दैनिक भास्कर, इंदौर में काम कर रहे जर्नलिस्ट जय द्विवेदी ने संस्थान से इस्तीफा देते वक्त जो दो पन्ने का पत्र लिखा, उसे सभी वरिष्ठों, प्रबंधकों, एडिटरों, मालिकों को एक साथ भेज दिया। उनका यह पत्र आजकल भास्कर समूह में चर्चा का विषय है। लोग इसे एक दूसरे को फारवर्ड करके पढ़-पढ़ा रहे हैं। जय ने हिम्मत दिखाई है। पत्र में वह सब लिखा है जो उनके मन में था। उनकी खरी-खरी बातें जहां भास्कर कर्मियों को अच्छी लग रही हैं वहीं वरिष्ठ इससे थोड़े असहज महसूस कर रहे हैं। जय ने इस्तीफा देने के बाद ठीकठाक पैकेज पर पत्रिका अखबार ज्वाइन कर लिया है। वे भास्कर में सिटी भास्कर के डेस्क इंचार्ज हुआ करते थे। जय ने जो इस्तीफा मालिकों और सभी संपादकों को भेजा है, उसकी एक प्रति भड़ास4मीडिया के भी पास है, जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं-
देश के सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते अखबार के वरिष्ठ साथियों और कर्ताधर्ताओं को इस अदने से कर्मचारी का प्रणाम।
मैंने पत्रकारिता करने और कुछ नया सीखने के उद्देश्य से शासकीय नौकरी से त्यागपत्र देकर आपके इस ऑर्गेनाइजेशन से संबंध बनाया। मेरे खयाल से पत्रकारिता का तो मुझे मौका मिला ही नहीं, रही बात सीखने की तो, वो एक सतत् प्रक्रिया है। सीखने को तो बहुत कुछ मिला पर इसके साथ ही कई अन्य चीजें भी जानी जो मेरे व्यक्तित्व से मेल नहीं खाती थीं। यहां मैंने एक अजीब सी परिपाटी देखी। इस संस्था में प्रगति उसे ही मिलती है जो चापलूस हो और दूसरों की टांग खींचना जानता हो। मैंने यहां लोगों को कई विचित्र संबोधन देते और कहते सुना। कोई कहता अपन तो फलां आदमी के छर्रे हैं और कोई कहता अरे, फलां आदमी कल्पेश जी का खास है। किसी को संपादक का तो किसी को जीएम या एमडी का वरदहस्त प्राप्त है। मुझे समझ में नहीं आया कि काम करने और कुछ नया करने के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता है। खैर, ये सब मेरे लिए असंभव है। मेरे कुछ सिद्धांत है जिनसे मैं समझौता नहीं कर सकता। इसीलिए शायद यहां मेरी प्रगति भी संभव नहीं। वर्क डिस्ट्रिब्यूशन और इवेल्युएशन को यहां दूसरों के मुंह से सुनकर किया जाता है। यहां का एचआर विभाग अपने मूल सिद्धांतों से इतर केवल मीटिंग के लिए नाश्ता अरेंज करने और पार्किंग में गाड़ियां जमवाने तक ही सीमित है। और उसमें भी अव्यवस्थाएं देखी जा सकती है।
एक उदाहरण देता हूं। इस बार की संवाद आपने जिस दीपक बुडाना को प्रकाशित किया है उसने ही आज से दो साल पहले पेज चेक होने के बाद एक एसएमएस में ‘चूतिए’ शब्द का इस्तेमाल कर तीन लोगों को सजा दिलवाई थी। और आज भी वह अपने इस कारनामे की अन्य लोगों के बीच शान से चर्चा करता है। संस्था का नुकासन कर उसे धोखा देकर अपने विरोधी को नीचा दिखाने की परिपाटी भी मुझे यहीं देखने को मिली। इस तरह से क्या संस्था प्रगति कर सकेगी?
