खबरों-खुलासों का सच : भाग-3 : कैसे मिले दस्तावेज? : प्रभात खबर ने डाक्यूमेंट पाने की पुरजोर कोशिश की. जिस चैनल के पास इंटरनेट पर सबसे पहले खबरें पहुंचीं, दस्तावेज भेजे गये, उसी चैनल को डाक्यूमेंट देने वाला बीच-बीच में फोन करता था. किसी नंबर से. उनसे आग्रह किया गया कि यह दस्तावेज वह प्रभात खबर को भी भेजें. लगभग एक सप्ताह बाद, 23 या 24 सितंबर 2008 से लिफाफे में डालकर प्रभात खबर के पास दस्तावेज पहुंचने लगे. फिर उधर से दस्तावेज मिलने, न मिलने के फोन भी कभी-कभार आने लगे. आरंभ में वे दस्तावेज समझ के बाहर थे. अत: फोन करनेवाले व्यक्ति से प्रभात खबर ने साफ-साफ कहा. ये दस्तावेज हमारे समझ के परे हैं. जब तक इन दस्तावेजों से संबंधित तथ्य, साथ नहीं होंगे, हम इन आंकड़ों से कोई अर्थ नहीं निकाल सकते.
फिर डाक्यूमेंट भेजने के साथ-साथ उस व्यक्ति के फोन भी आने लगे. डाक्यूमेंट समझाने के लिए. इसी बीच झारखंड हाईकोर्ट में मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ पीआईएल हो चुका था. किसी दुर्गा उरांव की याचिका थी. अखबारों में छपे दस्तावेजों को देख कर. याचिका दायर करनेवाले कुछेक लोग आये. उन्होंने डाक्यूमेंट मांगे. प्रभात खबर ने कहा, जो डाक्यूमेंट छपे हैं, वहीं हैं. पर हमारा काम खबरों को छापने तक है. डाक्यूमेंट देना नहीं. पर डाक्यूमेंट बांटनेवाले तब तक हर जगह पहुंच चुके थे. इसलिए डाक्यूमेंट कैसे और कहां से मिले, यह सार्वजनिक है. जिस चैनल ने सबसे पहले दिखाया. उसके बाद, एक दूसरे अखबार में आरंभिक कुछ दिनों (सितंबर 08) तक सबसे पहले विदेशी कारोबार से जुडी खबरें छपीं. कोर्ट तक कागजात पहुंचे. सरकारी विभागों के पास भी कागजात थे. इस खबर भंडाफोड प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि जो लोग डाक्यूमेंट देनेवाले थे, उन्हें मधु कोड़ा, विनोद सिन्हा और संजय चौधरी वगैरह बेहतर तरीके से जानते होंगे.
थाइलैंड से लेकर अन्य जगहों पर इनकी एक साथ हुई विदेश यात्राओं के गहरे राज हैं. चर्चा है कि अभी भी ये राज खुलने शेष हैं. इस तरह यह खबर, कोड़ाजी की मित्र मंडली के बीच से लीक हुई है. न किसी ने दस्तावेज हैक किया. और न किसी ने भाडे़ पर किसी जासूस को ढzंढा या काम सौंपा. यह तो हुई खबर लीक होने की चर्चा. पर खबर भंडाफोड से आहत लोग इस बुनियादी तथ्य की जांच करते-कराते कि वो खबरें गलत हैं या सही? अगर खबरें सही हैं, तो एक दिन में ये घटनाएं नहीं हुईं होंगी. वर्षों-वर्षों यह सब चला होगा. तब दो-एक जगह छोड़ कर बाकी लोग क्यों नहीं ये सवाल उठा रहे थे? उन दिनों रांची या झारखंड में सरेआम इन घोटालों की चर्चा थी कि कौन क्या कर रहा है? कैसे कुछेक लोग सत्ता के अवैध केंद्र बन गये हैं? कैसे रोज देर रात वे मुख्यमंत्री आवास आते-जाते हैं? खास महंगी गाड़ियों में कैसे उनके इशारे पर कुछेक महत्वपूर्ण विभागों की फाइलों की डीलिंग होती है? यह खुला सच सब जानते थे. फिर
कोड़ा जी एवं मित्र मंडली की खबरों को लेकर चुप्पी क्यों रही?
