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दुख-दर्द

बूझो तो जानें- यह लीड हेडिंग टिकाऊ है या बिकाऊ?

पटना से एक पत्रकार सज्जन ने भड़ास4मीडिया के पास हिंदुस्तान अखबार के 16 अप्रैल के अंक की उपरोक्त कटिंग रूपी तस्वीर भेजकर एक सवाल पूछा है- पाठक बूझे तो जानें, लीड की यह हेडिंग टिकाऊ है या बिकाऊ? उन्होंने इसके आगे लिखा है- ”दरअसल लोक  के नाम पर बने तंत्र में सबसे बेचारी जनता  होती जा रही है। सब उसी को दूह रहे हैं। बिहार के नेता लोग बिहार की जनता को जिस तरह भेड़-बकरी मानते हुए पुचकार, दुलार या डांट-डरा कर वोट लेने के बाद उसे उसी के हाल पर छोड़ देते हैं, कुछ यही ट्रेंड मीडिया ने भी शुरू किया है। देश के दो बड़े अखबारो ने चुनावी विज्ञापनों और खबरों के बीच की महीन लक्ष्मण रेखा को इस प्रदेश में इस बार पूरी तरह मिटा दिया है। पत्रकारीय नैतिकता रूपी सीता का बाजार रूपी रावण सरे-बाजार अट्टाहस करते हुए अपहरण करके ले जा रहा है। हम सब लोग पेड़ पर चिपके डरे-सहमे बैठे भालू बंदर हो गए हैं।

पटना से एक पत्रकार सज्जन ने भड़ास4मीडिया के पास हिंदुस्तान अखबार के 16 अप्रैल के अंक की उपरोक्त कटिंग रूपी तस्वीर भेजकर एक सवाल पूछा है- पाठक बूझे तो जानें, लीड की यह हेडिंग टिकाऊ है या बिकाऊ? उन्होंने इसके आगे लिखा है- ”दरअसल लोक  के नाम पर बने तंत्र में सबसे बेचारी जनता  होती जा रही है। सब उसी को दूह रहे हैं। बिहार के नेता लोग बिहार की जनता को जिस तरह भेड़-बकरी मानते हुए पुचकार, दुलार या डांट-डरा कर वोट लेने के बाद उसे उसी के हाल पर छोड़ देते हैं, कुछ यही ट्रेंड मीडिया ने भी शुरू किया है। देश के दो बड़े अखबारो ने चुनावी विज्ञापनों और खबरों के बीच की महीन लक्ष्मण रेखा को इस प्रदेश में इस बार पूरी तरह मिटा दिया है। पत्रकारीय नैतिकता रूपी सीता का बाजार रूपी रावण सरे-बाजार अट्टाहस करते हुए अपहरण करके ले जा रहा है। हम सब लोग पेड़ पर चिपके डरे-सहमे बैठे भालू बंदर हो गए हैं।

कोई बचाने वाला राम-लक्ष्मण-हनुमान दायें-बायें नहीं दिख रहा है। बिहार के समझदार पाठकों को अब सचमुच समझ में आना बंद हो गया है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे इसे क्या समझें? देश में सबसे ज्यादा महंगे अखबार बिहार में ही बिकते हैं। पांच रुपये से लेकर आठ रुपये तक में। इतने पैसे देकर भी मिलावटी और बनावटी खबर पढ़ने को मजबूर हैं बिहार वाले। इतनी मिलावट-बनावट अगर खाने में हो जाए तो जान चली जाए।

मिलावटी -बनावटी खबरों से जान भले न जा रही हो, पर खोपड़ी जरूर घूम रही है। बिहार की पढ़ाकू जनता को लगने लगा है कि उन्हें जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, वह कंटेंट नहीं कंकड़ है। यह ठगी है। यह छल है। छलिया वही निकले जो वर्षों बरस से जनता को छलियों के चक्कर में न आने के टिप्स-ट्रिक्स बता रहे रहे थे। आगाह कर रहे थे। तो क्या माना जाए, संपादक जी लोग अब नेता जी लोगों की तरह ही सरेआम अपनी पोल-खोल करा रहे हैं लेकिन इस सबसे बिलकुल भी शरमा नहीं रहे हैं?

वो जो कभी-कभार नैतिकता-वैतिकता की बातें हो जाया करती थीं, वो भी नहीं होंगी? या होगी भी तो कुछ उसी तरह जैसे हाथी के दांत खाने के कुछ और होते हैं और दिखाने के कुछ और? पैसे लेकर लीड हेडिंग खबर की तरह छाप कर वोटर को भरमा रहे हैं? या फिर विज्ञापन और खबर के बीच फरक करने का शउर भूलते जा रहे हैं?

चुनाव वाले दिन सुबह-सुबह लीड की ये हेडिंग कुछ इसी तरह की कहानी कहती है। अगर यह खबर की हेडिंग है तो मैटर में बताया जाना चाहिए कि बिहार में कांग्रेस किस तरह से इतिहास रचने को तैयार है। वोट वाले दिन किसी एक पार्टी के पक्ष में आठ कालम खबर की हेडिंग लगाना शायद उस पार्टी के मुखपत्र के नैतिक संपादक को भी अनैतिक लगेगा।

तो फिर क्या माना जाए, ये विज्ञापनी हेडिंग है? करोड़ों रुपये में बिकी हुई हेडिंग है?

पर इस विज्ञापनी लीड हेडिंग को देखने से कहीं से नहीं लग रहा कि ये विज्ञापनी हेडिंग है। ये तो विशुद्ध खबरी हेडिंग की तरह दिक्खे है। समझदार बिहारी जनता परेशान है। कोई तो टिकाऊ-बिकाऊ हेडिंग में फरक करना सिखाए! जो दिख नहीं रहा, वही तो खेल है। जो दिख रहा है, वो उससे भी बड़ा खेल है। हर ओर रेलमपेल है। नदिया, बिजुरी, बंदर, बगिया, अगिया, जेल, मेल, सेल, खेल है। भइया, हर ओर सब रेलमपेल है।”

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