उठाया। शाहनवाज एक महिला हिंसा का अपराधी था जिसके पक्ष में पूरी मुस्लिम आबादी खड़ी हो गयी और सैकड़ों की भीड़ ने गौरव और उसके ममेरे भाई सचिन की हत्या निर्ममतापूर्वक की थी। अगर बीबीसी का मुस्लिम पत्रकार निष्पक्ष होता और वह इस्लामिक कट्टरता से मुक्त होता तो यह लिखता कि शाहनवाज एक महिला हिंसा का अपराधी था। महिला हिंसा का अपराधी शाहनवाज के पक्ष में मुस्लिम आबादी ने एकजुट होकर दंगे की शुरूआत की थी। इतना ही नहीं बल्कि जाटों के ‘बेटी-बहु बचाओं पंचायत’ पर मुस्लिम पत्रकार दिलनवाज पाशा ने लिखा कि जाटों की पंचायत में भड़काने वाले गैरजिम्मेदाराना भाषण दिये गये थे? पर उसने नहीं लिखा कि किस प्रकार मुस्लिम आबादी ने नमाज अदा करने के बाद अराजक भीड़ एक बार नहीं बल्कि कई बार उतरी और मुस्लिम नेताओं व मौलानाओं ने हिन्दुओं का कत्लेआम करने जैसे भड़काउ भाषण दिये थे? बीबीसी का मुस्लिम पत्रकार दिलनवाज पाशा ने अपने रिपोर्ट मे मुस्लिम नेताओं के भड़काउ और जेहादी भाषणों को छिपा दिया। प्रमाणित तथ्य भी आप यहां देख लीजिये। जाटों के ‘बहू-बेटी बचाओ पंचायत के पूर्व मुस्लिम आबादी ने धारा 144 तोड़कर बडी सभा की थी, सभा मेें मायावती की बहुजन समाज पार्टी के सांसद कादिर राणा, समाजवादी पार्टी के नेता राशिद सिद्धीकी और कांग्रेस के नेता सैयद उज्ममा जैसे मुस्लिम नेताओं ने हिन्दुओं के खिलाफ भड़काउ भाषण दिये थे, इतना ही नहीं बल्कि भारतीय संप्रभुता के खिलाफ भी भाषण दिया गया था, सबसे चिंताजनक बात यह थी कि मुजफफरनगर जिले का डीएम और एसएसपी ने मंच पर जाकर ज्ञापन लिया था। अगर दिलनवाज पाशा ईमानदार होता तो यह जरूर लिखता कि जाटो की पंचायत के पूर्व मुस्लिम नेता कादिर राणा, राशिद सिद्धीकी, सैयद उज्मामा और मुल्ला-मौलवियां ने धारा 144 को तोड़कर सभा की थी और हिन्दुओं के खिलाफ आपत्तिजनक व भडकाउ भाषण दिये थे।सिर्फ मुस्लिम पत्रकार दिलनवाज पाशा की ही बात नहीं है बल्कि बीबीसी में जितने भी मुस्लिम पत्रकार हैं सभी के मुस्लिम प्रेम और मुस्लिम जेहाद हावी रहता है, हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी खबरें देने की इनकी प्राथमिकता होती है। अब यहां यह सवाल उठता है कि क्या बीबीसी सिर्फ हिन्दू विरोधी-भारत विरोधी और मुस्लिम जेहाद की प्राथमिकता से ही मुस्लिम पत्रकारों की नियुक्ति करता है। अगर नहीं तो फिर बीबीसी के मुस्लिम पत्रकारों की रिपोर्टिंग निष्पक्ष और संतुलित क्यों नहीं होती है, मुस्लिम परस्ती इन पर क्यों होवी है? इस पर बीबीसी संज्ञान लेता क्यों नहीं है?

