दैनिक जागरण और आई-नेक्स्ट के इंचार्ज इन दिनों बेहद थके हुए हैं. सुनते-सुनते, सीखते-सीखते इन लोगों का दिमाग जवाब दे गया है. आगरा में तीन दिन बैठक चली. साध्य 2010 नामक इस बैठक में तीन दिनों तक भाषण का दौर चला, प्रजेंटेशन का क्रम चला. मालिकों से लेकर संपादकों तक ने बातें रखीं. काफी कुछ सिखाया-पढ़ाया गया. नई चुनौतियों के बारे में समझाया गया. आधुनिक नजरिए के साथ कस्टमर कनेक्ट होने का मंत्र दिया गया.
तीन दिन बाद यहां से निकले तो नोएडा में दो दिन के लिए मल्टीमीडिया वर्कशाप में घुसा दिया गया. विदेश से आई एक मल्टी मीडिया एक्सपर्ट ने अंग्रेजी में दो दिनों तक मल्टी मीडिया के सारे आयामों के बारे में समझाया. अपने हिंदी पट्टी वाले संपादकों को बड़ी मेहनत करनी पड़ी इनकी बात समझने में. दिमाग की सारी खिड़कियां और एंटीना खोल देने के बाद भी विदेशी एक्सपर्ट की बहुत सारी बातें इनके पल्ले नहीं पड़ी. जितना प्रजेंटेशन के जरिए समझ सके, उतना ही समझ पाए. थ्री प्लस टू, फाइव डेज का यह सब वर्कशाप, बैठक संपादकों पर भारी पड़ रहा है. कुछ संपादक कहते मिले कि उनके तो सिर के उपर से निकल गईं हैं बातें. इतनी बातें हो गई हैं कि संभालना-समझना मुश्किल हो रहा है कि क्या क्या कहा गया है.
कुछ लोग सारी बातों को डायरियों पर नोट कर रहे हैं तो कुछ पांच दिन का रिफ्रेशर कोर्स मानकर जितना याद रह गया, उसी को नई सीख मानकर अपनी यूनिट लौट गए हैं. कुछ का कहना था कि लगातार पांच दिन की बैठकों से बचना चाहिए. अगर आगरा में तीन दिन की बैठक से इंचार्ज-संपादक लौटे हैं तो थोड़ा पाज़ देकर मल्टीमीडिया वर्कशाप कराई जानी चाहिए थी. पर बड़े संस्थानों में अक्सर ऐसी अव्यवहारिक स्थितियां आ जाती हैं. पर ओवरआल संदेश यही है कि जागरण समूह भविष्य को लेकर सचेत और अपने विजन को अपने प्रभारियों-संपादकों तक कनवे कराने को सक्रिय है, सो आने वाले दिनों में भी इस तरह की बैठकों का क्रम जारी रह सकता है.
Rishi Nagar
January 22, 2010 at 11:54 am
I know many of their editorial heads at different level, who cannot write even the names of their colleagues in English, what to talk of the workshop in English…one such person is at Noida, two others at jalandhar, one at chandigarh, one at Jammu, one in national bureau and …. the list is long….lets laugh at them on their achievement… jagran will improve now after their participation in the workshops….Amen!
dharmendra kumar sharma
January 22, 2010 at 1:09 pm
जब ऐसे सेनापति थक गए हैं तो अपनी सेना से क्या उम्मीद रखते हैं, अरे भाई परिवर्तन संसार का यथार्थ है और समय के साथ सबको बदलना पड़ता है
shashank shukla
January 23, 2010 at 8:23 am
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junior praveen
February 27, 2010 at 4:00 am
whatz wrong if any organisation is focused on its vision & goals.