इस पत्र को लिखने के बाद शायद मुझे निकाल दिया जाता या फिर सालों तक प्रताड़ित किया जाता, इसी वजह से आप सभी इसे मेरा त्यागपत्र ही समझें। चूंकि मैं एम ग्रेड का व्यक्ति नहीं हूं इसलिए मुझे एक्जिट इंटरव्यू का अधिकार भी नहीं है इसीलिए मैं खुद ही इस तरह का लेटर लिख रहा हूं जिसे आप एक्जिट इंटरव्यू की तरह ट्रीट कर सकते हैं।
यहां करीब 80 फीसदी ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनी आज तक की उम्र में जितनी किताबें नहीं पढ़ी होगी उतनी मैंने और मेरे जैसे कई लोगों ने स्कूल में ही पढ़ ली थी। कई को दुनिया का नक्शा नहीं मालूम, देशों का इतिहास नहीं पता, विचारधाराओं और विकास की अवधारणा से उनका कोई लेना देना नहीं है। फिर भी वे विद्वान हैं। सालों से यहां ईमानदारी से काम कर रहे सायलेंट वर्कर्स को कोई तव्वजो नहीं दी जाती। यही हाल एचआर, मैनेजमेंट, इवेंट और सरकुलेशन में भी देखा जा सकता है।
आपको धन्यवाद भी देना चाहूंगा कि परिस्थितिवश मुझे सिटी भास्कर को लीड करने का मौका मिला। इन दिनों मैंने हर उस क्षेत्र पर काम किया जिन पर एक सिटी सप्लीमेंट को काम करना चाहिए। हार्ड कोर खबरों के साथ ही रीडर्स कनेक्टिविटी, सोसायटीज को जोड़ना, नेचर, ह्यूमर, एटिकेट्स, एक्टिविटी, आर्ट, साइंस और करंट मुद्दे… सभी पर मैंने बेहतरीन स्टोरीज प्लान की और हम सभी ने मिलकर उसे बहुत अच्छे से प्ले भी किया। सिटी भास्कर के सभी साथी मेरे व्यवहार और काम से खुश हैं। यही मेरे लिए प्लस प्वाइंट है।
खैर, यदि आपको और भी कुछ जानना है तो मैं बहुत सी बातें और कुछ पत्र पंकज श्रोत्रीय जी से शेअर कर चुका हूं, उनसे बात कर सकते हैं। रही बात मेरे जाने के बाद की तो मैं आपको बता दूं कि आज भी यदि मैं अपने पुराने दफ्तर में जाता हूं तो वहां का अधिकारी और कर्मचारी मेरा खुले दिल से स्वागत करते हैं। लेकिन आज के बाद जब मैं यहां आना चाहूं तो शायद सुरक्षा गार्ड मुझे अंदर आने ही न दें और यदि मुझे जरूरी काम होगा तो उनमें से एक मेरे साथ आएगा। संस्थान को ऊंचाइयां दिलाने वाले हर कर्मचारी का यहां यही हश्र होता है। हो सके तो इस हिस्से को जरूर सुधारने की कोशिश करना।
मुझे समझाया जा रहा था कि अभी और रुको, संस्था तुम्हारा ध्यान रखेगी। मुझे कुछ हजार का इंक्रीमेंट देने में भास्कर को पसीने आ रहे हैं और हाल-फिलहाल में ही कई लोगों को बेहतर सेलरी पर नियुक्त किया गया है। वैसे मुझे तो एक साल बाद पता चला कि मैं भास्कर प्रिंटिंग प्रेस का कर्मचारी हूं, डीबी कॉर्प जैसी कोई संस्था तो उसकी सिस्टर कंसर्न है। ऐसे में मैं उम्मीद कर सकता हूं कि मेरे तीन दिन के नोटिस को मेरी छुट्टियों से एडजस्ट कर सेलरी पूरे महीने की दी ही जा सकती है। आगे आपकी मर्जी।
शुभकामनाओं सहित
जय द्विवेदी