एनडीटीवी की दंगे की रिपोर्टिंग तो और भी खतरनाक और एकतरफा होने के साथ ही साथ पत्रकारिता के मान्यदंडों को तार-तार करने वाला है? एनडीटीवी की अराजक, सनसनी फैलाने वाली, एकतरफा रिपोर्टिंग को बड़े-बड़े मीडियाकर्मी और अपने आप को सेकुलर कहने वाले लोग भी पचा नहीं पाये हैं। बीबीसी हिन्दी सेवा के पूर्व संपादक विजय राणा तक को एनडीटीवी के खिलाफ खड़ा होकर विरोध करना पड़ा है। विजय राणा अपनी बात में कहते हैं कि एनडीटीवी ने मुजफ्फरनगर दंगे की रिपोर्टिंग एकतरफा की थी, मीडिया आचरण कोड की धज्जियां उड़ायी गयी, ऐसी खतरनाक रिपोटिग का मकसद साफ है। दरअसल एनडीटीवी का रिपोर्टर श्रीनिवासन जैन ने जाटों को खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया और यह स्थापित करने की कोशिश की कि सिर्फ और सिर्फ जाट ही दंगे के लिए दोषी हैं और उसने भी सचिन-गौरव की मुस्लिम आबादी की हिंसक भीड़ द्वारा हत्या कर दंगे की शुरूआत करने और महिला हिंसा-छेड़छाड़ को सिरे से गायब कर दिया। मीडिया ने स्वयं एक आचरण कोड बनाया है। मीडिया आचरण कोड के अनुसार दंगे में प्रभावित परिवार की जाति और धर्म से जुड़ी जानकारियां नहीं देनी है पर एनडीटीवी का पत्रकार श्रीनिवासन जैन अपनी लाइव रिपोर्टिंग में दिखाता है कि मुस्लिम इनोसेंट हैं, मुस्लिम डरे हुए हैं, अपने घरों से पलायन कर रहे हैं, जाट मुस्लिम आबादी की हत्या कर रहे हैं? ‘बेटी-बहू बचाओ पंचायत’ से निहत्थे लौट रहे जाटों पर कैसे मुस्लिम आबादी ने गोलियों से भूना, अन्य हथियारों से कत्लेआम किया, दंगे में मारे गये जाट के परिजन और हिन्दुओं के जलाये घर, हिन्दुओं की लूटी गयी संपतियों और किस प्रकार से हिन्दू डरे हुए हैं उसकी न तो निवासन जैन ने खोज-खबर ली व न ही उसकी लाइव वीडियो दिखायी, इतना ही नहीं बल्कि हताहत और प्रताड़ित हिन्दू पजिनों से प्रमुखता व गंभीरता से वाइट भी नहीं ली गई। श्रीनिवासन जैन के संबंध में जो जानकारी मिली है वह यह है कि श्रीनिवासन जैन कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि का है जिसके उपर हिन्दू विरोध और मुस्लिम परस्ती हावी रहती है। सवाल यह उठता है कि क्या पत्रकारिता में भी श्रीनिवासन जैन जैसे कम्युनिस्ट अपनी मुस्लिम परस्ती और कम्युनिस्ट विचारधारा को तुष्ट कर सकते हैं, क्या ऐसा करने का पत्रकारिता का मूल्य इजाजत देता है? श्रीनिवासन और बरखा दत्त जैसे टाटा-राडिया संस्कृति, भ्रष्टाचार और मुस्लिम परस्तों से एनटीटीवी भरा पड़ा है। एनडीटीवी का सरगना प्रणव राय के दूरदर्शन में किये गये मान्य-अमान्य खेल के किस्से अभी मीडिया में तैरते रहते हैं।