दूसरा खुला सच था, जिसे झारखंड का समाज जान व सुन रहा था. इस प्रकरण से जुडे लोगों की संपत्ति में गुणात्मक छलांग. कैसे हो रही थी? इनके आयकर रिटर्न देखिए. 1999 में कोड़ाजी पहली बार चुनाव लडे थे. फिर 2004 और 2009 के चुनावों के आय विवरण देखें. संपत्ति में किस कदर से इजाफा हो रहा था? कोई दूध बेच रहा था, तो कोई खैनी. वहां से अरबों-अरबों का वारा-न्यारा, कुछेक वर्षों में? कैसे संपत्ति बढी इन लोगों की? यह चर्चा का विषय था, क्योंकि इनके पास कोई कल-कारखाना नहीं था, न उद्योग था. न उत्पादन करने का अतीत. बगैर उत्पादन, पूंजी निर्माण (कैपिटल फारमेशन) की फैक्टरी इन्होंने कैसे खड़ी कर दी? भुरकुंडा में एक असाही ग्लास फैक्टरी थी. जापानी तकनीक से संचालित. बिना विज्ञापन, बिना किसी टेंडर के वह फैक्टरी अचानक विनोद सिन्हा एंड कंपनी के हाथ कैसे आ गयी? इसी तरह खलारी सीमेंट प्लांट का स्वामित्व रातोंरात कैसे बदला? क्यों खलारी सीमेंट से उत्पादित सीमेंट को अचानक झारखंड सरकार ने इस्तेमाल के लिए मस्ट कर दिया?
कैसे चाईबासा के तत्कालीन डीसी, विनोद सिन्हा एंड कंपनी की सेवा में लगे रहते थे और जमीन घोटाला कर रहे थे? सरकारी योजनाओं में बंदरबांट कर रहे थे. कैसे चाईबासा में इंजीनियरों के एक समूह ने करोड़ों-करोड़ का अग्रिम वर्षों से ले रखा था? कुल मिलाकर बहुत बड़ी राशि. उसकी जांच मुख्य सचिव के स्तर के अधिकारी ने की. पर उस जांच पर किसने कार्रवाई नहीं होने दी? कोड़ाजी शुरू से कहते थे कि संजय चौधरी-विनोद सिन्हा से उनका कोई रिश्ता नहीं है. तब कोड़ाजी के मुख्यमंत्री बनते ही कैसे संजय चौधरी एंड विनोद सिन्हा को अचानक भारी सुरक्षा देने का आदेश हुआ? किसकी पहल पर? ये किस तरह महत्वपूर्ण थे कि इन्हें रातोंरात सुरक्षा दी गयी? इन्हीं के साथ, बिना भारत सरकार को जानकारी या सूचना दिये कोड़ाजी विदेश गये. नियम यह है कि कोई भी मंत्री विदेश जायेगा, तो भारत सरकार की अनुमति लेगा. उन्हें जानकारी देगा. 17 चार्टेड प्लेनों से कोड़ा कार्यकाल में लोग उड़े हैं. इनमें कौन-कौन सवार हुए थे?
