राजू के परिवार तक पहुंच रही है कई ओर से मदद : छिंदवाड़ा (म.प्र.) के धुरंधर युवा पत्रकार राजू गांवडे की असमय मृत्यु के बाद सबसे बड़ी चिंता का विषय था कि उसकी मां एवं गर्भवती पत्नी का पालन-पोषण कैसे होगा? चूंकि राजू गांवडे ने कुछ भी जमा नहीं किया था, अतः समस्या पहले ही दिन से रोजी-रोटी की थी। मदद के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। इस सारी प्रक्रिया के दौरान एक सुखद प्रसंग आया। इन दिनों भोपाल में सक्रिय पत्रकार हर्षित दुबे को अचानक याद आया कि कुछ बरस पहले जब वे छिंदवाड़ा में पत्रकारिता किया करते थे और राजू गांवडे उनके जूनियर थे, तब छिंदवाड़ा के ही एक वरिष्ठ पत्रकार ने ओरिएन्टल इन्श्योरेंस के लिए बीमे का काम शुरू किया था और उस समय सक्रिय लगभग सभी पत्रकार साथियों का दुर्घटना बीमा कराया था।
लेकिन प्रश्न यह था कि अब जबकि राजू स्वयं नहीं हैं, तो कैसे पता चले कि उन्होंने पॉलिसी ली थी या नहीं। 24 दिसंबर की शाम से शुरू हुई इस खोजबीन का परिणाम निकला। पता चला है कि राजू गांवडे ने भी बीमा कराया था एवं उनकी पॉलिसी अभी लेप्स नहीं हुई है। यह दुर्घटना बीमा चार लाख रुपये की है। छिंदवाड़ा के वे वरिष्ठ पत्रकार, जिन्होंने बीमा किया था, उस पॉलिसी का क्लेम हासिल करने में जुट गए हैं. उन्होंने आश्वस्त किया है कि स्व. राजू गांवडे की त्रयोदशी से पूर्व ही उक्त भुगतान हो जाएगा।
इसके अलावा 24 दिसंबर की शाम प्रेस क्लब छिंदवाड़ा ने राजू गांवडे के परिवार को 27 हजार रुपए की नगद सहायता दी। इससे पूर्व प्रेस क्लब की ओर से 5000 रुपए की मदद दी जा चुकी है। रेडक्रास सोसायटी ने भी 10 हजार रुपए की प्राथमिक मदद भेज दी है। कई जगहों से मदद का आश्वासन मिला है। जिस स्थानीय अखबार ‘सतपुड़ा टाइम्स’ में स्व. राजू गांवडे काम किया करते थे, उसके चैयरमेन श्री सुधीर दुबे ने अपनी ओर से 10 हजार रुपए की मदद पहुंचा दी है एवं ‘सतपुड़ा टाइम्स’ प्रबंधन ने अगले तीन माह तक स्व. राजू गांवडे का अनुकंपा वेतन देने का वचन दिया है।
जनसंपर्क विभाग की ओर से भी आर्थिक सहायता की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है एवं पत्रकार साथियों ने निर्णय लिया है कि छिंदवाड़ा के सांसद व केन्द्रीय मंत्री श्री कमलनाथ से वे स्व. राजू के परिवार को मदद के रूप में उनकी पत्नी के लिए एक सरकारी नौकरी का आग्रह करेंगे। सभी साथी आश्वस्त हैं कि श्री कमलनाथ कतई टालमटोल नहीं करेंगे। मदद का सिलसिला अभी भी जारी है। पत्रकार साथियों एवं अन्य लोगों की एकजुटता के बाद कम से कम इतना तो हो गया कि अब कोई युवा पत्रकार स्व. राजू गांवडे को आदर्श मान पत्रकारिता करने से डरेगा नहीं। छिंदवाड़ा के पत्रकार साथियों ने छिंदवाड़ा की खोजी और जोखिम भरी पत्रकारिता की परंपरा को अकाल मृत्यु से बचा लिया।