चैनल पत्रकार राजेश वर्मा को मुस्लिम दंगाइयों ने मारा डाला। मुस्लिम दंगाइयों ने राजेश वर्मा को इसलिए मार डाला कि वह मुस्लिम दंगाइयों की करतूत और हिंसा के साथ ही साथ निहत्थे हिन्दुओं के कत्लेआम का लाइव वीडियो संकलित करा रहा था। फोटोग्राफर के कैमरे में राजेश वर्मा की हत्या की पूरी कहानी है, किस मस्जिद से गोलियां चल रही थी, गोलिया चलाने वाले मुस्लिम दंगाई कौन थे, इन दंगाइयों को सह देने वाले मुस्लिम नेता कौन-कौन थे, यह सब प्रमाण के तौर पर उपलब्ध है। टीवी चैनलों ने पत्रकार राजेश वर्मा की हत्या की पूरी परते खोली नहीं। सिर्फ राजेश वर्मा की तस्वीर लगा कर एक-दो लाइन का स्टिकर चला दिया गया। आखिर मुस्लिम दंगाइयों का शिकार एक कर्तव्यनिष्ट पत्रकार होता है और राजेश वर्मा को इसलिए शहीद होना पडा कि उसकी रिकार्डिंग और कवरेज मुस्लिम दंगाइयों की करतूत की तह-तह खोलने वाला था। अगर चैनल ईमानदार होते, इनमें कर्तव्यनिष्ठा होती, इन पर निष्पक्षता का भार होता और इन्हें अपनी विश्वसनीयता की चिंता होती तो चैनल जरूर राजेश वर्मा की हत्या पर एक-दो घंटे का न्यूज पैकेज बनाते। एक-दो घंटे का न्यूज पैकेज चलाने की बात तो दूर रही पर चैनलों ने एक-दो मिनट का न्यूज पैकेज नहीं बनाया। शहीद हुए पत्रकार राजेश वर्मा के परिजन किस तरह से बेहाल है, मुस्लिम दंगाइयों के प्रति राजेश वर्मा के परिजनों की सोच क्या है, यह भी दिखाने की जरूरत चैनलों ने नहीं समझी? राजेश वर्मा के परिजनों को सरकारी नौकरी मिले और मुआवजा मिले, इसकी भी बात पूरी गंभीरता से नहीं होती है। विनोद कापडी जैसे पत्रकार जरूर राजेश वर्मा की शहादत पर चितिंत हैं और राजेश वर्मा के परिजनों के मदद के लिए आगे आये हैं। चैनल मठाधीश पूरी तरह से राजेश वर्मा की शहादत पर चुप्पी साधे बैठे हैं।

खासकर जाटों को अन्यायी, शोषक और हिंसक बताने और दिखाने की मीडिया में होत्रड है। जबकि मुस्लिम आबादी को शांत, सत्य व अहिंसा का पुजारी, हिंसा-आतंकवाद से दूर रहने वाला साबित करने की होड़ लगी है। जबकि सच्चाई यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में सिर्फ जाट ही क्यों, बनिया, ठाकुर, ब्राह्मण, दलित-पिछडे सभी मुस्लिम आबादी की हिंसा, मुस्लिम आबादी का लव जेहाद, मुस्लिम आबादी द्वारा हिन्दू महिला हिंसा का शिकार हैं। मुजफ्फरनगर में गौरव की बहन के साथ छेड़छाड़ और उसे मुस्लिम अपराधी शाहनवाज द्वारा अपहरण करने के प्रयास की अकेली घटना भी तो नहीं है। हाल तीन-चार महीनों में एक पर एक कई ऐसी लोमहर्षक और चिंता में डालने वाली हिन्दू लड़कियों के साथ मुस्लिम युवकों ने सामूहिक तौर पर बलात्कार किये हैं। हरिद्वार जाते हुए मुजफ्फरनगर के मुस्लिम राजनीतिज्ञों के युवकों द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं भी कम उल्लेखनीय नहीं है। मुस्लिम आबादी हिन्दुओं की बहू-बेटियों के साथ सरेआम हिंसा करते हैं फिर भी उनका विरोध करना गुनाह है। हिन्दू जब विरोध करता है तब मुस्लिम आबादी एकजुट होकर हिंसा पर उतर आती है। पहले होता यह था कि सिर्फ पीड़ित हिन्दू ही विरोध के लिए आगे आता था और न्याय की मांग करता था, इसलिए उसकी विरोध की आवाज दबा दी जाती थी। चूंकि जाट एक सशक्त जाति है और उसने यह महसूस भी किया कि जब तक वे संगठित नहीं होंगे तब तक उनकी बहू-बेटियों की इज्जत बचने वाली नहीं है। इसीलिए जाटों ने ‘बहू-बेटी पंचायत’ की थी।