इसी तरह कोड़ा कार्यकाल के 200 हेलिकाप्टर उड़ानों की स्पष्टता नहीं है कि इनमें कौन उड़ा, कहां गया? सूचना है कि इनमें से 100 हेलिकाप्टर उड़ानों में यात्री सूची या तो ब्लैंक है या अस्पष्ट. झारखंड बनने के बाद से ही कैसे हेलिकाप्टरों का दुरूपयोग हुआ, इसकी लगातार खबरें प्रभात खबर में छपीं. फिलहाल एक युवा इस मामले को हाईकोर्ट में ले गया है. अदालत इस मामले में काफी गंभीर है. इन सब चीजों में गहरे राज छिपे हैं. ऐसी असंख्य खबरें हैं, जो कोड़ा कार्यकाल में प्रभात खबर में छपीं. इन खबरों को गिनाना हमारा मकसद नहीं है. यह सवाल उठाना मकसद है कि क्या ये सवाल हैं या नहीं? खबरें हैं या नहीं? अगर हैं, तो चुप्पी क्यों थी? ये सारी खबरें चोरी छुपे नहीं हो रही थीं. न एक्सक्लूसिव थी. यह सब खुलेआम हो रहा था. डंके की चोट पर हो रहा था. पर इन्हें सवाल के रूप में उठानेवाले या खबरें बनाने वाले कहां थे? मीडिया से सरोकार रखनेवालों को यह सवाल चिंतित नहीं करता.
यह भी सही है कि इन दिनों कोड़ा प्रकरण में अनेक गलत खबरें आयीं हैं. नितांत तथ्यहीन. आधारहीन, बतकही और अफवाह के आधार पर. बड़े-बड़े चैनलों में. अखबारों में. भेंड़चाल से. यह हमारे गुलाम मानस का परिचायक है. जब व्यक्ति सत्ता में हो, तो पूजो. सत्ता से बाहर जाये, तो कुछ भी करो. आज भी प्रभात खबर कोड़ा प्रसंग में बिना पुष्टि के खबर छापने से बचता है. और कोड़ा के सारे कार्यक्रमों की, जिसमें प्रभात खबर की आलोचना भी शामिल है, प्रमुखता से छापता है क्योंकि प्रभात खबर का किसी से निजी रागद्वेष है ही नहीं.
कोड़ाजी एवं मित्र मंडली के भ्रष्टाचार के सवाल मीडिया में कम उठे. कांग्रेस ने अधिक उठाया. वह कांग्रेस जिसके समर्थन से कोड़ाजी सरकार में टिके थे. अजय माकन के नेतृत्व में. अजय माकन 24 सितंबर 07 से 19 फरवरी 08 तक झारखंड कांग्रेस के प्रभारी थे. केंद्र में नगर विकास के राज्य मंत्री भी. उनके नेतृत्व में कोड़ा सरकार पर लगाये कुछ प्रमुख आरोपों के शीर्षक पढ लें, जो प्रभात खबर में छपें –
15 के बाद कभी भी समर्थन वापस (12 जनवरी 2008)
कोड़ा सरकार का काम ठीक नहीं, (16 जनवरी 2008)
मंत्रियों से नहीं मिले माकन (15 जनवरी 2008) (अजय माकन उस समय केंद्र में नगर विकास मंत्री थे, वे झारखंड के मंत्रियों से भी नहीं मिलते थे, उनके भ्रष्टाचार के कारण)
झारखंड में सिर्फ भ्रष्टाचार बढा (28 जनवरी 2008) – अजय माकन (यह आरोप किसी विपक्षी नेता का नहीं है. केंद्र के तत्कालीन मंत्री और कांग्रेस प्रभारी का है. आज जब झारखंड के एक-एक पूर्व मंत्री जेल जा रहे हैं या पूछताछ के दायरे में आ रहे हैं, तब तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी का बयान समझ में आ रहा है)
सरकार का प्रमुख घटक दल कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन ने सिमरिया उपचुनाव में (जनवरी 08 में) सार्वजनिक रूप से कहा “मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और सरकार के अन्य मंत्री कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार करने सिमरिया नहीं जायें. कांग्रेस को उनकी मदद नहीं चाहिए.’
