मनोहर कहानियां और सत्यकथा नाम की मशहूर दो मैग्जीनें अब माया प्रेस की नहीं रहीं। इन्हें अब दिल्ली प्रेस समूह के बैनर तले प्रकाशित किया जाएगा। मतलब, ये दोनों मैग्जीनें अब माया प्रेस ने दिल्ली प्रेस को बेच दीं। 1928 में क्षितिन्द्र मोहन मित्रा द्वारा स्थापित माया प्रेस की एक जमाने में मैग्जीन मार्केट में तूती बोलती थी। इसी माया प्रेस ने माया और मनोरमा जैसी लोकप्रिय मैग्जीनें भी प्रकाशित कीं। वर्ष 1944 में लांच मैग्जीन मनोहर कहानियां, जिसमें असल जिंदगी के किस्से छापे जाते हैं, इस वक्त भी शीर्ष 10 मासिक पत्रिकाओं में शामिल है। आईआरएस के आकड़ों के अनुसार मनोहर कहानियां की रीडरशिप 37 लाख है। सत्यकथा का प्रकाशन 1972 में हुआ। इन दोनों मैग्जीनों के वर्तमान प्रकाशक और संपादक अशोक मित्रा हैं जो क्षितिन्द्र मोहन मित्रा के पुत्र हैं।
दिल्ली प्रेस के निदेशक अनंत नाथ का कहना है कि वे दोनों मैग्जीनों के फार्मेट में फिलहाल कोई बदलाव नहीं करेंगे। उनका लक्ष्य मनोहर कहानियां की पचास हजार प्रतियां और सत्यकथा की 25 हजार प्रतियां प्रति महीने बेचने का होगा। भविष्य की योजनाओं के बारे में अनंत नाथ कहते हैं कि उनकी योजना मैग्जीनों के डिस्ट्रीब्यूशन, एडवरटाइजिंग और सेल्स को दुरुस्त करना होगा। हमारा अपना एक अलग वितरण तंत्र भी है जिसके जरिए हम हिंदी पट्टी के नए इलाकों में भी घुसपैठ कर पाएंगे। मनोहर कहानियां और सत्यकथा की संपादकीय टीम यथावत रहेगी। अशोक मित्रा इसके संपादक बने रहेंगे।
दिल्ली प्रेस समूह की सबसिडरी कंपनी दिल्ली प्रेस प्राइवेट लिमिटेड इन दोनों मैग्जीनों को प्रकाशित करेगी। दिल्ली प्रेस के बैनर तले कुल 27 मैग्जीनों प्रकाशित होती हैं जो कई भाषाओं में हैं। इनमें प्रमुख नाम हैं- सरस सलिल, गृहशोभा, सरिता, वोमेन्स इरा और चंपक। आईआरएस के ताजा आंकड़ों के अनुसार सभी पत्रिकाओं की संयुक्त पाठक संख्या 3.3 करोड़ से भी ज्यादा है।