मुस्लिम आबादी को डर भी नहीं होता क्योंकि उन्हें मालूम है मुलायम-अखिलेश की सरकार उनकी है और मुलायम-अखिलेश की सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई भी नहीं करेगी? मुलायम-अखिलेश को भी यह मालूम है कि अगर उन्होंने मुस्लिम दंगाइयों, मुस्लिम अपराधियों, मुस्लिम लव जेहादियों के खिलाफ कार्रवाई की तो फिर उन्हें मुस्लिम वोट मिलेगा नहीं? अगर ऐसा नहीं होता तो फिर गौरव-सचिन की निर्ममतापूर्वक हत्या के लिए दोषी सैकड़ों मुस्लिम आबादी की भीड़ पर कार्रवाई जरूर होती। उल्टे अपनी बहन की इज्जत बचाने में शहीद हुए गौरव-सचिन के परिजनों के खिलाफ ही मुलायम-अखिलेश की सरकार, प्रशासन और पुलिस ने मुकदमा ठोक दिया। क्या यह सब मीडिया को मालूम नहीं है फिर भी मीडिया हिन्दुओं को दंगाई साबित करने का जेहादी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारतीय मीडिया पर अरब देशों और पाकिस्तान से करोड़ों-अरबों डॉलर बरस रहे हैं। गुजरात दंगों पर मुस्लिम परस्त रिपोर्टिंग करने के लिए अरब देशों से चैनलों और अंग्रेजी अखबारों को करोड़ों-अरबों रुपये दिये गये थे। पाकिस्तान की आतंकवादी गुप्तचर ऐजेंसी आईएसआई ने अपने समर्थक एक पत्रकार संगठन भी भारत में खड़ा कर रखा है। अप्रत्यक्षतौर पर आईएसआई समर्थक और फंडित वह पत्रकार संगठन दक्षेस की राजनीति करता है। वह पत्रकार संगठन अपने पाकिस्तान प्रेम और मेलजोल के माध्यम से भारत की जनमानस की धारणाएं बदलने और पाकिस्तान परस्ती के लिए अप्रत्यक्षतौर पर सक्रिय होता है। ईरान के पैसे पर भारत में आतंकवाद फैलाने वाले एक मुस्लिम पत्रकार की गिरफतारी भी हो चुकी है। वह मुस्लिम पत्रकार इजरायल दूतावासकर्मी की गाड़ी में स्टिकर बम रखने का सहदोषी है। वह मुस्लिम पत्रकारों को ईरान से करेंसी मिलती थी जिसके बदौलत वह भारत में इजरायल विरोधी आतंकवाद की संरचना और सक्रियता में शामिल था, यह निष्कर्ष कोई मेरा नहीं है बल्कि दिल्ली पुलिस और गुप्तचर एजेंसियों का है। आतंकवादी जेहाद में लगे उस मुस्लिम पत्रकार जमानत पर छूटा और फिर दनादन उसने अपना नया-पुराना अखबार लॉच कर दिया, उसके अखबार के लॉंचिंग में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के साथ ही साथ बड़े-बड़े मुस्लिम नेता थे। जब आतंकवादी जेहाद में आरोपित और पत्रकार का चोंगा पहनने वालों के साथ जब शीला दीक्षित और उनकी दिल्ली की सरकार खड़ी होगी तब आप उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि मुस्लिम आबादी अपनी कट्टरता और आतंकवादी मानसिकता छोड़ देगी।