नहीं चाहिए कोड़ा और उनके मंत्री (20 जनवरी 2008)- अजय माकन
सरकार को अब ज्यादा वक्त नहीं दे सकती कांग्रेस (19 अक्टूबर 07) – अजय माकन
जानते हैं निर्णय नहीं हुआ, तो झारखंड की जनता हमें माफ नहीं करेगी (22 फरवरी 2008) – अजय माकन (नियेल तिर्की कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक थे. वह कोड़ा सरकार के एक मंत्री के भ्रष्टाचार से इतने त्रस्त थे कि अनशन पर बैठे. दिल्ली से कांग्रेस प्रभारी व मंत्री अजय माकन रांची आये. उन्हें जूस पिलाया. वह रो पड़े. कहा, अगर कोड़ा से मुक्ति नहीं मिल रही है, तो कम से कम भ्रष्ट मंत्रियों से तो मुक्ति दिलाइए.)
10 दिन और (21 जनवरी 2008) – अजय माकन
ये रिपोर्ट बानगी के तौर पर हैं. अजय माकन के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार कोड़ा सरकार के कामकाज पर प्रहार करती रही. कांग्रेस ने अजय माकन, सुबोधकांत, कांग्रेस के सभी सांसदों – विधायकों के नेतृत्व में राजभवन से सीएम आफिस तक पैदल मार्च किया. सरकार की विफलताओं-भ्रष्टाचार के खिलाफ. कांग्रेस ने महज दो महीने का समय सरकार को दिया. कांग्रेस समर्थन वापस करने ही वाली थी कि यूपीए के कई महत्वपूर्ण नेताओं ने कोड़ा को बचा लिया. जिस सरकार को यूपीए चला रही थी. उसी यूपीए के प्रमुख घटक दल, कांग्रेस लगातार सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर कर रही थी. प्रभात खबर की पत्रकारिता से बेचैन लोग यह देखें और जांचे कि कांग्रेस के इन महत्वपूर्ण आरोपों को मीडिया में कितनी जगह मिल रही थी? इन परिस्थितियों में मीडिया का दायित्व था कि वह कांग्रेस के आरोपों की गहराई से छानबीन करे. अगर मीडिया ने यह काम तब किया होता, तो ये घोटाले न जाने कब के सामने आ गये होते.
घोटालों की जानकारी ऊपर तक कैसे पहुंची?
मधु कोड़ा सरकार बनते ही माइंस आवंटन में अनियमितता और तेज हो गयी. हालांकि यह खेल झारखंड बनने के बाद से ही चल रहा था. पर कोड़ा कार्यकाल में होड़ मच गयी. तब अनेक महत्वपूर्ण लोगों ने, कई गंभीर अनियमितताओं को एकत्र कर भारत सरकार, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सतर्कता आयोग को पत्र लिखे. 2007 अंत से ही. उनमें प्रमुख थे, भाजपा विधायक सरयू राय. श्री राय ने ही 1980 के आसपास बिहार में बिस्कोमान खाद्य घोटाला को उजागर किया था. तत्कालीन ताकतवर कांग्रेसी नेता तपेश्वर सिंह के साम्राज्य का सच सामने लाया था. इसके बाद पशुपालन घोटाला उजागर करने में भी वह आगे रहे.
झारखंड में विधायक के रूप में लगातार वह विधानसभा के अंदर और बाहर इन सवालों को उठाते रहे. वह भी बिहार आंदोलन के सजग और प्रतिभावान लोगों में से हैं. इस तरह केंद्र सरकार और उसकी सभी एजेंसियां इन तथ्यों से वाकिफ थीं. इसलिए यह मानना कि ये छापे या सरकारी कार्रवाई अचानक हुए, गलत है.