चैनलों और पत्रकार संगठनों को अगर मुस्लिम देशों और भारत को तोड़ने वाली शक्तियों से पैसे नहीं मिलते तो फिर इनकी मुस्लिम परस्ती क्यों चलती है। बात तो यहां उठी है कि चैनलों ने मुस्लिम परस्ती रिपोर्टिंग के लिए मुलायम-अखिलेश सरकार से भी डील किये हैं। भारत सरकार और भारतीय गुप्तचर एजेंसियों को सबकुछ मालूम है कि चैनलों और अंग्रेजी अखबारों के किस मुस्लिम देश से पैसे मिलते हैं, किस मुस्लिम देश से सभी मान्य-अमान्य सुविधाएं मिलती हैं? लेकिन कांग्रेस की सरकार चैनलों और अंग्रेजी अखबारों पर कार्रवाई ही नहीं करना चाहती है। आखिर क्यों? इसका जवाब यह है कि कांग्रेस खुद मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दुत्व को लांक्षित करने, बदनाम करने और हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने में लगी हुई है। कहने का अर्थ यह है कि कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक जेहाद में मुस्लिम देशों के पैसों पर पलने वाले चैनल और अंग्रेजी अखबार सहभागी-सहयोगी हैं, ऐसे में कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार मुस्लिम देशों के पैसों पर पलने वाले चैनल और अखबारों पर कार्रवाई क्यों करेगी?

खासकर चैनलों को संवैधानिक आचार संहिता में बांधने की बात हमेशा उठती रहती है। पर चैनल संवैधानिक आचार संहिता में बांधने के विरोधी हैं। मुजफ्फरनगर में दंगे के लाइव प्रसारण में जिस तरह से एक तरफा और मुस्लिम परस्त रिपोर्टिंग हुई है और मीडिया आचरण कोड की धज्जियां उड़ायी गयी उसके खिलाफ संज्ञान कौन लेगा? प्रेस परिषद को चैनलों पर कार्रवाई करने का अधिकार ही नहीं है। प्रेस परिषद एक संवैधानिक संस्था है, संवैधानिक संस्था होने के कारण प्रेस परिषद इलेक्टॉनिक्स मीडिया को आचार संहिता में बांधने की मुहिम चला सकती है। पर प्रेस परिषद के अध्यक्ष काटजू पर भी मुस्लिम और कांग्रेस परस्ती हावी रहती है। इसलिए काटजू से भी यह उम्मीद नहीं हो सकती है कि वह मुजफ्फरनगर दंगे में बीबीसी रिपोर्टरों की करतूत, एनडीटीवी के रिपोर्टर श्रीनिवासन जैने की मुस्लिम परस्ती पर मुंह खोल सकें। यह सही है कि अभी तो कोई संवैधानिक नियामक नहीं होने के कारण चैनल मालिक और चैनल पत्रकार अराजक हैं। हमारे देश में कई संवैधानिक संस्थाएं हैं जैसे सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार आयोग। सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग जैसे संवैधानिक संस्थाएं स्वयं संज्ञान लेकर बीबीसी, एनडीटीवी और अन्य भारतीय चैनलों को मीडिया आचरण कोड का पाठ पढा सकते हैं। पर उम्मीद भी नाउम्मीदी में तब्दील होती है। निष्कर्ष यह है कि तथाकथित सेक्युलर मीडिया का मुस्लिम जेहाद न केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था को खिल्ली उड़ाता है बल्कि संविधान-कानून की व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

लेखक विष्णु गुप्त से संपर्क 09968997060 के जरिए किया जा सकता है.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

जनपत्रकारिता का पर्याय बन चुके फेसबुक ने पत्रकारिता के फील्ड में एक और छलांग लगाई है. फेसबुक ने FBNewswires लांच किया है. ये ऐसा...

Advertisement