झारखंड इतना अशासित और अनियंत्रित राज्य बन गया था कि यहां के मंत्री, केंद्र सरकार के विभागों-उपक्रमों से ही खुलेआम घूस-फेवर मांग रहे थे. यह सूचना दिल्ली में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों तक पहुंची. बाद में केंद्र से दो-दो बार कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में भारत सरकार के सचिवों की टाप टीम आयी. रांची. सामान्यतया शायद ही किसी अन्य राज्य में ऐसा हुआ हो. भारत सरकार के बड़े अधिकारियों ने झारखंड का राजकाज नजदीक से देखा. सरकार के कामकाज का एक-एक तथ्य इन सबको मालूम हुआ. देश चलाने वाले लोगों ने जब अनियमितता और खुलेआम भ्रष्टाचार का यह रूप देखा, तो आयकर से लेकर प्रवर्तन निदेशालय वगैरह की कार्रवाई होनी ही थी. दूसरी ओर हाईकोर्ट में कई लोगों ने मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ याचिकाएं दायर कर रखी थी. जिस पर लगातार कोर्ट मानिटरिंग कर रहा था. आयकर व सरकार से इसकी पड़ताल के बारे में पूछ रहा था. इस तरह आयकर, निगरानी या प्रवर्तन निदेशालय की यह कार्रवाई हुई. स्वाभाविक रास्ते. आज भी केंद्र सरकार के महकमों यानी आयकर, प्रवर्तन निदेशालय या राज्य सरकार के निगरानी वगैरह में ईमानदार अफसरों की बड़ी जमात है, जिसने हाईकोर्ट के कहने पर जब मामले की जांच की, तो अनेक दूसरे गंभीर तथ्य भी पता चले. इस तरह यह कार्रवाई आगे बढी.
पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में (छापे के बाद) एक खबर छपी है. महत्वपूर्ण खबर है. दुनिया के एक बड़े उद्योगपति हैं, भारतीय मूल के. वह झारखंड में बड़ा उद्योग लगाना चाहते थे. दिल्ली में सर्वोच्च राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों से उनका सीधे परिचय है. सूचना है कि उस कंपनी के एक प्रमुख अधिकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिले. निवेश प्रस्ताव लेकर. दिल्ली से भी सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों ने शायद संकेत दिया था कि प्रोजेक्ट अनुकूल लगे, तो काम आगे बढाया जाये. पर राज्य के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति ने उस कंपनी के लोगों से कहा ‘फलां व्यक्ति’ से मिल लें. उस फलां व्यक्ति ने उस बड़ी कंपनी के सीइओ से कहा, दो सौ करोड रुपये हमें सीधे दें. फिर सब काम हो जायेगा. वह व्यक्ति हतप्रभ. यह बात ऊपर तक पहुंची. यह था झारखंड का माहौल!
प्रभात खबर पर कोड़ाजी एंड कंपनी का यह आरोप कि उषा मार्टिन कंपनी का कोई काम कोड़ा सरकार के पास पेंडिंग था. वह काम कोड़ाजी ने रिजेक्ट कर दिया, इसलिए प्रभात खबर ने मामला उछाला? मामला कैसे उछला, यह तो आपने पढ़ा. पर पुन: प्रभात खबर और उक्त कंपनी का रिश्ता जान लीजिए. उस कंपनी और प्रभात खबर के बीच कोई फंक्शनल रिश्ता नहीं है. न सीधा रिश्ता, रिश्ता है कि उषा मार्टिन के प्रमोटरों का प्रभात खबर पर स्वामित्व है. पर शुरू से ही प्रभात खबर स्वायत्त संस्था की तरह चल रहा है, लेकिन इस पर चर्चा बाद में. पहले उस कंपनी के उस काम की चर्चा, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि उसके रिजेक्ट होने पर प्रभात खबर ने धारावाहिक रपटें छापीं.
झारखंड सरकार के निगरानी छापे के बाद कोड़ाजी का भड़ास प्रभात खबर पर निकला. तब प्रभात खबर ने उस कंपनी से पूरा मामला पता किया कि कौन से काम थे और क्या पेंडिंग थे? जो सूचना मिली वह जानिए. जिस काम के बारे में कहा जा रहा है कि वह काम रिजेक्ट होने पर अभियान चला. यह सरासर झूठ है. हां, उक्त कंपनी समूह का एक प्रस्ताव संयुक्त कंपनी बनाने का था, गद्दी छोड़ने के एक माह पहले, यानी 01.07.2008 को कोड़ाजी ने उस पर रिजेक्सन नोट लिखा. याद करिए प्रभात खबर में विनोद सिन्हा, कोड़ा एंड कंपनी के बारे में कब-कब खबरें छपीं है?
जब निर्दलियों की सरकार बन रही थी, तो प्रभात खबर ने छह किश्तों में बताया कि भविष्य के आगाज क्या हैं? क्योंकि इन मंत्रियों के एक-एक कामकाज से यहां लोग वाकिफ थे. कोड़ा कार्यकाल की जिन प्रमुख गड़बड़ियों का उल्लेख ऊपर किया गया है, वे लगातार प्रभात खबर में छपीं. फिर विनोद सिन्हा के बढते साम्राज्य पर कोड़ाजी के मुख्यमंत्री बनने के बाद छह रिपोर्ट छपीं. एक-एक बारीक जानकारी के साथ. उन रपटों में कहीं कोड़ाजी का जिक्र नहीं था. पर बेचैनी कोड़ाजी को हो गयी, क्योंकि उस आग की लपटें कोड़ाजी तक पहुंच रही थी. फिर प्रभात खबर में विनोद सिन्हा वगैरह के विदेशी धन, कारोबार और व्यापार के विवरण सितंबर 2008 से छपने शुरू हुए, जब मुंबई एयरपोर्ट पर संजय चौधरी को डिटेन किये गये. संजय चौधरी मुंबई में कस्टम द्वारा डिटेन किये जाने की खबर को उस दिन देश के सभी चैनलों ने उछाला. कोड़ाजी से नाम जोडकर. तब शुरुआती दिनों में ई-टीवी ने अधिसंख्य दस्तावेज दिखाये. विदेशी कारोबार के.
फिर ये दस्तावेज पहले एक अन्य समाचार पत्र में छपा. ये सारी चीजें रिकार्ड पर हैं. इसके बाद प्रभात खबर ने पहल कर दस्तावेज जुटाया और लगातार छापा. मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए. बेहतर तरीके से छापा. वे दस्तावेज अकाट्य हैं. अब वे लोग बतायें, जो यह प्रचारित कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने कंपनी का एक प्रस्ताव रद्द किया, उसके बाद प्रभात खबर ने कोड़ाजी के खिलाफ रिपोर्टें शुरू की. प्रभात खबर में विनोद सिन्हा से जुड़ी पहली रपट तीन वर्षों से भी पहले छपी थी.
अब इस तरह के आरोप लगाने वाले कोई नया तर्क तलाश लेंगे, क्योंकि उनका मकसद तथ्यों के संदर्भ में बात करना नहीं है. तथ्यों को देखते हुए स्पष्ट है कि कंपनी के काम से प्रभात खबर की भूमिका जुड़ी होती, तो प्रभात खबर ये चीजें छापता या रोकता? कोई भी कंपनी जिसका कहीं काम होगा, वह तो यही चाहेगी कि जिसके पास काम पेंडिंग है, उसके खिलाफ कुछ न हो. पर प्रभात खबर कोड़ा सरकार के जन्म के समय से ही, कोड़ा सरकार के बारे में रोज ही लिख और छाप रहा था. विनोद सिन्हा के बारे में सबसे पहले प्रभात खबर ने 2006 में छापा, जब वह (चाईबासा) जिला स्तर के उभरते आपरेटर थे और राज्य की राजधानी रांची के सत्ता गलियारें में उनकी धमक सुनायी दे रही थी. प्रभात खबर के संचालकों के संबंध में पुन: एक बार सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट करना चाहेंगे कि उनका अखबार चलाने का जो कमिटमेंट है, “नान इंटरफरेंस’ (अहस्तक्षेप), उस पर वे शुरू से टिके रहे हैं. इसलिए प्रभात खबर अपने बुनियादी वसूलों पर चल रहा है. यह सिर्फ कोड़ाजी के कार्यकाल में नहीं है. बहुत पीछे लौटे बगैर झारखंड बनने के बाद से ही कुछ और चीजों को जान लें, तो प्रभात खबर के कामकाज का तरीका पुन: साफ हो जायेगा.
….जारी…